कसौली गोलीकांड: सजा से बचने के लिए डीजीपी की शरण में पहुंचे 12 पुलिस कर्मचारी, जानिए पूरा मामला
Kasauli Gun Fire Incident बहुचर्चित कसौली गोलीकांड की विभागीय जांच में दोषी पाए गए हिमाचल पुलिस के 12 कर्मचारी सजा से बचने के लिए डीजीपी की शरण में पहुंच गए हैं।
शिमला, जेएनएन। पहली मई 2018 को हुए बहुचर्चित कसौली गोलीकांड की विभागीय जांच में दोषी पाए गए हिमाचल पुलिस के 12 कर्मचारी सजा से बचने के लिए डीजीपी की शरण में पहुंच गए हैं। इन सब ने आइजी (एपीटी) के फैसले को चुनौती दी है। उन्होंने पुलिस कर्मियों को कठोर दंड दिया है। इन कर्मियों की पांच साल की सेवाएं स्थायी तौर पर जब्त (फोरफीट) कर गई दी हैं।
सूत्रों के मुताबिक अपील में दोषियों ने खुद को बेकसूर बताया है। देखना यह होगा कि डीजीपी एसआर मरडी सजा बरकरार रखते हैं या फिर और कम करते हैं। मरडी इसी साल 31 मई को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। विभागीय जांच में इन कर्मचारियों की गंभीर चूक सामने आई है। जांच रिपोर्ट के अनुसार कसौली के तत्कालीन एसएचओ झगड़ा होने की आशंका के बावजूद अपने पास हथियार ही नहीं ले गए थे जबकि कसौली में बड़ी मात्रा में पुलिस बल तैनात किया गया था। धर्मपुर के एसएचओ ने तो अपने नाम हथियार ही जारी नहीं करवाया था।
गोलीकांड के बाद जिस सब इंस्पेक्टर की ड्यूटी रात्रि नाके में लगाई, उसके सामने से आरोपित की गाड़ी निकली। उन्होंने चालक से बातचीत की पर आरोपित को गाड़ी में अंदर बैठे नहीं देखा। हालांकि उन्होंने अपने डिफेंस में कहा कि वह तब ट्रैफिक खुलवाने गया था जबकि उसकी तैनाती दो अन्य कर्मियों के साथ नाके के लिए ही लगी थी। टीसीपी की अधिकारी शैलबाला के साथ जिन पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगी थी, उन्होंने भी लापरवाही बरती। दो क्यूआरटी के सशस्त्र जवान थे, उन्होंने बचाव में आरोपित पर गोली नहीं चलाई। उन्होंने पीछा तक नहीं किया, जबकि टीम ने महिला को भोजन करने के लिए अकेले ही जाने दिया।
विभागीय जांच छठी आइआरबी के डीएसपी रैंक के अधिकारी ने की। कमांडेंट ने आरोपित पुलिस कर्मियों का जवाब स्वीकार नहीं किया। उन्होंने माना कि इनके डिफेंस कहीं नहीं टिकते हैं। जांच में छोटा दंड देने की सिफारिश की गई थी। दो साल तक इंक्रीमेंट बंद होनी थी। इसके बाद अपील आइजी के पास हुई। सभी पहलुओं, तथ्यों, सुबूतों के आधार पर आइजी ने मेजर पेनेल्टी लगाई। उन्होंने जबरन रिटायरमेंट का नोटिस दिया। आरोपित पक्ष का जवाब आने के बाद उन्होंने दंड को थोड़ा कम किया। पांच साल की सेवाएं जब्त करने के आदेश दिए।
एसपी, डीएसपी के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप
प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में 14 पुलिस अधिकारियों को चार्जशीट किया था। ऐसा मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट के आधार पर किया गया था। इसमें पूर्व एसपी, पूर्व डीएसपी, दो पूर्व एसएचओ, एक नायब तहसीलदार के अलावा हेड कांस्टेबल नागेंद्र पुलिस चौकी सायरी, एचएचसी हेमंत पुलिस थाना दाड़लाघाट, कांस्टेबल संजीव कुमार थाना धर्मपुर, कांस्टेबल सुनील थाना धर्मपुर, महिला कांस्टेबल चंपा थाना धर्मपुर, कांस्टेबल ऊषा थाना धर्मपुर, कांस्टेबल शारदा थाना धर्मपुर, कांस्टेबल ईश्वर पुलिस लाइन सोलन, कांस्टेबल नरेंद्र पुलिस लाइन सोलन शामिल थे। सोलन के पूर्व एसपी मोहित चावला, डीएसपी परवाणु रमेश शर्मा भी शामिल थे। एसपी, डीएसपी के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाए थे, इस कारण उनके खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप हो गई थी।
एसडीएम पर नहीं कार्रवाई
तत्कालीन एसडीएम, नायब तहसीलदार पर कोई कारवाई नहीं हुई थी। नायब तहसीलदार के खिलाफ चार्जशीट तो जारी की थी पर बाद में इसे भी ड्रॉप कर दिया था। टीसीपी के अफसरों पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पाई थी। इस अफसरों को अवैध भवन निर्माण के लिए जिम्मेवार नहीं ठहराया गया। शैलबाला भी सुप्रीमकोर्ट के आदेशों का पालन करने मौके पर गई थी। उनकी गोली लगने से मौत हो गई थी। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी का चौकीदार भी मारा गया था।