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आप भी कीजिए ना संस्कृति की सैर, आइए जानें क्‍यों मनाते हैं सायर उत्‍सव

सैर का त्योहार (सायर त्योहार )अश्विन महीने की सक्रांति को मनाई जाता है। वास्तव में यह त्योहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद् ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

By Richa RanaEdited By: Published: Tue, 15 Sep 2020 03:39 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 08:59 AM (IST)
आप भी कीजिए ना संस्कृति की सैर, आइए जानें क्‍यों मनाते हैं सायर उत्‍सव
आप भी कीजिए ना संस्कृति की सैर, आइए जानें क्‍यों मनाते हैं सायर उत्‍सव

भवारना, शिवालिक नरयाल। हिमाचल में यूं तो साल भर बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं और लगभग हर सक्रांति पर हिमाचल प्रदेश में कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है जोकि हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी संस्कृति का प्रतीक है। सैर उत्सव या सायर उत्सव भी इन्हीं त्योहारों में से एक है। सैर का त्योहार (सायर त्योहार  )अश्विन महीने की सक्रांति को मनाया जाता है। वास्तव में यह त्योहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद् ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्योहार मनाते हैं। सैर के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है। इस दिन “सैरी माता” को फसलों का अंश और मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं और साथ ही राखियां भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं।

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सर्दी की शुरूआत

बुजुर्ग कृष्णा देवी(72) बताती हैं कि ठंडे इलाकों में इसे सर्दी की शुरूआत माना जाता है और सर्दी की तैयारी शुरू हो जाती है। लोग सर्दियों के लिए अनाज और लकड़ियाँ जमा करके रख लेते हैं। सैर आते ही बहुत से त्योहारों का आगाज़ हो जाता है। सैर के बाद दिवाली तक विभिन्न व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं।

बरसात की समाप्‍ति,अन्न पूजा और पशुओं की खरीद फरोख्त

बुजुर्ग प्रीतम चंद (75),विचित्र सिंह (79 ) का कहना है कि इस उत्सव को मनाने के पीछे एक धारणा यह है कि प्राचीन समय में बरसात के मौसम में लोग दवाईयां उपलब्ध न होने के कारण कई बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते थे तथा जो लोग बच जाते थे वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे तथा बरसात के बाद पड़ने वाले इस उत्सव को ख़ुशी- ख़ुशी मनाते थे। तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। सायर का पर्व अनाज पूजा और बैलों की खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर है। कृषि से जुड़ा यह पर्व ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी धूमधाम के साथ  मनाया जाता है। बरसात के मौसम के बाद खेतों में फसलों के पकने और सर्दियों के लिए चारे की व्यवस्था किसान और पशु पालक सायर के त्योहार के बाद ही करते हैं।

इस दिन नई नवेली दुल्‍हनें आ जाती हैं ससुराल

यह त्योहार एक तरह से बरसात में बारिश के कारण एक-दूसरे से न मिल पाने के कारण मिलने का बहाना भी हो जाता है। जो लड़कियां “काला महीना” यानि भादों में अपने मायके आई होती हैं वो भी इस दिन वापिस अपने ससुराल चली जाती हैं। लेकिन इस बार लड़कियां ससुराल थोड़ा देरी से जाएंगी। भवारना के ज्योतिष सुशील शर्मा के मुताबिक श्राद्ध लगे हैं तो इन दिनों उनका अपने ससुराल आना अशुभ माना जाता है। इसलिये नवरात्र में ही उनका आना शुभ रहेगा।

  पकवान बनाते हैं इस त्‍योहार को खास

  सायर के दिन छह से सात पकवान बनाए जाते हैं जिनमें पतरोड़े, पकोडू,ओर भटुरु जरूर होते हैं। इसके अलावा खीर, गुलगुले आदि पकवान भी बनाये जाते हैं। लोग थाली में पकवान सजाकर आस पड़ोस ओर रिश्‍तेदारों में भी बांटते हैं।सायर के अगले दिन धान के खेतों में गलगल फेंके जाते हैं व अगले वर्ष अच्छी फसल के लिए लोगों द्वारा प्रार्थना भी की जाती है।


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