माता-पिता के पास ही रहेगी 'लवन्या'
डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा में बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए गोद दे दी बच्ची अब अपने असली माता-पिता के पास ही रहेगी।
जेएनएन, टांडा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा में बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए गोद दे दी बच्ची अब अपने असली माता-पिता के पास ही रहेगी। शुक्रवार को डिस्ट्रिक वेलफेयर सोसायटी के चेयरमैन के सामने बच्ची के माता-पिता के बयान दर्ज किए गए। सारे दस्तावेजों की पड़ताल के बाद बच्ची असली माता-पिता को सौंप दी गई। इस मामले में बच्ची के माता-पिता के खिलाफ दर्ज केस की जांच जारी रहेगी। मामले में टाडा मेडिकल कॉलेज प्रशासन के खिलाफ बच्ची को लेकर अपनाई गई लापरवाही पर मामला दर्ज हो सकता है।
पुलिस इस बात की जाच करेगी कि बच्ची के जन्म के रिकॉर्ड के साथ किसने छेड़छाड़ की। इसमें किसका हाथ है। मामले में लापरवाही बरतने व रिकॉर्ड से छेड़छाड़ करने वाले कर्मचारियों पर शिकंजा कसेगा। पुलिस यह भी जांच करेगी कि कहीं अस्पताल में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का धंधा तो नहीं चल रहा है। वहीं शुक्रवार को डीएसपी प्रोबेशनर अनिल ने टांडा अस्पताल में अब तक गोद दिए गए बच्चों व इस संबंध में अपनाई प्रक्रिया से संबंधित फाइलों को भी खंगाला।
उधर, डीएसपी कांगड़ा पूर्ण चंद ठुकराल ने बताया कि बच्ची को डिस्टिक वेलफेयर सोसायटी की उपस्थिति में उसके असली माता-पिता को सौंप दिया गया। इस संबंध में दर्ज केस की छानबीन जारी रहेगी। इस मामले में अस्पताल के कर्मचारियों की संतलिप्ता की भी जांच की जाएगी। वहीं, डिस्टिक वेलफेयर सोसायटी के चेयरमैन हर्षवर्धन वैद्य का कहना था कि बच्ची के असली माता-पिता की पहचान का सत्यापन करने व बच्ची से संबंधित दस्तावेजों की जांच के बाद उसे माता-पिता को सौंप दिया है। डिस्ट्रिक्ट वेलफेयर सोसायटी का काम बच्ची की देखभाल व सुरक्षा सुनिश्चित करना था, बाकी कार्रवाई पुलिस को करनी है।
यह था मामला टांडा
मेडिकल कॉलेज में जुलाई में जवाली की महिला ने बच्ची को जन्म दिया। तीसरी बच्ची होने पर उन्होंने इसे बिना पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनाए अस्पताल के एक कर्मचारी को गोद दे दिया। उक्त कर्मचारी ने बच्ची को अपने रिश्तेदार को सौंप दिया। उसने बच्ची का जन्म प्रमाण पत्र अस्पताल से लिया, जिसमें पिता का नाम अपना लिखवाया व मां का नाम वही रहा। इस मामले को अस्पताल के रिकॉर्ड ब्रांच के ही एक कर्मचारी ने पकड़ा व अस्पताल प्रशासन के ध्यान में लाया।
अस्पताल की जांच पर उठे सवाल
मामले में अस्पताल प्रशासन ने जांच करवाई और इसका जिम्मा रिकॉर्ड ब्रांच की ही एक अधिकारी को सौंपा गया। अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस अधिकारी के पास रिकॉर्ड ब्रांच का जिम्मा था तो उन्हें जांच कैसे सौंप दी गई? तीन दिन में जांच रिपोर्ट सौंपने के आदेश के बावजूद 20 दिन रिपोर्ट सौंपने में कैसे लगे? क्या अस्पताल प्रशासन को मामले में गड़बड़ दिखी तो पुलिस रिपोर्ट क्यों दर्ज नहीं करवाई गई?