फोन टैपिंग मामला: तत्कालीन मुख्य सचिव व गृह सचिव पर पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी का बड़ा आरोप
Phone Tapping case भंडारी ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन मुख्य सचिव गृह सचिव और शिमला के उपायुक्त के निर्देश पर सीआइडी मुख्यालय में गैरकानूनी तरीके से रेड डाली गई थी।
शिमला, जेएनएन। बहुचर्चित अवैध फोन टैपिंग मामले में क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट (सीआइडी) के विशेष जांच दल (एसआइटी) ने सोमवार को शिमला में हिमाचल के पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी के बयान दर्ज किए। भंडारी ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव और शिमला के उपायुक्त के निर्देश पर सीआइडी मुख्यालय में गैरकानूनी तरीके से रेड डाली गई थी। वे कंप्यूटर, अलमारी को कब्जे में नहीं ले सकते थे। यह अधिकार केवल पुलिस को था और उससे पहले एफआइआर दर्ज होनी चाहिए थी। लेकिन, दो तीन अहम लोगों ने वीरभद्र सिंह को भी गुमराह किया, जब वह केंद्र में मंत्री थे। यानी वहां सीआइआडी ने कोई भी जासूसी यंत्र स्थापित नहीं किए और न ही उन्होंने (भंडारी ने) सीआइडी मुखिया के तैनाती के दौरान किसी के गैर कानूनी टेलीफोन टैप किए थे।
पूछे गई सवाल
कई घंटे तक उनसे जांच अधिकारियों ने कई सवाल पूछे, उन्होंने सभी का तथ्यों के आधार पर जवाब दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि शिमला पुलिस ने तत्कालीन डीजीपी के दबाव में आकर कार्य किया। लेकिन उन्होंने सीआइडी की जांच पर भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि सीनियर ब्यूरोक्रेट, आला पुलिस अधिकारी कानून से ऊपर नहीं है। ऐसे पदों पर रहते हुए संवैधानिक व्यवस्थाओं, कानूनों के अनुसार कार्य करना चाहिए न कि गलत दिशा- निर्देशों को अपनाना चाहिए।
क्या है मामला
पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी पर आरोप था कि उन्होंने सीआइडी में तैनाती के दौरान अवैध तौर पर बड़ी संख्या में फोन टैप किए। आरोप था कि फोन टैपिंग को लेकर कुछ सीडी तोड़ी गई। आरोपों के अनुसार अवैध तरीके से करीब पंद्रह सौ फोन टेप किए गए। यह भी आरोप था कि भंडारी वीरभद्र सिंह के केंद्रीय मंत्री रहते हुए कथित तौर पर जासूसी करते थे और ये जासूसी यंत्र सीआइडी मुख्यालय की अलमारी में रखे गए थे। दिसंबर, 2012 में वीरभद्र सिंह के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से एक दिन पहले तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीआइजी रैंक के अधिकारियों ने सीआइडी मुख्यालय में दबिश दी थी। इसके आधार पर विजिलेंस केस दर्ज किया गया।
कई वर्षों तक भंडारी ने विजिलेंस केस झेला। उन्होंने पूरी कार्रवाई को गैर कानूनी करार दिया। 2016 में वह निचली कोर्ट से केस जीत गए। सेशन कोर्ट से केस उनके पक्ष में आया। 2017 में उन्होंने शिमला पुलिस से झूठे केस में फंसाने वाले अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने का आग्रह किया। कोर्ट के आदेश पर छोटा शिमला में एफआइआर दर्ज की गई। इसमें कई पूर्व व सेवारत अधिकारियों को नामजद किया गया।