Move to Jagran APP

खबर के पार : साधु की जाति नहीं, ज्ञान पूछने का समय

Khabar ke paar हिमाचल प्रदेश की चुनावी गर्मी जातिगत आंकड़े पकने लगे हैं। इतने ब्राहमण इतने राजपूत इतने ओबीसी और इतने गद्दी इतने ये...उतने वो।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 10:26 AM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 10:26 AM (IST)
खबर के पार : साधु की जाति नहीं, ज्ञान पूछने का समय

नवनीत शर्मा, धर्मशाला। इस बार जब ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा यानी कबीर जयंती मनाई जा रही होगी, सिर्फ मौसम की गर्मी बाकी होगी, चुनावी गर्मी उतर चुकी होगी। कबीर इसलिए याद आए क्योंकि उनका एक दोहा याद आया :

loksabha election banner

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान

मोल करो तरवार का, पड़ी रहन दो म्यान

फिर संविधान के पन्ने याद आए जिनमें यह भी लिखा है कि सभी एक समान हैं। जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता है भारत में। हिमाचल प्रदेश में भी चुनावी गर्मी जारी है। इसी गर्मी में जातिगत आंकड़े पकने लगे हैं। इतने ब्राहमण, इतने राजपूत, इतने ओबीसी और इतने गद्दी, इतने ये...उतने वो। जाति बुरी चीज नहीं है, यह वह देन है जिसे कोई स्वयं अपने लिए चुन नहीं सकता। यह मां-बाप की तरह है। जो है, वही है। छोटे-छोटे दबाव समूहों, हितचिंतक संघों तक बात उचित प्रतीत होती है लेकिन जब वह देश की संसद या विधानसभा के लिए नुमाइंदा बनाने का एकमात्र मानक जाए तो? बकौल कबीर, तलवार का मोल करने के बजाय म्यान को ढूंढऩे का चलन सामने आए तो निराशा होती है। कांगड़ा क्षेत्र में शुरूआती गणित इस बात पर चल रहे हैं कि ओबीसी मतदाता सवा चार लाख के करीब हैं....गद्दी समुदाय के मतदाता साढ़े तीन से चार लाख के बीच हैं। यह ठीक है कि हर वर्ग अपना गणित देखेगा, देखता है और देखता आ रहा है। इसमें गर्व की अनुभूति या प्रतिनिधित्व मिलने के बाद की खुशी तक बात ठीक है।

उसके बाद जो है, वह इसलिए ठीक नहीं है क्योंकि सबने अपना शासक चुनना है। उसके गुणों पर बात होनी चाहिए, न कि जाति पर। और गुण किसी एक ही जाति में हों, यह संभव नहीं है। वास्तव में मतदाता तो न्यायाधीश की कुर्सी पर होता है। वह जन है जिसे यह आदेश देना है कि कौन शासन की कुर्सी पर जाएगा और कौन नहीं। कल्पना ही जा सकती है कि उसके गुण देखने के बजाय केवल जाति या क्षेत्र के आधार पर फैसला किया जाए कि अमुक को अमुक दायित्व दे दिया जाए। कांगड़ा में मुकाबला गद्दी बनाम चौधरी रहने वाला है। भाजपा के पास प्रदेश सरकार में मंत्री किशन कपूर हैं और कांग्रेस के पास दूसरी बार विधायक बने पवन काजल। इसी प्रकार मंडी में दोनों ब्राह्मण प्रत्याशी हैं। भाजपा से पंडित राम स्वरूप और कांग्रेस से सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा। वहां पंडित वोट की बात हो रही है। क्या वहां अन्य लोग मतदान नहीं करेंगे? हमीरपुर में मुकाबला संयोग से दो राजपूत प्रत्याशियों के बीच होगा। भाजपा के अनुराग ठाकुर के सामने कोई राजपूत प्रत्याशी ही होगा। क्या वहां अन्य मतदाता चुप बैठ जाएंगे? शिमला आरक्षित क्षेत्र है। वहां कर्नल धनी राम शांडिल और सुरेश कश्यप मैदान में हैं। उनके साथ फौज वाला कोण भी है।

दोनों पूर्व फौजी हैं। क्या वहां अन्य लोग मतदान नहीं करेंगे? लेकिन सच यह है कि जब तक कोई बड़ी लहर न हो, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे कई वाद भूमिका निभाते रहे हैं। 1992 में मुख्यमंत्री पद के दावेदार शांता कुमार अपनी 'राजनीतिक गंगोत्री' सुलह से हार गए थे। कोई न कोई वाद ही था, जिसके कारण 2017 के विधानसभा चुनाव में सुजानपुर से मुख्यमंत्री के रूप में घोषित चेहरा प्रेम कुमार धूमल राजिंद्र राणा से हार गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, बीते लोकसभा चुनाव में प्रतिभा सिंह की हार को इस कदर दिल पर ले बैठे थे कि उन्होंने कई बार यह बात का इजहार किया कि उन्हें मंडी में पंडितों ने हरा दिया। क्या केवल एक ही जाति ने मतदान किया था महोदय? 

जनता को कोसने से अधिक, ऐसे वादों को अधिमान देने के दोषी स्वयं राजनेता भी होते हैं। 'अपना आदमी' की अवधारणा कार्यशैली और कार्यसंस्कृति से होनी चाहिए, केवल क्षेत्र या जाति से नहीं। प्रदेश की राजनीति से लेकर नौकरशाही तक हर जाति के लोग सक्रिय हैं, अच्छे ओहदों पर हैं। सब एक प्रदेश के रूप में एकजुट हों तो क्या मजाल है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हिमाचल प्रदेश को चंडीगढ़ और पंजाब से अपना हिस्सा न मिल पाए? सीमा पर देश के काम आने वाले हिमाचल प्रदेश के रणबांकुरों की जाति पूछता है कोई? प्रदेश या देश में सरकार किसी की भी रही हो, क्या हिमाचल प्रदेश को हिमालयन रेजिमेंट मिल गई? जाति का उच्चारण करते रहो, लेकिन क्या सेब उत्पादकों की समस्याएं दूर हो गईं? कोई बता सकता है कि राजस्थान को पानी भेजने वाले हिमाचल प्रदेश के हिस्से में रेगिस्तान के छाले ही क्यों आए? आलू उगाने वालों को उद्योग मिल गए? क्या उनकी जाति नहीं पूछेंगे जो अपना घर-बार और उपजाऊ जमीनें और शरारतों के बाद अपने छुपने के ठिकानों को पौंग बांध में डूबते देखते रहे? जो आज तक विस्थापन के रेगजार में भटक रहे हैं, उनकी जाति क्यों नहीं पूछी जाती?

इसलिए यह ज्ञान पूछने का समय है। जाति के बारे में जानकारी लेने का नहीं। जाति से बड़ा होता है कृतित्व और कृतित्व से ही बड़ा बन सकता है व्यक्तित्व...लगभग 84 फीसद साक्षर और सुशिक्षित हिमाचल प्रदेश इसे समझेगा?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.