खबर के पार: "गोदो" की प्रतीक्षा प्रतीत हो रहा प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार, पढ़ें पूरा मामला
इन्वेस्टर्स मीट के बाद मंत्रिमंडल विस्तार वास्तव में गोदो की प्रतीक्षा प्रतीत हो रहा है।
नवनीत शर्मा, धर्मशाला। फ्रांसीसी लेखक सेमुअल बकेट का एक नाटक था, 'वेटिंग फॉर गोदो।' दो पात्र आपस में बात करते रहते हैं कि अभी गोदो आएगा। पूरा नाटक समाप्त होने के बावजूद गोदो प्रकट नहीं होता। इन्वेस्टर्स मीट के बाद मंत्रिमंडल विस्तार वास्तव में गोदो की प्रतीक्षा प्रतीत हो रहा है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार अपने दो वर्ष दिसंबर के अंत में पूरे कर लेगी। मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार ही नहीं, फेरबदल भी होगा। फेरबदल तो दूर की बात है, अभी तो जो रिक्त पद हैं, वे भी नहीं भरे जा रहे। ऐसे में जाहिर है, सभी मुख्यमंत्री की ओर देखते हैं। लेकिन मंजर एक आश्रम का प्रतीत हो रहा है।
एक आश्रम में गुरु जी शिष्यों से कहते थे, कि पहले जल भर कर लाओ, फिर आराम से चटाई पर विश्राम करो। शिष्य जल भर कर ले आते थे। उनके आते ही गुरु जी कहते थे, अब अग्नि जलाओ और पानी को सेंको, फिर आराम से चटाई पर विश्राम करो। इस कार्य के निष्पादित हो जाने के बाद नया आदेश आ जाता था कि अब भोजनादि की व्यवस्था करो, फिर आराम से चटाई पर बैठो। लब्बोलुआब यह कि चटाई पर बैठने का अवसर नहीं आता था। चटाई रात को केवल सोने के समय उपलब्ध होती थी। ऐसे कई चेहरे हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में आदेशानुसार कार्य किया, फिर उपचुनाव में कार्य किया, और भी परीक्षाएं दीं लेकिन मंत्रिमंडलीय चटाई अभी उपलब्ध नहीं हुई। दो साल के बाद सरकार चुनावी रंग में आ जाएगी। सवाल यह है कि तब जिस मंत्री को जो काम मिलेगा, उसे उस कार्य को करने के लिए कितना वक्त मिलेगा?
सुनने में यह भी आ रहा है कि ऐसा भी कहा गया है कि मंत्रिमंडल का विस्तार कोई प्राथमिकता नहीं है। खर्च बचाने की दृष्टि से यह ठीक भी है लेकिन अंतत: जिनके पास काम है, क्या वे अपने अधिक कामों के साथ न्याय कर पा रहे हैं? क्या प्रदेश की कुछ विभाग विषयक अपेक्षाओं को स्पर्श मिल रहा है? मुख्यमंत्री इस बात से अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि उपचुनाव से लेकर इन्वेस्टर्स मीट तक किसने उनका साथ दिया है। उन्हें यह भी पता होगा कि जब वह धर्मशाला में चार दिन पहले इन्वेस्टर्स मीट की तैयारियों का जायजा ले रहे थे, कौन लोग थे, जो दिल्ली में लॉबिंग कर रहे थे। अब शीतकालीन सत्र है, उसके आसपास उम्मीद की जानी चाहिए कि क्या गोदो आएगा? क्या चटाई उपलब्ध होगी? बहरहाल, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के दिल्ली दौरे से इस संदर्भ में उम्मीद जग गई है।
इस बीच, एक पूर्व मंत्री के खिलाफ पुलिस ने जांच पूरी कर ली है। मुख्यमंत्री, शांता कुमार और विपिन परमार पर आरोपों से लैस पत्र को वायरल किए जाने के मामले में पूर्व मंत्री रविंद्र रवि घिर गए हैं। कभी कितने ही विधानसभा हलकों तक रुआब रखने वाला व्यक्ति अब इस स्थिति में पहुंच गया है। पत्र वायरल करने की मंशा हो या दूसरे पक्ष का उसे बेहद संजीदगी से लेना... भाजपा को दरारों से बचना होगा। मुख्यमंत्री मृदुभाषी और शालीन हैं, संभव है, सुलझा लेंगे।
उम्र गुजरेगी इम्तिहान में क्या
यह मिसरा जॉन एलिया का है जो इम्तिहान यानी परीक्षाओं पर खरा उतर रहा है। हाल में प्रदेश में पटवारी परीक्षा में अव्यवस्था का आलम बहुत गूंजा। कहीं परीक्षा केंद्र के नाम गलत हो गए, कहीं उत्तर पुस्तिका फाड़ दी गई, सवाल यह भी उठा कि जेबीटी की परीक्षा के ही सवाल जस के तस टीप दिए गए। सवालों में साम्य होना बुरी बात नहीं लेकिन परीक्षक की संजीदगी तो घिरती ही है। कहीं यह भी हुआ कि खाली शीट पर पर्यवेक्षक के हस्ताक्षर करवा लिए गए। क्या वास्तव में इन आरोपों में कोई सच्चाई है कि उत्तर कुंजी का वीडियो वायरल किया गया है? सरकार अपने स्तर पर देखेगी ही लेकिन यह सवाल सहज ही उठता है कि जब प्रदेश में कर्मचारी चयन आयोग है या शिक्षा बोर्ड भी परीक्षाएं लेता है, राजस्व विभाग को परीक्षक बनने की जरूरत क्या थी। आवेदन तो तीन लाख से भी अधिक लोगों ने किया था, लेकिन जितने लाख ने भी परीक्षा दी, उन्हें यह सब बताना व्यवस्था का कर्तव्य है। प्रदेश के युवाओं के लिए तो कहा ही क्या जाए...। पीएचडी धारक, एमबीए और इंजीनियर भी आवेदक थे।
चलते-चलते
एक अधिकारी हैं। प्रदेश के प्रथम नागरिक के सचिव हैं। रसायन और धनमुक्त खेती की परियोजना के भी निदेशक हैं। खेतीबाड़ी के भी विशेष सचिव हैं। खेतीबाड़ी से जुड़े सरकारी औद्योगिक निगम के भी प्रबंध निदेशक हैं...और खेतीबाड़ी से जुड़े पैकेजिंग निगम के भी प्रबंध निदेशक हैं। किसी अफसर के कुछ दिन के लिए बाहर रहने पर नए आदेश में उन्हें खाद्य एवं आपूर्ति के लिए बने निगम का भी सर्वोच्च जिम्मा सौंप दिया गया है। गम यह नहीं कि निगम बहुत हैं, गम यह है कि क्या अफसर इतने कम हो चुके हैं कि कुछ तो कुछ न करें और कुछ पूरी तरह लद ही जाएं?