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कई रोगों से छुटकारा देता है इस मंदिर का जल, जानिए क्‍या है मान्‍यता Kangra News

मान्‍यता है इस कुनाल के पानी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 16 Jun 2019 03:26 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 09:39 AM (IST)
कई रोगों से छुटकारा देता है इस मंदिर का जल, जानिए क्‍या है मान्‍यता Kangra News
कई रोगों से छुटकारा देता है इस मंदिर का जल, जानिए क्‍या है मान्‍यता Kangra News

धर्मशाला, मोहिंद्र सिंह। धौलाधार की पहाड़ियों और धर्मशाला की हसीन वादियों की मनोरम छठा में चाय बागानों के बीच स्थित माता कुनाल पत्थरी मंदिर कपालेश्वरी के नाम से भी विख्यात है। यह मां कपालेश्वरी देवी मंदिर अनूठा और विशेष भी है। मंदिर में माता के कपाल के ऊपर एक बड़ा पत्थर भी कुनाल की तरह विराजमान है। इसलिए इस मंदिर को मां कुनाल पत्थरी के नाम से भी जाना जाता है। मान्‍यता है इस कुनाल के पानी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है।

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लोगों की मान्यता है कि श्रद्धा से माता के कुनाल के पानी के सेवन से पेट की पत्थरी भी ठीक हो जाती है, इसके अलावा चर्म राेग सहित अन्य गंभीर बीमारियाें को भी माता के कुनाल का पानी दूर करता है। वहीं खेतों में पानी का छिड़काव करने से खराब हो रही सब्जी और पाैधे भी ठीक हो जाते हैं। माता का यह कुनाल हमेशा पानी से भरा रहता है, जब भी इस पत्थर में पानी सूखने लगाता है तो माता की कृपा से बारिश हो जाती है और यह पानी से भर जाता है। माता कभी कुनाल में पानी की कमी नहीं होने देती। कपाल के ऊपर बने पत्थर में पानी को श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, यह पानी कभी खराब नहीं होता है। लोग इसे घर में पूजा सहित मां के प्रसाद के रूप में प्रयोग करते हैं।

मंदिर का इतिहास
51 शक्तिपीठों में से यह शक्तिपीठ मां सती के अंगों में से एक है। मां सती का यहां पर कपाल गिरा था और यह शक्तिपीठ मां कपालेश्वरी के नाम से विख्यात हुआ। मां सती ने पिता द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए थे, तब इससे क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि यहां माता सती का कपाल गिरा था, इसलिए यहां पर मां के कपाल की पूजा होती है।

कन्या रूप में आती थी माता

मान्यता यह भी है कि माता कुनाल पत्थरी कन्या रूप में साथ लगते जंगल में पशु चराने वाले चरवाहों (ग्‍वालू) के साथ खेलने आती थी, वह छोटे-छोटे चरवाहों के साथ दिनभर खेलने के बाद शाम को लौट जाती थी। वहीं आज तक मंदिर के साथ लगते जंगल में किसी ग्‍वालू के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

नवरात्र में जुटती है भीड़
शक्तिपीठ मां कपालेश्वरी देवी मंदिर में आम दिन के अलावा खासकर नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। मंदिर में अधिकतर श्रद्धालु जिला कांगड़ा सहित प्रदेश से ही आते हैं, बाहरी राज्यों के श्रद्धालुओं की आमद इस मंदिर में कम है।

धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से हो सकता है विकास
कुनाल पत्थरी का विकास धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी हो सकता है। यह मंदिर ऐसी जगह पर स्थित है जहां पर चारों ओर चाय के बागान हैं तो उत्तर की और सामने धौलाधार की पहाडिय़ां। वहीं दक्षिण में कांगड़ा हवाई अड्डा मंदिर की मनोरम छठा को और भी बढ़ाता हैं।

अभी नहीं मिल पाई पहचान
मां दुर्गा को समर्पित कपालेश्वरी देवी या फिर मां कुनाल पत्थरी मंदिर भले ही शक्तिपीठों में से एक हो, लेकिन अन्य शक्तिपीठों की तरह अभी भी इस मंदिर को पूरी ख्याति अभी तक नहीं मिल पाई है। लोगों के सहयोग से इस मंदिर में हर सुविधा श्रद्धालुओं के लिए मौजूद है, लेकिन जो पहचान इसे अन्य शक्तिपीठों की तरह मिलनी चाहिए थी, उससे अभी तक यह मंदिर अछूता है।


कैसे पहुंचे मंदिर तक

कुनाल पत्थरी मंदिर जिला मुख्यालय धर्मशाला से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा कांगड़ा हवाई अड्डा से वाया सराह मार्ग होकर मंदिर करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है।

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