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आइआइटी मंडी के शोधार्थियों ने विकसित की भूकंप सहने की क्षमता के आकंलन की प्रक्रिया

हिमालय क्षेत्र में भवनों में भूकंप सहने की क्षमता के आकंलन करना अब आसान होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधार्थियों ने एक प्रक्रिया विकसित की है। इस प्रक्रिया के आधार पर किसी भवन के भूकंप सहने की क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक कार्यों की प्राथमिकता तय की जा सकती है।

By Richa RanaEdited By: Published: Fri, 25 Nov 2022 04:56 PM (IST)Updated: Fri, 25 Nov 2022 04:56 PM (IST)
आइआइटी मंडी के शोधार्थियों ने विकसित की भूकंप सहने की क्षमता के आकंलन की प्रक्रिया
हिमालय क्षेत्र में भवनों में भूकंप सहने की क्षमता के आकंलन करना अब आसान होगा।

मंडी, जागरण संवाददाता। हिमालय क्षेत्र में भवनों में भूकंप सहने की क्षमता के आकंलन करना अब आसान होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधार्थियों ने एक प्रक्रिया विकसित की है। इस प्रक्रिया के आधार पर किसी भवन के भूकंप सहने की क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक कार्यों की प्राथमिकता तय की जा सकती है। इस तरह मजबूतीकरण व मरम्मत कार्य प्राथमिकता से पूरा होगा।

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बुलेटिन आफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग

शोध के निष्कर्ष यूरोप के बुलेटिन आफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुए हैं। आइआइटी के स्कूल आफ सिविल एवं एंवायरनमेंटल के सहायक प्रो. संदीप कुमार साहा व उनकी पीएचडी छात्रा सुश्री यती अग्रवाल ने यह शोध किया है।

दुनिया में सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्र हिमालय

हिमालय दुनिया के सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्राें में से एक है। इसकी वजह भारतीय व यूरेशियन प्लेटाें का आपस में टकराना है। इन क्षेत्राें में अकसर भूकंप होते हैं। इससे जीवन व संपत्ति दोनों का भारी नुकसान होता है।

भूकंप रोकना असंभव, नुकसान से बचना संभव भूकंप को रोका तो नहीं जा सकता है। भवनों व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर को विशेष डिजाइन के माध्यम से अधिक क्षतिग्रस्त होने से बचाया जरूर जा सकता है। उन्हें भूकंप सहने योग्य बनाया जा सकता है। मौजूदा भवनों की भूकंप से सुरक्षा सुनिश्चित करने का पहला कदम यह आकलन करना है कि वे किस पहलू में कमजोर व किस दृष्टिकोण से मजबूत हैं। लेकिन हर एक भवन का भूकंप के दृष्टिकोण से कमजोरी का आकलन करना ना तो वास्तविक रूप से व न ही आर्थिक रूप से आसान है।

आरवीएस तकनीक हिमालय क्षेत्र में प्रभावी नहीं

व्यापक स्तर पर भवनों की कमजोरियाें के आकलन के लिए अकसर उनकी रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग (आरवीएस) की जाती है। आरवीएस किसी इमारत के विजुअल इंफ्ार्मेशन से यह तय करता है कि वह सुरक्षित है या नहीं। वर्तमान आरवीएस प्रक्रिया विभिन्न देशाें के डेटा पर काम करती है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र विशेष पर सटीक लागू नहीं होती है। इस क्षेत्र के भवनाें की अपनी कुछ खास विशेषताएं हैं। उदाहरण के लिए हिमालयी क्षेत्र (अधिकांश भारत की तरह) के बहुत.से भवन के निर्माण में सही इंजीनियरिंग नहीं होती है। निर्माण में लगे श्रमिकाें को जानकारी कम होती है। अन्य भागीदाराें की योजना भी सही नहीं होती है।

हिमालयी क्षेत्र की रीइंफो‌र्स्ड कंक्रीट (आरसी) भवनों के परीक्षण में नई तकनीक प्रभावी

हिमालयी क्षेत्र की रीइंफो‌र्स्ड कंक्रीट (आरसी) भवनों के परीक्षण की प्रभावी प्रक्रिया विकसित की है। इससे किसी इमारत की वर्तमान स्थिति व भूकंप से संभावित खतराें को न्यूनतम करने के लक्ष्य से मरम्मत कार्य की प्राथमिकता तय करना आसान होगा। शोधार्थियों ने पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण करते हुए हिमालय के मंडी क्षेत्र में मौजूद विभिन्न प्रकार के भवनाें व इनकी सामान्य विशिष्टताओं के बारे में पर्याप्त डेटा एकत्र किए जो उनके लिए भूकंप के खतराें से जुड़े हैं। पहाड़ी भवनों के आरवीएस के मद्देनजर मंजिलाें की संख्या निर्धारण के दिशानिर्देश के लिए संख्यात्मक अध्ययन भी किया गया।

नई पद्धति में एक पृष्ठ का आसान आरवीएस फार्म भरना होगा

भवनों की जांच की नई पद्धति में एक पृष्ठ का आसान आरवीएस फार्म भरना होगा। इसके लिए अधिक विशेषज्ञता नहीं चाहिए। यह विभिन्न कमजोर पक्षाें को ध्यान में रखता है जो केस स्टडी के तहत इस क्षेत्र की भवनों में आम तौर पर पाए जाते हैं। इन अवलोकन के आधार पर भवनों के लिए भूकंपीय खतराें का स्कोर तय होगा। कमजोर भवनों को मजबूत इमारतों से अलग वर्गीकरण करना संभव होता है। उनकी सुरक्षा व मरम्मत का बेहतर निर्णय लेना आसान होता है। कम्प्युटेशन इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि किसी भवन के स्कोर में किसी व्यक्ति के पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत प्रभाव की संभावना कम से कम हो।

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