Kargil Vijay Diwas: सलाम! शहादत के बाद भी परिवार का जज्बा नहीं हुआ कम
कांगड़ा जिले की तहसील पालमपुर की पंचायत दराटी के गांव लंबापट्ट निवासी शहीद राकेश कुमार शादी के महज तीन माह बाद ही राकेश कुमार कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे।
पालमपुर, कार्तिक शर्मा। परिवार के एक सदस्य ने देश के लिए शहादत का जाम पीया...परिवार का मनोबल कम नहीं हुआ बल्कि इससे प्रेरणा लेकर शहीद का भतीजा सेना में भर्ती हुआ और भतीजी ने हिमाचल पुलिस की वर्दी पहनी। पत्नी के हाथों की मेहंदी अभी उतरी भी नहीं थी कि सिंदूर माथे से मिट गया।
यह दास्तान है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की तहसील पालमपुर की पंचायत दराटी के गांव लंबापट्ट निवासी शहीद राकेश कुमार की। शादी के महज तीन माह बाद ही राकेश कुमार कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। शहीद राकेश कुमार का जन्म स्वर्गीय रोशन लाल (पूर्व सैनिक) और छैलो देवी के घर 21 मई, 1976 को हुआ था। परिवार में हलो देवी, शिवी चंद, चंचल देवी, रंचला देवी व राकेश को मिलाकर कुल पांच भाई बहनों में राकेश कुमार सबसे छोटे थे। पिता और बड़े दोनों भाई सेना में सेवारत रहे। इनसे ही राकेश को भी सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली थी।
राकेश कुमार 20 वर्ष की आयु में ही सेना की 13 जैक राइफल में भर्ती हुए थे। 23 वर्ष की आयु में राकेश कुमार का विवाह सुदर्शना देवी से 10 मार्च, 1999 को हुआ था और 14 जून, 1999 को शहीद हो गए थे। शहीद राकेश कुमार के बड़े भाई शिवीचंद का बड़ा बेटा अजय 15 फरवरी, 2012 को पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुआ है। अजय की छोटी बहन रीता 2010 से हिमाचल पुलिस में सेवाएं दे रही हैं।
पंचायत ही नहीं बल्कि समस्त क्षेत्रवासियों के लिए राकेश कुमार प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं। राकेश कुमार ने मात्र 23 वर्ष की आयु में शहादत पाई थी। शहीद के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
-संदीप कुमार, उपप्रधान ग्राम पंचायत दराटी
शहीद की यादगार
-गोपालपुर से लंबापट्ट की ओर जाने वाले दो किलोमीटर लंबे मार्ग का नामकरण शहीद राकेश कुमार के नाम से किया गया है।
-सीनियर सेकेंडरी स्कूल चचियां का नाम भी शहीद राकेश कुमार को समर्पित है।
गर्व है परिवार कर रहा देशसेवा
शहीद राकेश कुमार की 76 वर्षीय माता छैलो देवी बताती हैं, मैंने जो कुछ खोया है वह शायद ही किसी ने खोया होगा। बकौल छैली देवी, पति ने सेना में लंबे समय तक सेवाएं दीं और दोनों बेटों ने भी इस परंपरा को जारी रखा है। कुछ वर्ष पहले पति का स्वर्गवास हो गया। बड़े पुत्र का इसी वर्ष देहांत हुआ है। 52 वर्षीय शहीद की भाभी बताती हैं कि हमें गर्व है कि परिवार देशसेवा कर रहा है।
शहीद को पोपी के नाम से पुकारते थे दोस्त
शहीद के मित्र सुरेश पहाड़िया बताते हैं कि राकेश को वे पोपी के नाम से पुकारते थे। पढ़ाई में सभी अच्छे थे और क्रिकेट, वालीबॉल व कबड्डी में भी सभी की रुचि थी। सुरेश बताते हैं कि जब भी कोई पोपी (राकेश) की बात करता है तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। राकेश की शहादत पर गर्व रहेगा।