BaijnathTemple: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है बैजनाथ शिव मंदिर,स्वंय रावण ने बनवाया था इसे
शिव नगरी बैजनाथ कभी कीरग्राम हुआ करती थी। काफी कम लोग जानते हैं कि बैजनाथ का पहले नाम कीरग्राम था। यहां प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है।पहले यहां कीरात राजा का शासन था। तो कुछ लोग कहते हैं कि यहां कीर यानी तोते अधिक पाए जाते थे।
धर्मशाला, जागरण संवाददाता। शिव नगरी बैजनाथ कभी कीरग्राम हुआ करती थी। काफी कम लोग जानते हैं कि बैजनाथ का पहले नाम कीरग्राम था। यहां प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि पहले यहां कीरात राजा का शासन था। तो कुछ लोग कहते हैं कि यहां कीर यानी तोते अधिक पाए जाते थे। इस कारण इसे कीरग्राम कहा जाता था। बाद में इसका नाम बैद्यनाथ और अब बैजनाथ हो चुका है। काफी साल पहले यहां मौजूद रेस्ट हाउस के समीप पहाड़ी में एक किला भी हुआ करता था। बताते हैं कि यहीं से यहां का शासन चलता था।
बैजनाथ मंदिर बैजनाथ में स्थित नागर शैली में बना हिंदू मंदिर है। यह 1204 इस्वी में अहुका और मन्युका नामक दो स्थानीय व्यापारियों ने बनवाया था। यह बैद्यनाथ (चिकित्सकों के प्रभु) के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। शिलालेखों के अनुसार वर्तमान बैजनाथ मंदिर के निर्माण से पूर्व भगवान शिव के मंदिर का अस्तित्व था। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है। बाहरली दीवारों पर अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है। मंदिर के मुख्य कक्ष में शिला-फलक चट्टान पर नक्काशित दो लंबे शिलालेख हैं। ये शिलालेख शारदा लिपि में संस्कृत और टांकरी लिपि में स्थानीय बोली पहाड़ी का उपयोग करके लिखे गए हैं।
हिमाचल प्रदेश की हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला के प्रांगण में स्थित है भव्य प्राचीन शिव मंदिर बैजनाथ। वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। माघ कृष्ण चतुर्दशी को यहां विशाल मेला लगता है जिसे तारा रात्रि के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि और वर्षा ऋतु में मंदिर में शिवभक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यह मंदिर देश के कोने-कोने से शिवभक्तों को आकर्षित करता है। कई विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं। बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है कि त्रेता युग में रावण ने हिमाचल के कैलाश पर्वत पर शिवजी के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुनस्र्थापित कर शिवजी ने रावण को वर मांगने को कहा।
रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिवजी ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। अब रावण लंका को चला और रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) में पहुंचा तो रावण को लघुशंका लगी। उसने बैजु नाम के ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के वजन को ज्यादा देर न सह सका और उन्हें धरती पर रख कर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। सामने जो शिवलिंग था वह चंद्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है।