सोलहदा में जमीन के 40 मीटर नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में बहुत अधिक हलचल, बड़े खतरे की आहट
Landslide Zone Sohlda उपमंडल जवाली के तहत सोलहदा में वर्ष 2013 में हुए भूस्खलन को लेकर हो रहे शोध के प्रारंभिक परिणाम सुखद नहीं हैं। पर्यावरण विज्ञान स्कूल के वरिष्ठ विज्ञानी डा. अबरीश महाजन व उनकी टीम वर्ष 2018 से यहां की मिट्टी का अध्ययन कर रहे हैं।
मुनीष गारिया, धर्मशाला। उपमंडल जवाली के तहत सोलहदा में वर्ष 2013 में हुए भूस्खलन को लेकर हो रहे शोध के प्रारंभिक परिणाम सुखद नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान स्कूल के वरिष्ठ विज्ञानी डा. अबरीश महाजन व उनकी टीम के सदस्य डा. स्वाति, डा. सुनंदा और डा. हर्ष वर्ष 2018 से यहां की मिट्टी का अध्ययन कर रहे हैं। शोध में यह बात सामने आई है कि सोलहदा क्षेत्र की मिट्टी में पानी की मात्रा अधिक है और इस कारण ही भूस्खलन हुआ था। क्षेत्र में गहरी जड़ों वाले पौधे लगाने की जरूरत है। अब पहले चरण का शोध पूरा होने के बाद यह बात सामने आई है कि यहां जमीन में 35 से 40 मीटर नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में बहुत अधिक हलचल हो रही है। हालांकि ये प्लेटें हिलती हैं, लेकिन यहां की टेक्टोनिक प्लेटें एक दिशा नहीं बल्कि चारो ओर घूम रही हैं और यह अच्छा संकेत नहीं है।
कैसे किया शोध
- वर्ष 2018 से 2020 के दौरान हर मौसम में यहां की मिट्टी का अध्ययन किया।
- सोलहदा के अलावा, न्यांगल, त्रिलोकपुर व कोटला की भूमि का आकलन।
- जब सोलहदा क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल बढ़ती है तो इसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है।
अब तक के शोध के परिणाम
- 35 से 40 मीटर नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में बहुत अधिक हलचल।
- गहरी जड़ों वाले पौधे लगाने से ही नहीं होगा स्थायी समाधान।
जारी है शोध कार्य
डा. अबरीश महाजन के नेतृत्व में टीम को प्राप्त हुए परिणामों के बाद यह फैसला लिया गया है कि शोध कार्य जारी रहेगा। अब टीम सोलहदा और आसपास क्षेत्र की भूमि की गहराई का अध्ययन करेगी। टीम अब टेक्टोनिक प्लेटों की चाल का अध्ययन करेगी। अबतक के शोध से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अगर दोबारा यहां भूस्खलन हुआ तो पहले से ज्यादा ही नुकसान होगा।
परिणाम सुखद नहीं
अब तक के शोध के परिणाम सुखद नहीं हैं। अब हमारी टीम सोलहदा, कोटला व न्यांगल क्षेत्रों में 35 से 40 मीटर नीचे की भूमि का अध्ययन कर रही है। गहरी जड़ों वाले पौधे लगाने से स्थायी समाधान नहीं होगा। इस संबंध में जिला प्रशासन को भी सुझाव दिए जाएंगे। डा. अबरीश महाजन, भूगर्भ विज्ञानी, सीयू हिमाचल प्रदेश।