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GuruParv2021: गुरु नानक ने भाई मरदाना व बाला जी के साथ की थी मणिकर्ण की यात्रा

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के मणिकर्ण में सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव ने भाई मरदाना व भाई बाला के साथ यहां की यात्रा की थी। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है।

By Richa RanaEdited By: Published: Fri, 19 Nov 2021 01:08 PM (IST)Updated: Fri, 19 Nov 2021 01:08 PM (IST)
मणिकर्ण में गुरु नानक देव ने भाई मरदाना व भाई बाला के साथ यहां की यात्रा की थी।

कुल्‍लू, हंसराज सैनी। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के मणिकर्ण में सिक्खों के प्रथम गुरु नानक देव ने भाई मरदाना व भाई बाला के साथ यहां की यात्रा की थी। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है। गुरु नानक देव जी यहां कई दिनों तक यहां डेरा किया था। उनके शिष्य भाई बाला जी गांव गांव जाकर भोजन सामग्री एकत्रित करते थे। उन्होंने आटे से रोटियां बनाई थी और गुरु जी के समक्ष पेश कर दी थी। गुुरु नानक देव जी ने सभी रोटियों को एक पानी के कुंड में फेंक दिया था।

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इस कुंड में पकाया जाता है लंगर

इससे भाई बाला जी नाराज हो गए थे और गुरुजी से अपनी नाराजगी जाहिर की। तब गुरुजी ने यह वचन किया था बाला इंतजार करो। करतार भली करेगा। तत्पश्चात कुछ क्षणों में वह रोटियां पककर पानी के ऊपर आ गई। इस तरह गुरु नानक देव जी ने मणिकर्ण स्थित गर्म जल के कुंड को प्रकट किया था। इस कुंड में आज भी लंगर पकाया जाता है। देश विदेश से बडी़ संख्या में लोग श्रद्धा के साथ यहां आते हैं। पूरे साल यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है। यहां के गर्म स्त्रोतों का पानी संधिशोथ व चर्म रोग में फायदेमंद माना जाता है। इस स्थान के धार्मिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।

खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण

मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बनाया गया था। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। गर्म जल के चश्मे में श्रद्धालु यहां चावल ओर चने आदि कपड़े में बांध कर पानी मे उबालते हैं। मणिकर्ण में बरसात को छोड़ कर किसी भी मौसम में जाया जा सकता हैं। यहां सड़क मार्ग से बस व अपने वाहन में आसानी से पहुंचा जा सकता है। मणिकर्ण को धार्मिक एकता का प्रतीक माना जाता है। यहां पर पार्वती नाम की एक नदी बहती है, जिसके एक ओर शिव मंदिर है तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतहासिक गुरुद्वारा। नदी से जुड़े होने के कारण दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है।


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