सैनिटाइजर घोटाला: पुरानी राशि खर्चे बिना कोरोना फंड से मांग लिए अतिक्ति दस लाख, सांठगांठ का आरोप
Sanitizer Scam राज्य सचिवालय शिमला में हुए सैनिटाइजर घोटाले में एक और खुलासा हुआ है।
शिमला, जेएनएन। राज्य सचिवालय शिमला में हुए सैनिटाइजर घोटाले में एक और खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक पुरानी राशि को खर्च किए बिना सैनिटाइजर की खरीद के लिए 10 लाख रुपये और मांगे गए थे। आरोप है कि अधीक्षक ने इस आशय का पत्र लिखने के लिए डीङ्क्षलग सहायक की बजाय अवकाश पर चल रही महिला को बुलाया। इसके पीछे बहाना बनाया गया कि डीलिंग सहायक चूंकि चतुर्थ श्रेणी कर्मी से पदोन्नत हुआ है, इस कारण उसकी पत्र लिखने की शैली पर पकड़ नहीं है।
इस पत्र में कोविड फंड से और दस लाख रुपये की राशि मांगी गई। पत्र को सचिव के पास नहीं भेजा गया। उप सचिव को ही भिजवाया, पर इस बीच पोल खुल गई। अब अतिरिक्त बजट मांगने पर सवाल खड़े हो गए हैं। आपातकाल की आड़ में कुछ और खरीद की जानी थी, जबकि पहले से आवंटित राशि में से सात-आठ लाख ही खर्च किए गए। इनमें मास्क की खरीद भी शामिल है। मास्क जेल विभाग से खरीदे गए हैं।
विजिलेंस को अधीक्षक और सप्लायर के बीच सांठगांठ का भी पता चला है। अवकाश के दिन दोनों राज्य सचिवालय आए और स्टोर की ओर जाते दिखाई दिए। जांच एजेंसी ने इस संबंध में सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ली है। इसकी जांच की जा रही है। हालांकि स्टोर के अंदर सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं, लेकिन इससे अधीक्षक और सप्लायर के बीच गहरा कनेक्शन भी साबित हो रहा है। अधीक्षक के पास आरएंडआइ का अतिरिक्त प्रभार था, जबकि कंट्रोल रूम प्रभारी का पूर्ण दायित्य उसी के पास था। इसी करण अवकाश वाले दिन भी उसने सरकारी गाड़ी इस्तेमाल की। लेकिन स्टोर में क्या करने गए थे, इस पर सवाल उठ रहे हैं।
सभी छह कर्मियों की बढ़ी मुश्किलें
सचिवालय के छह अधिकारियों और कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ गई है। हालांकि अभी तक चंद कर्मचारियों की ही भूमिका सामने आई है, लेकिन जांच से सभी को गुजरना होगा। अभी विजिलेंस ने केवल सैनिटाइजर के सप्लायर ललित कुमार को ही आरोपित बनाया है।
विपक्ष का भी है दबाव
सरकार पर कारवाई करने के लिए विपक्षी दल कांग्रेस का भी दबाव है। विपक्ष इस मामले में सरकार की कार्यप्रणाली को ही कटघरे में खड़ा कर रहा है। वह विभागों में की गई सैनिटाइजर, मास्क, अन्य सामग्री की खरीद पर ही सवाल खड़े कर रही है।
सैनिटाइजर के संबंध में अधीक्षक के साथ सचिवालय गया था, लेकिन इस टेंडर के लिए अलग से लाइसेंस की जरूरत की मुझे जानकारी नहीं थी। मुझे 130 रुपये के हिसाब से कोई पेमेंट नहीं हुई। एमआरपी रेट 150 रुपये का मार्का मैंने रेट जस्टिफिकेशन के हिसाब से लगाया था, बिल 130 का ही बनाया था। मैंने जानबूझ कर कोई अपराध नहीं किया है। इसके पीछे सत्ताधारी दल का कोई नेता संलिप्त नहीं है। -ललित कुमार, आरोपित सप्लायर।
मामले की जांच चल रही है। आरोपित सरकारी ठेकेदार के पास वैध लाइसेंस नहीं था। अभी जांच के बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है। -अनुराग गर्ग, एडीजीपी (विजिलेंस)