दिव्यांगों के लिए घर छोड़ काम कर रही श्रुति
international womens day 22 साल की उम्र में पहाड़ों पर साइकलिंग का शौक मुंबई से श्रुति मोरे को कुल्लू खींच लाया था। लेकिन जब यहां पर श्रुति ने दिव्यांगों को देखा तो यहीं की होकर रह गई।
मुकेश मेहरा, कुल्लू। 22 साल की उम्र में पहाड़ों पर साइकलिंग का शौक मुंबई से श्रुति मोरे को कुल्लू खींच लाया था। लेकिन जब यहां पर श्रुति ने दिव्यांगों को देखा तो यहीं की होकर रह गई। वर्ष 2012 में लेह से कुल्लू साइकङ्क्षलग के दौरान सजला गांव में एक पुराने घर को देखने के लिए श्रुति रुकी तो दिव्यांग लड़की सोनाली मिली, जिसकी हालत ठीक नहीं थी। पेशे से श्रुति ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट है, जो मानसिक रूप से कमजोर बच्चों का इलाज करती थीं। मुंबई लौटने पर उन्होंने सोनाली के इलाज के लिए यहां की एनजीओ से संपर्क किया और उसके बाद स्वयं यहां कुल्लू आई। कुल्लू आने के बाद वह हैंडीमाचल संस्था से जुड़ी और अब यहां पर दिव्यांग बच्चों का इलाज कर रही है।
बकौल श्रुति, जीएस मेडिकल कॉलेज एंड केईएम अस्पताल मुंबई से ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की साढ़े चार साल की डिग्री हासिल करने के बाद वह दिव्यांग बच्चों पर काम करना चाहती थी। मनाली में साइकङ्क्षलग के दौरान सोनाली के केस के बाद यहां के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि कुल्लू-मनाली व प्रदेश के अन्य स्थानों पर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट ही नहीं हैं। इसके बाद हैंडीमाचल के साथ संपर्क किया और अब कुल्लू में दिव्यांग बच्चों का इलाज कर रही हैं। हैंडीमाचल सेंटर में करीब 100 बच्चे इलाज करवाने आते हैं।
50 फीसद से अधिक मामलों में बच्चों को बनाया आत्मनिर्भर
श्रुति ने बताया कि अब तक 50 फीसद से अधिक मामले ऐसे हैं जिसमें बच्चे आत्मनिर्भर बने हैं लेकिन उनके माता-पिता पर हैंडीमाचल आकर काउंसिलिंग करते हैं। वह स्वयं गांवों में जाकर दिव्यांग बच्चों के बारे में जानकारी भी जुटाती हैं।
दिमागी रूप से कमजोर बच्चों पर कर रहीं काम
श्रुति ने बताया कि वह ऐसे बच्चों पर काम करती हैं जो दिमागी रूप से कमजोर होते हैं। अगर इन बच्चों को समय पर उपचार दिया जाए तो वे ठीक हो सकते हैं। काउंसिलिंग ट्रेनिंग के दौरान माता-पिता को भी ट्रेनिंग करवाई जाती है, ताकि वे घर पर भी बच्चों का ख्याल रख सकें।