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हिमाचल प्रदेश की तीन विभूतियों को मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार

हिमाचल प्रदेश की तीन विभूतियों को पद्मश्री से अलंकृत किया जाएगा। सिरमौर जिले के मझगांव के निवासी विद्यानंद सरैक को साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पुरस्कार मिलेगा। चंबा रूमाल के लिए विशिष्ट पहचान बनाने वाली ललिता वकील को कला के क्षेत्र में पद्मश्री मिलेगा।

By Vijay BhushanEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 11:11 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 11:11 PM (IST)
हिमाचल प्रदेश की तीन विभूतियों को मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार
चंबा रूमाल के लिए पहचान बनाने वाली ललिता वकील। जागरण

चंबा/नाहन, जागरण टीम। हिमाचल प्रदेश की तीन विभूतियों को पद्मश्री से अलंकृत किया जाएगा। सिरमौर जिले के मझगांव के निवासी विद्यानंद सरैक को साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पुरस्कार के लिए चुना गया है। चंबा रूमाल के लिए विशिष्ट पहचान बनाने वाली ललिता वकील को कला के क्षेत्र में पद्मश्री मिलेगा। इसके अलावा बड़ू साहिब शिक्षण संस्थान के संस्थापक बाबा इकबाल सिंह भी पद्मश्री के लिए चुने गए हैैं।

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चंबा रूमाल को सहेजने के लिए ललिता वकील को मिलेगा पद्मश्री

चंबा रूमाल को नया स्वरूप देने व प्रतिस्पर्धा में नए डिजाइन तैयार कर इसे विश्व पटल पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाली आकांक्षी जिला चंबा की ललिता वकील का चयन पद्मश्री पुरस्कार के लिए हुआ है। वह चंबा की पहली महिला हैं, जिनका चयन विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल करने वाले देशभर के 128 लोगों की सूची में हुआ है। यह हिमाचल व आकांक्षी जिला चंबा के लिए गर्व का विषय है।

ललिता वकील 1970 से चंबा रूमाल की कारीगरी को सहेजने व इसे नए रंग रूप में ढालने का कार्य कर रही हैं। उन्होंने जिले की कई युवतियों को मुफ्त प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा है। ललिता ने बताया कि उनका अधिकांश समय कढ़ाई में व्यतीत होता है। वह पुराने क्राफ्ट में नई पेंङ्क्षटग को जगह दे रही हैं। इससे चंबा रूमाल की मांग बढ़ रही है। 17वीं सदी में राजा पृथ्वी ङ्क्षसह ने चंबा रूमाल पर दो रुखा टांका कला शुरू की। उनके समय चंबा रियासत में लोगों के साथ शाही परिवार भी चंबा रूमाल की कढ़ाई करते थे और इसे उपहार स्वरूप बेटियों को शादी में देते थे। 18वीं शताब्दी में कारीगर इस कला से जुड़े हुए थे। उस समय के राजा उमेद ङ्क्षसह ने इस कला और कारीगरों को संरक्षण देकर चंबा रूमाल को विदेशों तक पंहुचाया था। लंदन के विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम में इसे रखा गया। चंबा के राजा गोपाल ङ्क्षसह ने 1883 में ब्रिटिश सरकार के नेता को इसे भेंट किया था। इसमें कुरुक्षेत्र युद्ध की कृतियों को उकेरा गया है। 1911 में राजा भूरी ङ्क्षसह ने भी इस कला को उन्नत बनाने में मदद की थी। दिल्ली दरबार में उन्होंने ब्रिटेन के राजा को चंबा रूमाल की कलाकृतियां तोहफे में दी थीं।

पहले भी मिल चुके हैं कई अवार्ड

कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर ललिता को 1993 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 1995 में उन्हें लखनऊ में बेस्ट क्राफ्ट वूमेन अवार्ड मिला है। 1997 में दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस पर पर भी उन्हें सम्मानित किया था। 2000 में कला श्री अवार्ड व 2006 में कला रतन अवार्ड मिला है। मार्च 2019 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति राम नाथ कोन्विद ने उन्हें सम्मानित किया।

विजय शर्मा व मुसाफिर राम भारद्वाज को भी मिल चुका है पद्मश्री

मुसाफिर राम भारद्वाज को वर्ष 2014 में संगीत व वाद्ययंत्र तथा पहाड़ी चित्रकला में महारत हासिल विजय शर्मा को वर्ष 2012 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

मैं भारत सरकार का आभार व्यक्त करती हूं, जिन्होंने मुझे इसके काबिल समझा है। चंबा रूमाल को नए रंग-रूप में ढालने और इस पौराणिक कला को और बेहतर बनाने के लिए प्रयास जारी रहेगा।

-ललिता वकील

इनसे सीखें लोक संस्कृति के संरक्षण की विद्या

सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के देवटी मझगांव निवासी विद्यानंद सरैक को पद्मश्री से अलंकृत किया जाएगा। उन्हें साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। विद्यानंद सरैक को वर्ष 2016 में लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है।

82 वर्षीय विद्यानंद सरैक आज भी हिमाचली लोक गायन, उपन्यास और हिमाचली लोक संगीत सहित पारंपरिक सीहटू नृत्य के लिए अपनी विशेष पहचान रखते हैं। आठ वर्ष की आयु में विद्यानंद सरैक ने दिल्ली में आल इंडिया रेडियो पर पहला प्रोग्राम दिया था। उसके बाद देशभर में कार्यक्रम किए और सिरमौर सहित प्रदेश की संस्कृति को संरक्षण के लिए प्रयासरत रहे। कुछ वर्षों से वह सिरमौर के आसरा चूड़ेश्वर कला मंच के संरक्षक हैं। विद्यानंद सरैक ने हिमाचली और सिरमौर की पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत को उपन्यासों में भी उतारा है।

उन्होंने हिमाचली संस्कृति तथा लोक विद्याओं पर कई किताबें लिखी हैं। पारंपरिक लोक नृत्य जैसे ठोडा सिंटू, बड़ाहलटू, हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पान चढ़े के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में अनुवाद किया है। विद्यानंद सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर व देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं।

 पांच बच्चों से शुरुआत, अब कई शिक्षण संस्थान

बडू साहिब शिक्षण संस्थान के संस्थापक बाबा इकबाल सिंह को सामाजिक कार्यों के लिए इस साल पद्मश्री पुरस्कार से अलंकृत किया जाएगा। बाबा इकबाल सिंह ने 1987 तक हिमाचल प्रदेश कृषि एवं बागवानी विभाग में निदेशक के पद पर भी सेवा दी। 1986 में उन्होंने जिला सिरमौर के पच्छाद उपमंडल के तहत लाना पलटा पंचायत के बडू साहिब में पांच बच्चों से अकाल स्कूल की शुरुआत की थी।

97 वर्षीय बाबा इकबाल सिंह को कुछ वर्ष पूर्व शिरोमणि पंथ रतन पटना साहिब की ओर से दिया गया था। गत वर्ष अकाल तख्त अमृतसर की ओर से उन्हें विद्या मार्तंड पुरस्कार देने की घोषणा भी हुई है। बाबा इकबाल सिंह संत तेजा सिंह महाराज के संपर्क में 1950 में उस समय आए थे, जब वह खालसा कालेज अमृतसर से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उसके बाद 1956 में पहली बार वह बडू साहिब में भूमि देखने पहुंचे और 1959 में गांव के स्थानीय व्यक्ति से जमीन खरीदी। यहां पर संत तेजा सिंह महाराज के आदेशा पर शिक्षण संस्थान खोलने के प्रयास शुरू किए थे।

आज बडू साहिब विश्व में प्रमुख शिक्षण संस्थान बन चुका है। यहां पर इंटरनेशनल बिजनेस स्कूल, इटरनल यूनिवर्सिटी, अकाल स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज सहित कई बड़े शिक्षण संस्थान हैं। ये सब संस्थान बाबा इकबाल सिंह के योगदान से ही संभव हुए हैं।


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