यहां रावण ने की थी शिव अराधना
Ravan worship baijnathबैजनाथ स्थित एतिहासिक शिव मंदिर की विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग ही पहचान है यहां रावण ने भी शिव अराधना की थी।
बैजनाथ, पंकज शर्मा। धौलाधार के आंचल में बसा बैजनाथ कस्बा पर्यटन व धर्म का अनूठा संगम है। बैजनाथ स्थित एतिहासिक शिव मंदिर की विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग ही पहचान है। मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ है। शिखराकार शैली से बने इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में अनूठी है। मंदिर का संबंध रावण की तपस्या से भी जोड़ा जाता है। एक ही चट्टान को तराश कर मंदिर को बनाया गया है। मंदिर के बाहर एक ही पत्थर से बनी नंदी की विशालकाय मूर्ति भी प्रतिष्ठापित है।
सावन माह के प्रत्येक सोमवार को हजारों श्रद्वालु सुप्रसिद्व खीर गंगा घाट में पवित्र स्नान कर अपने ईष्ट देवता भगवान शिव की पूजा अर्चना कर पुण्य कमाते हैं। लंकापति रावण की तपोस्थली के रूप में बैजनाथ नगरी में अचंभित करने वाली दो बातें हैं। एक तो यह कि बैजनाथ कस्बे में लगभग 700 व्यापारिक संस्थान हैं परंतु कस्बे में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि यहां सोने की दुकान करने वाले का सोना काला फिर जाता है, जिसके चलते उन दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ती हैं। देश में दशहरा हर जगह धूमधाम से मनाया जाता है तथा जगह जगह रामलीला का मंचन होता है, लेकिन बैजनाथ में न तो रामलीला का मंचन किया जाता है और न ही यहां रावण का पुतला जलाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति बैजनाथ में रावण का पुतला जलाता है तो उस व्यक्ति पर कोई घोर विपत्ति आ जाती है।
मंदिर के पुजारी शांति शर्मा ने बताया कि मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में मयूक और अहूक नाम के दो भाइयों ने करवाया था। मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग का इतिहास रावण के तप से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था, लेकिन इस जगह लघुशंका के दौरान रावण ने इस शिवलिंग को एक चरवाहे को पकड़ा दिया था काफी समय तक रावण के न लौटने पर इस चरवाहे ने इस शिवलिंग को यहीं जमीन पर रख दिया और यह शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया। कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने भी मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। 1905 के भूकंप में केवल यही मंदिर ऐसा था जिसे आंशिक रूप से नुकसान हुआ था।