हुनर से तोड़ दी आधी आबादी की सीमा
मुनीष गारिया धर्मशाला एक दौर था जब बस चलाने का काम सिर्फ पुरुषों तक ही सीमित था। आज से 10 साल पहले तक प्रदेश में यही अवधारणा थी कि बस सिर्फ पुरुष ही चला सकते हैं लेकिन अब दौर बदल गया है। अब महिलाएं भी बसें चलाती हैं। महिलाओं यानी आधी आबादी के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने वाली हैं जिला सोलन के अर्की विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश की पहली हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की बस चालक सीमा ठाकुर। सीमा ने हुनर से महिलाओं के लिए बनाई कथित सीमा को तोड़ दिया है।
मुनीष गारिया, धर्मशाला
एक दौर था जब बस चलाने का काम सिर्फ पुरुषों तक ही सीमित था। आज से 10 साल पहले तक प्रदेश में यही अवधारणा थी कि बस सिर्फ पुरुष ही चला सकते हैं लेकिन अब दौर बदल गया है। अब महिलाएं भी बसें चलाती हैं। महिलाओं यानी आधी आबादी के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने वाली हैं जिला सोलन के अर्की विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश की पहली हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की बस चालक सीमा ठाकुर। सीमा ने हुनर से महिलाओं के लिए बनाई कथित सीमा को तोड़ दिया है।
धर्मशाला में वीरवार को हुए राज्यस्तरीय नारी को नमन समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बस स्टैंड से त्रिगर्त सभागार धर्मशाला तक महिलाओं से भरी बस में आए। खास बात यह थी कि इस बस को कोई और नहीं बल्कि सीमा ठाकुर चला रही थीं। सीमा ने बस को आयोजन स्थल तक पहुंचाया और पार्क करने के बाद समारोह में शामिल हुईं। प्रदेशभर की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत सीमा ठाकुर को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपनी ओर से 500 रुपये का शगुन दिया। साथ ही एचआरटीसी के अधिकारियों को निर्देश दिए कि सीमा को अब सामान्य रूट पर नहीं, बल्कि अंतरराज्यीय रूट में लग्जरी बस लेकर भेजा जाएगा।
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चौथी कक्षा से था बस चलाने का शौक
सीमा के पिता बलिराम ठाकुर भी एचआरटीसी में बस चालक थे। सीमा चौथी कक्षा में पढ़ती थी तो पिता ने बस का स्टेयरिंग छूने के लिए कहा था। बस यह शौक धीरे-धीरे परवान चढ़ा। पिता को गुरु मान उनसे ड्राइविग सीखी और प्रदेश की पहली महिला बस चालक बन गई। अभी सीमा शिमला व सोलन से चंडीगढ़ रूट पर जाती हैं।
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अंग्रेजी में एमए है सीमा ठाकुर
सीमा ठाकुर का जितना नियंत्रण बस के स्टेयरिग पर है उतना ही शिक्षा पर भी है। सीमा ने शिमला के कोटशेरा कालेज से बीए और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से एमए अंग्रेजी की है। उनकी अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ है और वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं।
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बचपन से ही पिता को देखकर बस चलाने का मन करता था। पिता पहाड़ की घुमावदार सड़कों पर बस चलाते समय अक्सर गुनगुनाते थे। मैं भी सोचती थी कि पिता की तरह बस चालक बनू। बस चालक होने के नाते सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है सवारियों को मंजिल पर सही से उतारना। प्रदेश सरकार महिलाओं को प्रोत्साहन दे रही है।
-सीमा ठाकुर, बस चालक एचआरटीसी