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अनूठी परंपरा: यहां श्राद्धों में भी गूंजती है शहनाई, बिना सात फेरे लिए बंध जाते हैं शादी के बंधन में; जानिए

Weddings in Shradh यहां श्राद्धों में भी शहनाई गूंजती है और बिना सात फेरे लिए दूल्‍हा दुल्‍हन शादी के बंधन में बंध जाते हैं। इसके पीछे खास परंपरा है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Tue, 15 Sep 2020 01:19 PM (IST)Updated: Tue, 15 Sep 2020 01:19 PM (IST)
अनूठी परंपरा: यहां श्राद्धों में भी गूंजती है शहनाई, बिना सात फेरे लिए बंध जाते हैं शादी के बंधन में; जानिए

मंडी, मुकेश मेहरा। अधिकतर लोग श्राद्धों में शुभ कार्य करना उचित नहीं मानते। पर मंडी और कुल्लू में इससे अलग परंपरा है। यहां श्राद्धों में देव आज्ञा से विवाह होते हैं। इस विवाह की खास बात यह है कि इसमें न पंडित मंत्र बोलता है, न ही फेरे लिए जाते हैं। चार सितंबर को मंडी के चौहण में ऐसा विवाह हुआ।  इस क्षेत्र में परंपरा है कि मेलों में लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद करते थे। उसके बाद लड़का लड़की को अपने घर ले आता था। अब मेलों से भागने की परंपरा कम हो गई है, लेकिन पसंद के अनुसार लड़का लड़की को घर ले आता है तो स्वजन देव आज्ञा के अनुसार विवाह करवा देते हैं। ऐसे विवाह श्राद्धों में भी होते हैं।

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जब लड़का लड़की को लेकर घर आता है। उसके बाद लड़के के स्वजन लड़की को घर छोड़ आते हैं। स्थानीय देवता का गूर (पुजारी) देव आदेश से शादी का दिन तय करता है। बाद में लड़की के घर बारात लेकर जाते हैं। लड़का लड़की को मंगलसूत्र पहनाता है। लड़के के घर में धाम दी जाती है। यह प्रक्रिया देवता के सामने होती है। दो दिन देवता लड़के के घर में रहता है।

चार सितंबर को घाटी के चौहण निवासी सुनील कुमार और सुषमा देवी इसी परंपरा से विवाह बंधन में बंधे। यह आयोजन कोविड-19 के नियमों के अनुसार पूरा किया गया। दंपती सुनील व सुषमा ने बताया कि देव आज्ञा के अनुसार उन्होंने परंपरा का निर्वहन किया और वे खुश हैं।

बच्चों की खुशी व देवता की आज्ञा सर्वाेपरि

लड़के के माता-पिता दुर्गा देवी और हेम सिंह और लड़की के माता-पिता उमा देवी व मनोहर सिंह ने कहा बच्चों का विवाह परंपरा के अनुसार हुआ। बच्चों की खुशी के साथ देवता की आज्ञा सर्वोपरि है। वे श्राद्ध को बाधा नहीं मानते।

शादी में श्राद्ध या अशुभ महीना नहीं देखा जाता

चौहण घाटी के दैत्य देवता के गूर टीकम राम बताते हैं कि यह कार्य देवता के आदेशानुसार होता है। इसमें देवता ही दिन तय करते हैं। इसमें श्राद्ध या अशुभ महीना नहीं देखा जाता। विवाह में अधूरी रस्में निभाई जाती हैं।

यह है मान्‍यता

सराज घाटी के कोटलू नारायण देवता के पुरोहित रणजीत शर्मा ने कहा भागकर शादी करने की परंपरा पुरानी है। इसमें देवता की आज्ञा के अनुसार विवाह होता है। अगर श्राद्धों का समय हो तो पंडित भाग नहीं लेते। इसके पीछे मान्यता है कि श्राद्धों में भगवान गणेश की पूजा नहीं की जाती।

आदि काल से है परंपरा

मंडी के साह‍ित्‍यकार धर्मपाल कपूर का कहना है लड़की को भगाकर शादी करने की परंपरा आदि काल से है। लाहुल से यह परंपरा कुल्लू और सराज घाटी में आई है। इसमें श्राद्ध का समय भी बाधा नहीं बनता। देव आज्ञा को ही सर्वोपरि माना जाता है।


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