Himachal By Election: उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल को भी देखना पड़ा है हार का मुंह, जानिए कब-कब हुआ ऐसा
उपचुनाव में लोग सत्ता के साथ चलते हुए मतदान करते हैं लेकिन इतिहास पर नजर डाली जाए तो कांग्रेस को सत्ता में रहते हुए चार व भाजपा को एक बार हार का मुंह देखना पड़ा था।
शिमला, जेएनएन। प्रदेश के दो हलकों धर्मशाला व पच्छाद में उपचुनाव की घोषणा होते ही सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी कांग्रेस सक्रिय हो गई है। अभी प्रत्याशी तय नहीं है, लेकिन दोनों ओर से जीत के दावे होने लग गए हैं। हालांकि धारणा है कि उपचुनाव में लोग सत्ता के साथ चलते हुए मतदान करते हैं, लेकिन इतिहास पर नजर डाली जाए तो कांग्रेस को सत्ता में रहते हुए चार व भाजपा को एक बार हार का मुंह देखना पड़ा था। इसलिए उपचुनाव को लेकर जीत की गारंटी देना मुमकिन नहीं है। लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी रही थी। उसे देखते हुए प्रदेश के दो उपचुनाव पर भाजपा का पत्र बम और कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी धरातल पर नजर आ सकती है।
धूमल सरकार में रही बराबरी
धूमल सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान रेणुका सीट से कांग्रेस विधायक डॉ. प्रेम सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हुआ। यहां से डॉ. प्रेम सिंह के पुत्र विनय कुमार कांग्रेस उम्मीदवार थे, जबकि भाजपा ने हिरदा राम को टिकट दिया था। हिरदा राम जीतकर विधानसभा पहुंचे। दूसरा उपचुनाव नालागढ़ सीट से भाजपा विधायक हरि नारायण ङ्क्षसह सैनी का निधन होने के बाद हुआ। भाजपा ने हरि नारायण सैनी की पत्नी गुरनाम कौर को टिकट दिया था, लेकिन कांग्रेस के लखविंद्र सिंह राणा जीते थे।
वीरभद्र सांसद बने और भाजपा जीती
2009 में वीरभद्र सिंह के सांसद चुने जाने के बाद रोहड़ू सीट पर उपचुनाव हुआ था। इसमें कांग्रेस ने मनजीत ठाकुर को मैदान में उतारा, मगर खुशीराम बालनाटाह ने हार के सिलसिले को तोड़ते हुए भाजपा टिकट पर जीत दर्ज की थी।
भोरंज सीट पर बरकरार रखा था कब्जा
भाजपा के दिग्गज नेता आइडी धीमान के निधन के बाद उपचुनाव हुआ। उस समय कांग्रेस सत्ता में थी। कांग्रेस ने प्रोमिला देवी को मैदान में उतारा तो दूसरी ओर आइडी धीमान के पुत्र डॉ. अनिल धीमान भाजपा टिकट पर जीतकर आए। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने भोरंज सीट पर कब्जा बरकरार रखा था।
किशोरी लाल जीते थे
1983 तत्कालीन परिवहन मंत्री देशराज महाजन का देहांत होने के बाद बनीखेत विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस ने देशराज महाजन की पत्नी विमला महाजन को टिकट दिया था। भाजपा ने किशोरी लाल वैद्य को मैदान में उतारा और पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उस समय प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी।
चंद्रकुमार पहुंचे संसद में, नीरज हारा
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कांगड़ा सीट से चंद्रकुमार को मैदान में उतारा था। उस समय चंद्रकुमार गुलेर से कांग्रेस विधायक थे। उपचुनाव में चंद्र कुमार के पुत्र नीरज भारती को टिकट दिया गया और सामने भाजपा ने हरवंश राणा को उतार कर जीत दर्ज की। उस समय प्रदेश में धूमल सरकार थी।
गठबंधन सरकार में भाजपा जीती
भाजपा-हिविकां गठबंधन सरकार में दो उपचुनाव हुए थे। पहला उपचुनाव भाजपा के मास्टर वीरेंद्र के निधन के कारण हुआ था और दूसरा बैजनाथ सीट से कांग्रेस विधायक पंडित संतराम के निधन के कारण। परागपुर सीट पर मास्टर वीरेंद्र की पत्नी निर्मला देवी को भाजपा ने टिकट दिया और वह जीती। बैजनाथ सीट पर कांग्रेस ने पंडित संतराम के पुत्र सुधीर शर्मा को मैदान में उतारा और दूसरी ओर भाजपा ने दूलोराम को। यहां पर भाजपा उपचुनाव जीती थी। इसी दौरान सोलन सीट पर कांग्रेस विधायक कृष्णा मोहिनी का चुनाव उच्च न्यायालय से निरस्त होने पर पहली बार डॉ. राजीव ङ्क्षबदल भाजपा टिकट पर जीतकर आए थे। गठबंधन सरकार के दौरान तीन उपचुनाव हुए और तीनों पर भाजपा विजय रही। कांग्रेस को दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
नरेंद्र ठाकुर ने अनिता राणा को हराया था
सुजानपुर से निर्दलीय चुनाव जीतने वाले राजेंद्र राणा बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा। 2014 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने राजेंद्र राणा की पत्नी अनिता राणा को विधानसभा का टिकट थमाया। भाजपा के नरेंद्र ठाकुर विधानसभा में पहुंचे। तब प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की ही सरकार थी।