सियासी आश्वासनों के हिचकोले खा रहा जनजातीय क्षेत्र का दर्जा
मान सिंह मैहला चंबा जिला के भरमौर की 21 गैर जनजातीय पंचायतों को एसटी का दर्जा देने की मांग सियासी पालने में झूल रही है।
मान सिंह, मैहला
मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत चंबा जिला के भरमौर की 21 गैर जनजातीय पंचायतों को जनजातीय का दर्जा देने का मुद्दा फिर गरमा गया है। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही लोगों ने मांग उठानी शुरू कर दी है। इस मांग को लोग करीब छह दशकों से नेताओं व सरकारों के समक्ष रख चुके हैं। आश्वासन तो मिलते रहे हैं, लेकिन कार्रवाई आज तक नहीं हुई है। जनजातीय क्षेत्र का दर्जा न मिलने से जनता को उन सभी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है, जो जनजातीय दर्जा प्राप्त क्षेत्र को मिलती हैं। विधानसभा क्षेत्र भरमौर की कुल 66 पंचायतों में मैहला ब्लॉक की 21 गैर जनजातीय पंचायतों के लोगों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिलने की उम्मीद थी। गैर जनजातीय पंचायतों में भी भौगोलिक परिस्थितियां काफी कठिन हैं। इन पंचायतों के लोगों का रहन-सहन, भाषा और वेशभूषा जनजातीय क्षेत्र से मेल खाने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। गैर जनजातीय क्षेत्र की अधिकतर पंचायतें आजादी के 72 साल बाद भी सड़क सुविधा से वंचित हैं। मरीज को आज भी पालकी में डालकर मुख्य मार्ग तक पहुंचाना पड़ता है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी इन पंचायतों में सड़क, शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हो पाया है।
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इन पंचायतों के लोग उठा रहे मांग
गुराड़, डुलाड़ा, किलोड़, प्रीणा, कुनेड़, राड़ी, बलोठ, खुंदेल, लेच, कूंर, छतराड़ी, प्यूहरा, गैहरा, ब्रेही, सुनारा, लोथल, बकाण, दाड़वीं, बंदला, मैहला व चड़ी पंचायतें 60 से मांग को उठा रही हैं। जब चुनाव आते हैं तो इन पंचायतों को जनजातीय दर्जा दिलाने के आश्वासन मिलते हैं।
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जनता के साथ मैं भी आवाज बुलंद करता आया हूं। लेकिन अभी तक मांग को पूरा करने के लिए सरकारों ने कोई भी कवायद शुरू नहीं की है। जनजातीय दर्जा मिलना इन पंचायतों का हक है।
-ललित ठाकुर, जिला परिषद सदस्य, किलोड़ वार्ड।
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गैर जनजातीय क्षेत्र की पंचायतों की जनता की जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की मांग जायज है। इन्हें जनजातीय का दर्जा मिलना चाहिए, क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां बिल्कुल वैसी ही हैं, जैसी की जनजातीय क्षेत्र की परिस्थितियां हैं।
-सुरजीत भरमौरी, राज्य महासचिव, युकां।
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सभी मंचों पर मांग को उठाया जा चुका है, लेकिन अभी तक जनता के हाथ खाली हैं। आखिर ऐसी क्या वजह है कि इन पंचायतों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की कवायद शुरू नहीं की जा रही है।
-मोनू शर्मा, पूर्व उपप्रधान, प्यूहरा पंचायत।
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जब तक जनजातीय क्षेत्र का दर्जा नहीं मिलता है, तब तक जनता को असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिलना जरूरी है।
-योगेश ठाकुर, सामाजिक कार्यकर्ता।
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ग्रामीण काफी साल से संघर्ष कर रहे हैं। आज तक भले ही लोगों की झोली खाली रही हो, लेकिन जब तक मांग को पूरा नहीं किया जाता है, तब तक मांग को उठाते रहेंगे।
-परविंद्र ठाकुर, निवासी पंचायत बलोठ।
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आखिर सरकारों की ऐसी क्या मजबूरी है कि 21 पंचायतों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने में देरी हो रही है। एक जनजातीय क्षेत्र का दर्जा पाने के लिए जो भी औपचारिकताएं होनी चाहिए, उन्हें ये पंचायतें पूरी करती हैं।
-खेम सिंह, निवासी धरवाला।
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लोगों की मांग जायज है। क्योंकि यहां सुविधाओं की कमी के साथ भौगोलिक परिस्थितियां भी काफी कठिन हैं। इन्हें भी ठीक उन्हीं परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, जैसे की जनजातीय क्षेत्र के लोगों को।
-देशराज, निवासी पंचायत ब्रेही।
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यदि पंचायतों को गैर जनजातीय से जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिलता है तो विकास को नए पंख लगेंगे। लोगों को पेश आने वाली दिक्कतें कम होंगी। इसलिए जल्द इन पंचायतों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देना होगा।
-शिव शंकर, निवासी पंचायत लोथल।