गर्म पानी के चश्मों के लिए जाना जाता है हिमाचल का ये स्थान, देश विदेश से पर्यटक यहां लेते हैं नहाने का आनंद
हिमाचल में सर्दियां दस्तक दे चुकी हैं। कुछ समय के बाद पहाड़ों में बर्फबारी और शीतलहर का दौर भी शुरू हो जाएगा। लेकिन आप सर्दियों में यहां के कुछ ऐसे स्थलों में भी घूम सकते हैं। जहां धरती के नीचे से प्राकृतिक रूप से निकलने वाला गरम पानी उपलब्ध होगा।
धर्मशाला,ऋचा राणा। देवभूमि हिमाचल में सर्दियां दस्तक दे चुकी हैं। कुछ समय के बाद पहाड़ों में बर्फबारी और शीतलहर का दौर भी शुरू हो जाएगा। लेकिन आप सर्दियों में यहां के कुछ ऐसे स्थलों में भी घूम सकते हैं। जहां आपको धरती के नीचे से प्राकृतिक रूप से निकलने वाला गरम पानी उपलब्ध होगा। आप इस पानी से नहाने के साथ-साथ इसे भाप के रूप में भी ले सकते हैं। अगर आप हिमाचल घूमने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो आपके लिए यह स्थान भी घूमने लायक हो सकते हैं।
मणिकर्ण : हिमाचल के जिला कुल्लू के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में पार्वती नदी के किनारे बसा मणिकर्ण हिंदुओं और सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। कालका-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग में कुल्लू से 10 किलोमीटर पहले आने वाले भुंतर से मणिकर्ण 35 किलोमीटर दूर है। मणिकर्ण गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों पर्यटक यहां हर साल आते हैं। विशेष रूप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। समुद्र तल से करीब 6000 फुट की ऊंचाई पर बसे मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों के साथ बहती पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। बेहद ठंडे पानी वाली पार्वती के साथ जैसे ही गर्म चश्मों का पानी मिलता है, तो मानो ऐसे लगता है। जैसे नदी व गर्म जल आपस में उलझ रहे हों।
मणिकर्ण में बर्फ खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर व राम मंदिर परिसर में बनाए विशाल स्नानास्थल में गर्म पानी में आराम से नहाया जा सकता है। यहां अनेक रेस्त्राओं और होटलों में यही गर्म पानी भी उपलब्ध है। इन्हीं गर्म चश्मों में गुरुद्वारे व राम मंदिर के लंगर के लिए भी चाय बनती है, दाल व चावल भी पकते हैं। पर्यटक भी यहां खुद सफेद कपड़े की पोटली में चावल डालकर धागे से बांधकर उन्हें उबलते पानी के कुंडों में खुद उबाल सकते हैं। विशेषकर नवदंपती धागा पकड़कर चावल उबालते देखे जा सकते हैं, उन्हें लगता हैं कि यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है और सचमुच रोमांचक भी। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव जी की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। यहां पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु, भगवान शिव व माता नैना देवी के मंदिर भी हैं। हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पड़ा। यह भी मान्यता है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी।
यहां पर है गर्म पानी का कुंड
मनाली से महज छह किलोमीटर दूर रोहतांग दर्रा की ओर जाने वाले मार्ग में वशिष्ठ नामक स्थान में भी गर्म पानी का कुंड है। ब्यास नदी के एक किनारे पर स्थित इस स्थान पर भी प्रकृति रूप से गर्म जल निकलता है। यह कुंड भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। जिला कुल्लू में ही इसके अलावा मणिकर्ण मार्ग में कसोल व खीर गंगा में भी गर्म पानी के कुंड हैं जो सबसे अधिक विदेशी पर्यटकों के लिए प्रसिद्ध है।
तत्तवाणी: कुदरती तौर पर निकलने वाले गर्म पानी का नाम सुनते ही जिला कुल्लू के मणिकर्ण व वशिष्ठ और तत्तापानी की तस्वीर आ जाती हो लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि हिमाचल-प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ व रैत क्षेत्र में भी भूगर्भ से गर्म पानी निकलता है। इनमें दोनों स्थानों का नाम वर्षों से तत्तवाणी चलता आ रहा है। इन क्षेत्रों को पर्यटन की दृष्टि से अभी विकसित होने का इंतजार है। लेकिन स्थानीय लोग इन स्थानों में कई पर्वों पर पवित्र स्नान के लिए जाते हैं। इन दोनों स्थानों में पानी चट्टानों के नीचे उबलने की प्रक्रिया के बाद कुछ दूर आकर निकलता है। जिला कांगड़ा के बैजनाथ के तहत आने वाले तत्तवाणी तक बैजनाथ के दियोल व करनार्थू के रास्ते ट्रैकिंग के जरिए पहुंचा जा सकता है।
लूणी दरिया के किनारे इस स्थान में कई दशकों से पत्थरों के नीचे से गर्म पानी निकल रहा है। यहां हर वर्ष निर्जला एकादशी के दिन पवित्र स्नान का आयोजन होता है। दूसरा तत्तवाणी का स्थान पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग में आने वाले शाहपुर के रैत से करीब दस किमी दूर है। इसके लिए तत्तवाणी तक बाकायदा सड़क बनी हुई है। इस स्थान में वर्षों पहले एक मंदिर का निर्माण हुआ है। यहां गर्म पानी का ताप करीब 38 डिग्री है तथा यहां स्नान के लिए ठंडे पानी की काफी कम जरूर पड़ती है। इस स्थान में एक शिव भगवान व दुर्गा माता मंदिर का भी है। यह स्थान अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनने लगे है।
तत्तापानी : जिला मंडी के करसोग से साथ सतलुज के किनारे लगते स्थान को तत्तापानी कहा जाता है। यहां भी सतलुज के किनारे गर्म पानी निकलता है। लेकिन अब यहां कोल बांध बन जाने से यह अधिकांश गर्म पानी के स्रोत बांध में समा गए है। शिमला से 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान में भी काफी पर्यटक आते है।