दर्जा गोमाता का, बसेरा सड़क पर
No cowshed for animals प्रदेश में गाय को माता का दर्जा तो मिल गया है बावजूद इसके भी न केवल वह आज भी बेसहारा है।
अश्वनी शर्मा, जसूर। भले ही गाय को माता का दर्जा प्राप्त है बावजूद इसके न केवल यह बेसहारा है, बल्कि पूरा गोवंश भी सड़क पर मारे मारे फिर रहा है। गोवंश के संवर्धन और संरक्षण की योजना धरातल पर कहीं नहीं दिखाई देती है। बेशक प्रदेश में पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी बेसहारा गोवंश के लिए योजना की गूंज सुनाई देती थी, वहीं वर्तमान भाजपा सरकार के अब तक के कार्यकाल में इसके बारे में कई दावे जताए जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर अब भी शून्य ही नजर आता है।
क्षेत्र के प्रमुख राजमार्ग हों, संपर्क मार्ग हों या किसानों के खेत हों बेसहारा घूम रहा गोवंश न केवल किसानों की फसलों के लिए आफत है बल्कि सड़कों पर झुंडों में टहल रहा यह गोवंश दुर्घटनाओं का कारण बनकर या तो खुद घायल हो रहा है या फिर वाहन चालकों को गहरे जख्म दे रहा है। बेसहारा गोवंश या तो किसानों के खेतों की फसलों पर धावा बोलकर भूख मिटाने को मजबूर है या फिर पेट की आग को शांत करने के लिए कूड़े के ढेरों से निवाला तलाश कर अपनी भूख को शांत करने के लिए मजबूर है। हैरानी का विषय यह है कि इनसे फसलों को हो रहे नुकसान और सड़कों पर हो रही दुर्घटनाओं को चलते इस समस्या से निपटने के लिए चुनावों में तो वादे खूब सुनाई देते हैं, लेकिन चुनावों के बाद स्थिति फिर जस की तस ही रहती है। उपमंडल नूरपुर और उपमंडल इंदौरा में सरकारी स्तर पर सिर्फ दो ही गोशालाएं हैं जोकि क्रमश: नूरपुर क्षेत्र के खज्जियां और इंदौरा के डमटाल क्षेत्र के श्रीराम गोपाल मंदिर में कार्यरत हैं।
यहां पहले ही जरूरत से ज्यादा गोवंश का डेरा है, लेकिन बावजूद इसके सैकड़ों की तादाद में यह पशु अब भी सड़कों या खेतों में दस्तक देते हुए इसको प्रमाणित करते हैं कि कहीं न कहीं अब भी योजनाएं हवा हवाई ही हैं।
नूरपुर क्षेत्र के कंडवाल से लेकर जौंटा तक आए दिन बेसहारा गोवंश टहलता दिखाई देता है, जोकि कई बार हादसों का भी कारण बना है और इससे कई लोगों को गहरे जख्म मिले हैं। वहीं, क्षेत्र में भारी संख्या में ऐसे पशु फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस समस्या का ठोस समाधान होना चाहिए था। -सरदार सिंह पठानिया
पिछले कई साल से यह समस्या लोगों को पेश आ रही है। नूरपुर और इंदौरा क्षेत्र में दो ही सरकारी स्तर के गोसदन कार्यरत हैं, जिनमें जरूरत से ज्यादा पशु हैं। बेशक पंचायत स्तर पर भी गोशाला बनाने की योजनाएं कही जाती हों, लेकिन वहां भी कोई कारगर योजना नहीं दिखती। -राकेश निक्का
क्षेत्र में बेसहारा पशुओं की भरमार है, जिससे सबसे ज्यादा किसानों पर असर पड़ रहा है और ऐसे पशुओं से तंग आकर लोगों ने अधिकतर जगहों पर खेती से भी मुंह मोड़ा है, क्योंकि भारी भरकम खर्च करने के बाद यह बेसहारा पशु फसलों पर धावा बोल देते हैं। इसके लिए कोई कारगर योजना बननी चाहिए। -गणेश पराशर।
सड़क पर घूम रहा यह गोवंश सबसे ज्यादा दोपहिया वाहन चालकों के लिए बड़ा खतरा है और इससे कई घटनाएं भी हो चुकी हैं इससे सबक लिया जाना चाहिए था, लेकिन धरातल में इस समस्या से निपटने में कोई भी कारगर कदम नहीं दिखाई देते हैं। -विजय सिंह।
उच्च न्यायालय के आदेशानुसार ग्रामीण क्षेत्र में विकास खंड कार्यालय से संबंधित पंचायतें, शहरी क्षेत्र में ईओ और राष्ट्रीय राजमार्ग पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की जिम्मेदारी है कि ऐसे पशुओं का वह उचित प्रबंध करें। इस संबंध में करीब एक माह पहले संबंधित अधिकारियों से बैठक भी की गई थी कि वह अपने अपने क्षेत्र में कार्रवाई करें। नूरपुर क्षेत्र के तहत खज्जियां स्थित गोसदन की देखभाल के लिए निजी संस्था को जिम्मा दिया गया है। -डॉ. सुरेंद्र ठाकुर, उपमंडल अधिकारी नागरिक नूरपुर।
मेरी जानकारी अनुसार विकास खंड नूरपुर कार्यालय के तहत एक पंचायत खज्जियां खेल में गोसदन है शेष किसी पंचायत में गोसदन नहीं है। विकास खंड कार्यालय में इसके लिए किसी प्रकार के बजट का प्रावधान नहीं है। -ओपी ठाकुर, विकास खंड अधिकारी नूरपुर।
नूरपुर नगर परिषद के कार्यक्षेत्र में 2017-18 में करीब 102 गायों को पकड़ कर और उनकी उचित देखभाल के लिए खज्जियां और डमटाल स्थित गोसदन में भेजा गया है। -आरएस वर्मा, कार्यकारी अधिकारी नगर परिषद नूरपुर।
राष्ट्रीय उच्च मार्ग पठानकोट मंडी एनएचआइ के सुपर्द हो गया है ऐसे में अब ऐसे पशुओं की जिम्मेदारी उसी की होगी इससे पहले विभाग की और से सड़क पर मिली गायों को गोसदनों में भेजा जाता रहा है। -कैलाश पावा, सहायक अभियंता नेशनल हाईवे।