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महाशिवरात्रि : जानिए, ऐतिहासिक काठगढ़ और बैजनाथ मंदिर की मान्‍यता

historical temple lord shiva ऐतिहासिक काठगढ़ और बैजनाथ मंदिर जिला कांगड़ा के ऐतिहासिक मंदिर हैं लोगों में इनके प्रति गहरी आस्‍था है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 10:20 AM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 10:20 AM (IST)
महाशिवरात्रि : जानिए, ऐतिहासिक काठगढ़ और बैजनाथ मंदिर की मान्‍यता
महाशिवरात्रि : जानिए, ऐतिहासिक काठगढ़ और बैजनाथ मंदिर की मान्‍यता

धर्मशाला, जेएनएन। शिवरात्रि पर सोमवार को शिव मंदिर भोले बाबा के जयकारों से गूंज उठे हैं। इंदौरा स्थित शिव मंदिर काठगढ़, बैजनाथ, कोटला के त्रिलोकपुर और धर्मशाला के अघंजर महादेव के दर को सजाया गया है। यहां मेले भी होंगे और सुरक्षा की दृष्टि से मंदिरों में अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात कर दिया है। काठगढ़ मंदिर में पुलिस जवानों के साथ-साथ सेना के जवान भी तैनात किए हैं। मंदिर में द्वितीय बटालियन सकोह और इंदौरा थाना के स्टाफ समेत 125 जवानों को मंदिर के भीतर और बाहरी परिसर में तैनात किया गया है। मंदिर में 50 से 60 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। दूसरी ओर बैजनाथ व अघंजर महादेव मंदिर में भी सुरक्षा पहरा कड़ा है।

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क्या है शिव मंदिर काठगढ़ की मान्यता

शिव महापुराण के अनुसार शिव भगवान ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो निराकार एवं सकल दोनों हैं। यही कारण है कि शिव भगवान का पूजन लिंग एवं मूर्ति दोनों में समान रूप से किया जाता है। इंदौरा से छह किलोमीटर दूर स्थित काठगढ़ मंदिर की अलग ही पहचान है। शिव महापुराण के अनुसार, यहां भगवान ब्रह्मा तथा विष्णु के मध्य अपने बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था और इन्हें शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। इसे अ‌र्द्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है।

जिला कांगड़ा के इंदौरा क्षेत्र में स्थित काठगड़ मंदिर।

शिव मंदिर त्रिलोकपुर

कोटला के त्रिलोकपुर में भगवान भोलेनाथ का प्राकृतिक मंदिर है। मंदिर गुफानुमा है और इसके भीतर छत से ऐसी विचित्र जटाएं लटकती नजर आती हैं जिन्हें देखने पर प्रतीत होता है मानों छत से सांप लटक रहे हों। शिव प्रतिमा के दोनों ओर पत्थर के स्तंभ खड़े हैं। गुफा के आकार में बने इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर अपने आप शिव प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है। मंदिर के बाहर छोटा सा नाला बहता है और इसमें विशाल शिलाएं अजीब-अजीब आकृतियों जैसी लगती हैं।

मान्यता है कि सतयुग में एक बार भगवान शंकर इस गुफा में तपस्या में लीन थे। जिस स्थान पर भोले शंकर बैठे थे, वहां दो सोने के स्तंभ थे। उनके आसपास सोना बिखरा पड़ा था। भगवान शिव के सिर पर सैकड़ों मुख वाला सर्प छत्र की भांति उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा था। इस दौरान अचानक एक गडरिया भेड़ों को चराता हुआ वहां से निकला। उसने गुफा में साधु को तपस्या में लीन पाया और वहां पड़े पड़े सोने को देखकर उसके मन में लालच आ गया। गडरिये ने सोचा साधु तो तपस्या में लीन है क्यों न सोना उठाकर ले जाऊं। गडरिये ने सोना समेटा मगर इससे उसका लालच और भी बढ़ गया। उसने और सोना निकालने के लिए भगवान शंकर के साथ खड़े दोनों स्वर्णो के स्तंभों से भी सोना निकालना शुरू कर दिया। इससे भगवान शंकर की तपस्या भंग हो गई। उन्होंने गडरिये को पत्थर होने का श्राप दे दिया। मंदिर में आज भी मुद्रा में गुफा में वह मौजूद है।

ऐतिहासिक बैजनाथ मंदिर

ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की। कोई फल न मिलने पर दशानन ने घोर तपस्या शुरू की तथा अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिव भोले ने प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। साथ ही सभी सिरों को पुनस्र्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने के लिए कहा।

जिला कांगड़ा के बैजनाथ शिव मंदिर में दर्शन के लिए उमड़े भक्‍त।

रावण ने कहा, मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने शिव¨लग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रावण दोनों शिव¨लग लेकर लंका चला गया। रास्ते में 'गौकर्ण' क्षेत्र बैजनाथ में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिव¨लगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उसके सामने जो शिव¨लग था, वह 'चन्द्रताल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह 'बैजनाथ' के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण मन्नत मांगते हैं।

तड़के खुल गए मंदिरों के कपाट

काठगढ़ शिव मंदिर में रात 12 बजे आरती पूर्ण होने के साथ ही मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। बैजनाथ शिव मंदिर में सुबह 4 बजे, त्रिलोकपुर शिव मंदिर सुबह 4 बजे व अघंजर महादेव सुबह 4 बजे खोल दिए गए।


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