नमो देव्यै, महादेव्यै: बुलंद हौसले से झुकाया दुश्वारियों का पहाड़, बनाई टीम इंडिया में जगह
Cricketer Sushma Verma दुश्वारियों के पहाड़ को लांघकर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की भरोसेमंद सदस्य बन गई।
शिमला, ताराचंद शर्मा। मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है, हौसला हो तो फासला क्या है! हौसले की रहनुमाई करता यह शेयर मानो हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव गढ़ेरी (शिमला) की सुषमा वर्मा जैसी बेटियों के लिए ही बना है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की वरिष्ठ सदस्य सुषमा वर्मा ने बचपन में ही ठान लिया था कि उसे कामयाब क्रिकेटर बनना है। जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड्डियों का खेल खेलते हैं, सुषमा ने बल्ला थाम लिया। दुश्वारियों के पहाड़ को लांघकर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की भरोसेमंद सदस्य बन गई। सुषमा हिमाचल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली (महिला-पुरुष दोनों में) पहली क्रिकेटर हैं।
हालात मुश्किल, इरादे बुलंद
हालातों से लड़कर इस बेटी ने जिस तरह मंजिल हासिल की वह न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल है। सुषमा शिमला से करीब सौ किलोमीटर दूर गढ़ेरी गांव की रहने वाली हैं। उन्हें बचपन से ही खेलों से लगाव था। लेकिन बेहद कठिन और दुर्गम पहाड़ी इलाके में खेल सुविधाओं का अभाव था। इसके बावजूद सुषमा ने जीवन का लक्ष्य खेल को ही चुना।
सफलता की डगर पर पहला कदम
शुरुआत में सुषमा ने छोटे क्रिकेट टूर्नामेंटों में हुनर को मांजना शुरू किया। हर मुकाबले के साथ इस हरफनमौला बेटी का खेल निखरता गया। परिणामस्वरूप 2009 में शिमला में हुए हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के ट्रायल में सुषमा ने प्रदेश महिला क्रिकेट टीम में जगह बना ली। इसके बाद 2011 में सुषमा की कप्तानी में हिमाचल प्रदेश की महिला क्रिकेट टीम अखिल भारतीय अंडर-19 टूर्नामेंट की उपविजेता बनी। 2013 में घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करते हुए सुषमा ने भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बना ली। वह महिला वल्र्ड कप-2017 के फाइनल में पहुंचने वाली भारतीय टीम इंडिया में बतौर विकेटकीपर थीं।
हिमाचली बेटियों के लिए कुछ करने की इच्छा
सुषमा का मानना है कि हिमाचल में हुनर की कमी नहीं है। प्रदेश के दूर दराज के क्षेत्रों में प्रतिभाएं मौजूद हैं। लेकिन उन्हें आगे बढऩे के लिए सही मंच नहीं मिल पाता है। सुषमा की इच्छा है कि इन प्रतिभाओं को निखारने के लिए काम करूं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है, लेकिन जरूरत है उसे पहचान कर सही दिशा देने की।
परिवार का मिले साथ
सुषमा वर्मा का कहना है कि बेटियां आगे बढ़ें इसके लिए परिवार के लोगों को भी उनका समर्थन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ रहा और हर परिस्थिति में साथ दिया। यही कारण है कि वह इस मुकाम को हासिल कर पाई। जरूरी है कि माता-पिता बेटियों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए उनके मार्ग को प्रशस्त करें।
आज जो हूं उसका कारण मेरे माता-पिता हैं। जीवन में कई बार निराशा के अवसर आए लेकिन मेरे परिवार के सदस्य हमेशा मुझे हौसला देते रहे। इसलिए जरूरी है कि सभी अभिभावक बेटियों की भावनाओं का सम्मान करें और हर मुश्किल में उन्हें हौसला दें। -सुषमा वर्मा, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की विकेटकीपर।