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देश को वायु प्रदूषण से बचाएगा हिमाचल का मॉडल, यहां जलती नहीं खुशहाली लाती है पराली; पढ़ें पूरा मामला

Parali Use in Himachal दूसरे राज्यों के मुकाबले बेशक हिमाचल प्रदेश में धान का उत्पादन कम होता है मगर पराली का इस्तेमाल जिस तरह से यहां होता है वह दूसरे राज्यों के लिए सबक है। छोटे और मंझोले किसान पराली को जलाते नहीं बल्कि पशुचारे मशरूम उत्पादन में लाते हैं।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 08:19 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 08:19 AM (IST)
देश को वायु प्रदूषण से बचाएगा हिमाचल का मॉडल, यहां जलती नहीं खुशहाली लाती है पराली; पढ़ें पूरा मामला
हिमाचल में पराली जलाई नहीं जाती, बल्कि इसका स‍ही उपयोग किया जाता है।

पालमपुर, शारदाआनंद गौतम। दूसरे राज्यों के मुकाबले बेशक हिमाचल प्रदेश में धान का उत्पादन कम होता है, मगर पराली का इस्तेमाल जिस तरह से यहां होता है वह दूसरे राज्यों के लिए सबक है। छोटे और मंझोले किसान पराली को जलाते नहीं बल्कि पशुचारे, मशरूम उत्पादन और पैकिंग में उपयोग लाते हैं। बड़े किसान इसे प्रदेश के अन्य भागों में पशुपालकों को भिजवा देते हैं। बड़े राज्य अगर इसी तर्ज पर पराली का उपयोग करें तो वायु प्रदूषण कम होगा और पशुचारे की कमी भी पूरी हो जाएगी।

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हिमाचल में धान की खेती कांगड़ा, मंडी, ऊना, सिरमौर, सोलन व हमीरपुर जिलों में की जाती है। प्रदेश में करीब 72 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती होती है। कांगड़ा जिले में 36 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान की पैदावार होती है। हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर में पराली पर व्यापक शोध हुआ है। संस्थान के विज्ञानियों ने पराली से बायोडीजल तैयार किया है। यह तकनीक अभी बहुत महंगी है और इसकी लागत कम करने के लिए विशेषज्ञ शोध कर रहे हैं।

पराली से बनाते हैं कंपोस्ट खाद

पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों में इन दिनों पराली जलाई जा रही है। यह पर्यावरण के लिए घातक है। इसे देखते हुए राज्य सरकारों ने खुले में पराली जलाने पर रोक लगाई है। साथ ही कड़े दंड का प्रावधान भी किया है। सामाजिक संगठन किसानों को जागरूक करने में जुटे हैं कि पराली का कोई और वैकल्पिक प्रयोग लाते हुए इसे जलाने से रोका जाए। मध्यप्रदेश में पराली से प्लेटें बनाकर प्लास्टिक की जगह इसे प्रयोग में करने की सलाह दी जा रही है। हिमाचल में मंझोले और छोटे किसानों के लिए पराली खुशहाली का काम करती है। किसान पशुओं को ठंड से बचाने के लिए उनके नीचे बिछाते हैं। साथ ही इसकी कंपोस्ट खाद भी बनाते हैं। प्रदेश में पशुचारे की समस्या रहती है और इसे पराली दूर कर देती है। दूसरे राज्य हिमाचल का मॉडल अपनाएंगे तो प्रदूषण का खतरा नहीं होगा।

कृषि विवि पालमपुर बनाएगा पौष्टिक चारा

चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में पराली से पशुओं के लिए पौष्टिक चारा बनाया जाएगा। सेब, स्ट्राबैरी या अन्य फलों के व्यर्थ को पराली में मिलाया जाएगा। साथ ही विवि प्रशासन पंजाब, हरियाणा व अन्य राज्यों के किसानों को हिमाचल के किसानों के स्ट्रा मैनेजमेंट मॉडल को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। विवि के कुलपति प्रो. एचके चौधरी का कहना है कि पराली के साथ फलों का मिश्रण कर पशुओं के लिए पौष्टिक आहार बनाया जाएगा।

हिमाचल का मॉडल अपनाएं अन्‍य राज्‍य : कुलपति

हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो. एचके चौधरी का कहना है हिमाचल के मॉडल को दूसरे राज्य अपनाते हैं तो पराली को जलाने से होने वाला प्रदूषण समाप्त हो जाएगा। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर व उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पशुचारे का गंभीर संकट रहता है। बड़े राज्यों से पराली को पर्वतीय राज्यों में भेजने की व्यवस्था हो जाए तो उत्तरी भारत को इस संकट से बचाया जा सकता है।


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