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नौकरी छोड़ रोजगार दे रहा एमबीए पास युवक, एक साल में 35 लाख टर्नओवर; जानिए

Self Dependent गगरेट क्षेत्र के एक छोटे से गांव भद्रकाली के युवा ने लाखों रुपये की नौकरी छोड़कर आत्‍मनिर्भरता की राह चुनी। एक साल में 35 लाख तक टर्नओवर हो गई है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 11:32 AM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 01:08 PM (IST)
नौकरी छोड़ रोजगार दे रहा एमबीए पास युवक, एक साल में 35 लाख टर्नओवर; जानिए

चिंतपूर्णी, नीरज पराशर। हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में गगरेट क्षेत्र के एक छोटे से गांव भद्रकाली के युवा ने लाखों रुपये की नौकरी छोड़कर आत्‍मनिर्भरता की राह चुनी। खुद तो आत्‍मनिर्भर हुए ही औरों को के लिए भी रोजगार के अवसर प्रदान किए। रविंद्र पराशर की मेहनत और जज्‍बे का नतीजा था कि आज उन्‍होंने 25 लोगों को रोजगार दिया हुआ है। एक साल में ही 35 लाख तक टर्नओवर हो गई है। 20 लाख की नौकरी छोड़कर लौटे रविंद्र अब अच्‍छी कमाई कर रहे हैं।

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रविंद्र पराशर ने देश के नामी शिक्षण संस्थान से बीटेक व एमबीए की पढ़ाई की और उसके बाद गुरुग्राम स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्य किया। वहां उनका सालाना पैकेज बीस लाख रुपये था। एक वर्ष पहले गांव में ही कुछ करने का इरादा मन में ठान लिया। कभी अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में नियमित रूप से यात्रा करने वाले पराशर ने नौकरी का बड़ा पैकेज छोड़, मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से जैविक अगरबत्‍ती बनाने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने युवान वेंडर्स नामक कंपनी रजिस्ट्रड करवाई आैर मुख्यमंत्री स्टार्ट अप योजना के तहत आवेदन कर दिया।

डाॅ. वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों के तकनीकी सहयोग के बाद उन्हाेंने अपने गांव में एक यूनिट स्थापित करके जैविक अगरबत्‍ती तैयार करना शुरू कर दिया। धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक समारोहों में प्रयोग होने वाले फूलों का वेस्टेज वह अगरबती के निर्माण में कर रहे हैं और कंपाेस्ट खाद भी तैयार करते हैं।

कोरोना काल में चमक रहा कारोबार

कोराना काल में जब कई औघोगिक घराने अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रहे है, इस दौरान भी युवान में कार्यरत 25 लोग अपने रोजगार को लेकर निश्‍चिंत हैं। काेरोना काल के दौरान भी इनका कारोबार खूब फल फूल रहा है। ये कर्मचारी तन-मन-धन से युवा उद्यमी रविंद्र पराशर के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं। इस उद्योग में बनने वाली अगरबत्‍ती की मांग अब विदेशों में भी है। कोरोना काल में पराशर के उद्योग ने सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं।

मंदिर के फूल गंदे नालों में बहते देख हुए थे आहत 

मंदिरों में फूल चढ़ने के बाद इधर-उधर फेंक दिए जाते हैं। कई बार तो गंदे नालों व खड्डों में भी इन्हें बहा दिया जाता है। आस्था व श्रद्धा के प्रतीक फूलों की इस तरह बेकद्री काे देख अाहत हुए थे अौर उन्होंने मन ही मन में यह सोच लिया कि इन फूलों का वह सदुपयोग करेंगे। जब स्टार्ट अप योजना के तहत व्यवसाय शुरू करने की बात सामने आई तो इसी आइडिया पर ही उन्होंने काम करने का मन बनाया। आज फूलों की खूशबू से ही रविंद्र का कारोबार महक रहा है। उनके इस आइडिया की प्रशंसा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी कर चुके हैं।

उद्योग में काम करते हैं 25 कर्मचारी

रविंद्र के उद्योग से 25 कर्मचारी जुड़े हुए हैं, जिनमें गांव की महिलाएं भी शामिल हैं। उत्पाद तैयार करने के अलावा मार्केटिंग करने के लिए अलग से स्टाफ नियुक्त किया गया है। वह अपने उत्पाद को ऑनलाइन भी प्रोत्साहित कर रहे हैं। यही कारण है कि उनकी हर्बल अगरबत्‍ती की अमेरिका, इंग्लैंड के अलावा दक्षिणी एशियाई देश दोहा व कतर में भी मांग है। इसके अलावा भारत के बड़े शहरों में भी उन्हें अगरबती के आॅनलाइन आॅर्डर मिल रहे हैं। खास बात यह भी है कि उनकी कंपनी की अगरबत्‍ती की पैकेजिंग ईकाे-फ्रेंडली है और इसका प्रयोग करने के बाद पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।

 

कोराना काल में भी उत्‍पादन जारी

कोरोना काल में रविंद्र अपनी टीम के साथ शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए डटे हैं। हालांकि, ऑफलाइन मार्केटिंग कुछ समय के लिए बंद थी, लेकिन अब हुए अनलॉक के बाद यही टीम फिर से सक्रिय हो गई है। धीरे-धीरे स्थानीय दुकानों से आॅर्डर भी मिलना शुरू हो गए हैं। कोरोना के दिनों में भी रविंद्र अपने कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते रहे हैं और वेतन व बिक्री कमीशन के अलावा हर प्रकार से मदद करते रहे हैं।

मंदिर के फूलों से अगरबत्‍ती बनी होने के कारण ड‍िमांड ज्‍यादा 

पराशर मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों से ही अगरबत्‍ती तैयार कर रहे हैं। भगवान को चढ़ाने के बाद फूलों को फेंक दिया जाता रहा है, लेकिन रविंद्र उन्हें सुखाकर अगरबती बनाते हैं। अगरबती का प्रयोग भी अधिकतम लोग पूजा के लिए ही करते हैं और जो वस्तु भगवान के मंदिर में चढ़ने के बाद बनी हो ताे लाजिमी है कि उसकी मांग भी बढ़ेगी ही। फिलहाल रविंद्र जितना गुरुग्राम की कंपनी में सालाना पैकेज लेते थे, उससे ज्यादा का टर्नओवर इस कारोबार में हो गया है अाैर इसमें अौर बढ़ोतरी की उम्मीद है।

 

काेरोना काल में युवाओं के लिए संदेश

रविंद्र पराशर का कहना है जीवन में कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। अगर लग्न, मेहनत व लाक्ष्य साधकर काम किया जाए तो सफलता मिलना फिर काेई मुश्‍किल काम नहीं है। युवाओं को स्वरोजगार की तरफ प्रेरित होना चाहिए और खुद आत्मनिर्भर बनकर अन्य लोगों को भी राह दिखानी चाहिए। रविंद्र का कहना है कोरोना के कारण उन युवाओं के पास मौका है, जिनकी नौकरी छूट गई है या छोड़ आए हैं। ऐसे युवा स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं।


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