डलहौजी के साथ रहा है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सेहत का नाता, यहां होता था गुप्त डाक का आदान प्रदान
Subash Chandra Bose Jayanti 2021 ऐसे लोग अब डलहौजी में नहीं मिलते जिन्होंने नेताजी को तब देखा हो जब वह डलहौजी आए थे। सुभाषचंद्र बोस इस शहर की कहानी का ऐसा अध्याय है जो कभी बुझ नहीं सकता। नेताजी सुभाषचंद्र बोस का डलहौजी से गहरा नाता रहा है।
विशाल सेखड़ी, डलहौजी। ऐसे लोग अब डलहौजी में नहीं मिलते जिन्होंने नेताजी को तब देखा हो, जब वह डलहौजी आए थे। लेकिन सुभाषचंद्र बोस इस शहर की कहानी का ऐसा अध्याय है जो कभी बुझ नहीं सकता। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.... कहने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का पर्यटन नगरी डलहौजी से गहरा नाता रहा है। देश के उस महान सपूत को जब क्षय रोग ने घेरा तो डलहौजी के जलवायु में उन्हें राहत के पल मिले। स्वास्थ्य लाभ के लिए नेताजी लगभग पांच माह डलहौजी में ठहरे थे। देश की आजादी के लिए कई योजनाएं भी नेताजी ने डलहौजी में ही बनाई थीं। नेताजी जैसी शख्सियत से जुड़े होने की वजह से डलहौजी काफी विख्यात है। डलहौजी प्रवास के दौरान नेताजी जिस होटल व कोठी में ठहरे थे, वे आज भी मौजूद हैं। उनके द्वारा उपयोग किए बेड, कुर्सी, टेबल व अन्य सामान भी रखा गया है। यह और हालांकि नेताजी जिस कमरे में ठहरे थे, वहां अब लोगों का जाना वर्जित है।
कोई भी व्यक्ति इन जगह के फोटो नहीं ले सकता। ऐसे लोग अब नहीं हैं जिन्होंने नेताजी को देखा हो लेकिन लोगों ने अपने बुजुर्गों से नेताजी के डलहौजी प्रवास के कई किस्से सुन रखे हैं। उन किस्सों को डलहौजी निवासी बड़े गौरव के साथ सुनाते भी हैं।डलहौजी निवासी कवि एवं साहित्यकार बलदेव मोहन खोसला बताते हैं कि 1937 में अंग्रेजों की कैद में नेताजी को क्षय रोग (टीबी) के लक्षण पाए गए थे। नेताजी के बीमार होने पर अंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया, जिसके बाद मई,1937 में नेताजी डलहौजी आए थे।
डलहौजी आने पर नेताजी गांधी चौक के समीप स्थित डलहौजी के सबसे पुराने होटलों में से एक होटल मेहर के कमरा नंबर दस में ठहरे थे परंतु इंग्लैंड में नेताजी की सहपाठी रही कांग्रेस नेता डा. धर्मवीर की पत्नी जेन धर्मवीर को जब नेताजी के डलहौजी में होने का पता चला तो वह भी मेहर होटल पहुंच गईं। जेन धर्मवीर ने नेताजी को होटल में रहने की बजाय गांधी चौक के समीप ही पंजपूला मार्ग स्थित उनकी कोठी कायनांस में रहने का अनुरोध किया। क्योंकि डा. धर्मवीर नेताजी के मित्र थे, इसलिए नेताजी ने जेन धर्मवीर का आग्रह स्वीकार कर लिया और वह कायनांस कोठी में रहने के लिए आ गए।
होटल मेहर से कायनांस कोठी ले जाने से पहले तत्कालीन डलहौजी कांग्रेस के प्रधान गुलाम रसूल की अगुआई में शहरवासियों ने नेताजी का भव्य स्वागत किया था। डलहौजी में करीब पांच माह के प्रवास के दौरान नेताजी करेलनू मार्ग पर नियमित रूप से सैर करते थे और बावड़ी का पानी पीते थे। बावड़ी के समीप वन क्षेत्र में कई घंटे बैठकर प्रकृति से संवाद करते थे। बताया जाता है कि नेताजी की गुप्त डाक का आदान-प्रदान बावड़ी के समीप वन क्षेत्र में ही होता था। हालांकि डाक कौन लेकर आता व जाता था, यह आज तक रहस्य ही है। नियमित सैर व बावड़ी का पानी पीकर नेताजी को काफी स्वास्थ्य लाभ हुआ।
डलहौजी में नेताजी को जिस बावड़ी के पानी का नियमित सेवन करने से स्वास्थ्य लाभ हुआ था, उस बावड़ी को नेताजी के नाम पर सुभाष बावड़ी के नाम से जाना जाता है। बावड़ी की देखरेख का जिम्मा नगर परिषद डलहौजी संभालती है, वहीं शहर के एक चौक का नाम भी नेताजी के नाम पर सुभाष चौक रखा गया है। चौक में नेताजी की आदमकद प्रतिमा लगी है।
डलहौजी की शुद्ध जलवायु में रहने व बावड़ी के पानी का सेवन व नियमित सैर से नेताजी स्वस्थ्य हो गए जिसके बाद नेताजी अक्टूबर में एक दिन बिना किसी से मिले डलहौजी से लौट गए थे। बताया जाता है कि नेताजी डलहौजी से एक लॉरी (ट्रक) में बैठकर पठानकोट गए थे। यह भी बताया जाता है कि उक्त लॉरी में पठानकोट से समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं डलहौजी आती थीं। डलहौजी से पठानकोट जाने के लिए नेताजी के लिए उसी लॉरी में व्यवस्था की गई थी। लॉरी के पीछे एक कुर्सी रखी गई थी जिस पर बैठकर नेताजी पठानकोट तक गए थे। उसके बाद नेताजी फिर से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे।
हिमाचल के लेखक एवं सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी श्रीनिवास जोशी के अनुसार, सुभाषचंद्र बोस ने 22 जुलाई, 1937 को डलहौजी से ही लिखा था, 'मुझे आशा है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बाद हमारे संसाधन संपन्न जलाशय और हेल्थ रिसॉर्ट बहुत तरतीब के साथ स्वास्थ्य केंद्रों के रूप में विकसित किए जाएंगे ताकि सेहत के लिए हमें विदेश न भागना पड़े।