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युद्ध के दौरान कारगिल पहुंच गए थे नरेंद्र मोदी और हिमाचल के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री धूमल, पढ़ें संस्‍मरण

Kargil Vijay Diwas कारगिल युद्ध के दौरान हिमाचल प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री धूमल और पार्टी प्रभारी नरेंद्र मोदी ने कारगिल पहुंचकर सैनिकों का हौसला बढ़ाया था।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 01:24 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 01:24 PM (IST)
युद्ध के दौरान कारगिल पहुंच गए थे नरेंद्र मोदी और हिमाचल के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री धूमल, पढ़ें संस्‍मरण
युद्ध के दौरान कारगिल पहुंच गए थे नरेंद्र मोदी और हिमाचल के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री धूमल, पढ़ें संस्‍मरण

धर्मशाला, जेएनएन। कारगिल विजय दिवस पर तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कुछ संस्‍मरण साझा किए। जानिए प्रेम कुमार धूमल की जुबानी। 2 जुलाई, 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संघर्ष के दौरान जवानों की पीठ थपथपाने के लिए सीमा पर जाने और सैनिकों का उत्साह बढ़ाने का समाचार आया तो सारा देश रोमांचित हो उठा। इस तरह की यह विश्व की पहली घटना थी। नरेंद्र मोदी उस समय भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री और हिमाचल के प्रभारी थे। उनसे चर्चा हुई और निर्णय लिया कि हमें भी कारगिल जाना चाहिए।

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सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री (पका भोजन), तौलिये, बनियानें व अन्य वस्त्र लिए और चार जुलाई को नरेंद्र मोदी, तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ठाकुर गुलाब सिंह और मैं, हेलीकॉप्टर से शिमला से श्रीनगर पहुंच गए। रात्रि भोज पर जम्मू कश्मीर के  मुख्यमंत्री, डॉ. फारूक अब्दुल्ला काफी देर तक बातें करते रहे। वह प्रसन्न थे कि किसी अन्य प्रदेश का मुख्यमंत्री भी सीमा पर युद्ध के दौरान जा रहा है।

अगले दिन यानी 5 जुलाई की सुबह जब हम हेलीपैड से कारगिल की तरफ रवाना होने लगे तो डॉ. अब्दुल्ला फिर आए और हमें बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का प्रधानमंत्री वाजपेयी को फोन आया है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उनके पास पहुंच गए हैं। आप भी युद्धविराम की घोषणा कर अमेरिका आ जाएं, कोई रास्ता निकालते हैं। परंतु प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उन्हें क्या उत्तर दिया इसकी जानकारी नहीं थी। हम श्रीनगर से कारगिल के लिए उड़े। रास्ते में यही शंका बनी रही कि कहीं पंडित नेहरू की तरह वाजपेयी भी युद्धविराम की घोषणा करके समझौते के चक्कर में न उलझ जाएं।

कारगिल में उतरे तो पाकिस्तान की तरफ से गोलाबारी हो रही थी, ब्रिगेडियर नन्दा ने हमें सारी स्थिति समझाई। हमने खाने का सामान और कपड़े आदि सैनिकों के हवाले कर दिए। वहां एक बहुत बड़ा भूमिगत मोर्चा बना था, जिसमें सैकड़ों लोग बैठ सकते थे, माइक लगा था। मुझे बोलने के लिए कहा गया, जब मैं संबोधित कर रहा था तभी एक अधिकारी बहुत प्रसन्न मुद्रा में आया और कहा कि प्रधानमंत्री ने उत्तर दे दिया।

अधिकारी ने बताया कि बकौल प्रधानमंत्री, जब तक एक भी घुसपैठिया कारगिल में है, तब तक न युद्धविराम होगा और न ही मैं देश छोड़कर जाऊंगा। यह सुनते ही अटल बिहारी वाजपेयी जिंदाबाद के नारे लगने लगे। हमें बताया गया कि सेना के अधिकारियों और कर्मचारियों में यह उत्साह इसलिए है कि एक ऐसा प्रधानमंत्री देश को मिला है जो वह करता है जो सेना चाहती है। सेना परमाणु बम चाहती थी तो अटल ने देश को आण्विक शक्ति बना दिया और इस बार पाकिस्तान से हिसाब चुकता करना चाहते थे, वही बात प्रधानमंत्री ने कह दी।

वापसी पर डॉ. अब्दुल्ला के सुझाव अनुसार हम बाबा श्री अमरनाथ के दर्शन करने गए तो उसी समय युद्ध मोर्चे से वापस आ रहे जवान भी वहां पहुंचे। नरेंद्र मोदी ने एक जवान से उसकी गन ली और गंभीरता से उसका निरीक्षण किया।

शाम को श्रीनगर पहुंचकर हम अस्पताल में घायल सैनिकों से मिलने गए, उन्हें भी सामान बांटा, एक घायल सैनिक को जब हमने सामान देना चाहा तो उसने हाथ बढ़ाकर पकड़ा नहीं, हम उसके पास टेबल पर सामान रखकर यह सोचते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि यह शायद कोई नाराजगी है। तभी एक अधिकारी तेजी से आया और उसने हमें बताया कि धमाके से उस सैनिक के दोनों हाथ और दोनों पैर उड़ गए थे। हम फिर वापस मुड़े ओर उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, बहुत दर्द होता होगा? उसने उत्तर दिया, 'पहले होता था, कल शाम से नहीं हो रहा है।Ó हमने पूछा कि क्या कोई दर्द निवारक दवाई या टीका लगा? उसने कहा, 'नहीं, कल शाम (4 जुलाई) टाइगर हिल वापस ले ली इसलिए।Ó हम सब भावुक हो गए। घायल सैनिकों को सामग्री देने हम उधमपुर, कसौली, चंडीमंदिर और दिल्ली के अस्पतालों तक गए, हर जगह वीर सैनिकों की वीरता की बातें सुनने काे मिलीं।

हिमाचल के 52 जवान शहीद हुए थे, मैं सभी के घर गया और हर घर में दिल को छू लेने वाली बातें सुनीं, उनमें से कुछ ये हैं।

हम पालमपुर में बैठे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पार्थिव शरीर का इंतजार कर रहे थे, कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद कैप्‍टन सौरभ कालिया की माता और कैप्‍टन विक्रम बत्रा की माता साथ-साथ बैठीं थी। श्रीमती कालिया श्रीमती बत्रा को ढाढस बंधा रही थीं। एक मां जिसने अपना बेटा कुछ दिन पहले ही खोया था वो दूसरी मां, जिसने अपना बेटा अभी-अभी खोया था, उसको हौसला दे रही थी। उनके संवाद से हृदय द्रवित हो गया।

बिलासपुर के एक शहीद जवान के घर गया तो शहीद की मां कौशल्या देवी ने कहा, 'धूमल जी, कल मंगल सिंह की अर्थी को मैंने डेढ़ किलोमीटर तक कंधा दिया।Ó शिमला जिले में एक अनुसूचित जाति के परिवार का लड़का शहीद हुआ था, उसका बड़ा भाई घर में था, हमने पूछा और कौन घर में है? उसने कहा छोटा भाई है जो आज ही शिमला भर्ती होने गया है। हम ने पांच लाख रुपये का चेक उसे दिया तो उसने कहा आधा ही दो। हमने कहा क्यों? उसने कहा बहुत लोग शहीद हो रहे हैं, आपको उनके परिवार वालों को भी देना है। पालमपुर के लंबापट में शादी के 15 दिन के अंदर ही राकेश कुमार शहीद हुआ था। उसके पिता हवलदार रोशन लाल के अनुसार, 1965 की लड़ाई में वह भी वहीं लड़े थे।

हमीरपुर में बमसन के तहत बगलू गांव के शहीद राज कुमार के घर जाते हुए सोच रहा था कि कैसे उसके बुजुर्ग पिता को ढाढस बंधाऊंगा? पहाड़ी चढ़कर उनके आंगन में पहुंचा तो गले लगते हुए हवलदार खजान सिंह ने कहा, 'धूमल साहब, बेटे तो पैदा ही इसलिए किए जाते हैं, पढ़ें, लिखें और जवान होकर फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा करें।Ó दोनों पोतों को मुझसे मिलाते हुए कहा, 'ये भी पढ़कर फौज में भर्ती होकर देशसेवा करेंगे।Ó मुझे कहा कि दिल्ली जाएंगे तो वाजपेयी जी से कहना कि जवानों की कमी हो तो 82 वर्षीय हवलदार खजान सिंह आज भी हथियार उठाकर देश की रक्षा के लिए लडऩे को तैयार है।

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