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पुलिस कर्मियों के हितों की लड़ाई लड़ेंगे स्वजन

हिमाचल पुलिस बल में अंदरखाते काफी कुछ पक रहा है लेकिन अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर नहीं किया जा रहा है। करीब साढ़े पांच हजार पुलिस कांस्टेबल के हितों की लड़ाई अब इनके स्वजन लड़ेंगे।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Published: Wed, 01 Dec 2021 08:58 PM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 08:58 PM (IST)
पुलिस कर्मियों के हितों की लड़ाई लड़ेंगे स्वजन। जागरण आर्काइव

शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल पुलिस बल में अंदरखाते काफी कुछ पक रहा है, लेकिन अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर नहीं किया जा रहा है। करीब साढ़े पांच हजार पुलिस कांस्टेबल के हितों की लड़ाई अब इनके स्वजन लड़ेंगे। प्रभावित कांस्टेबल अनुशासन में बंधे होने के कारण आंदोलन नहीं कर पाएंगे। इस कारण स्वजन आगे आएंगे। नियमित वेतनमान के लाभों से आठ साल तक वंचित रहने वाले पुलिस कर्मी तब तक मैस में खाना नहीं खाएंगे, जब तक इनका मुद्दा हल नहीं हो जाता। कोई आमरण अनशन नहीं होगा। मैस की बजाय विरोधस्वरूप भोजन बाहर ग्रहण किया जाएगा। यानी बटालियनों, पुलिस लाइनों में ये कांस्टेबल भोजन नहीं करेंगे। हालांकि वहां भी हर पुलिस कर्मी हर माह भोजन के बदले पैसे देते हैं। केवल कुक सरकार मुहैया करवाती करवाती है। कुक वर्षाें से आउटसोर्स पर ही नियुक्त किए जा रहे हैं। अब हिमाचल में भी दिल्ली, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों की तरह स्वजन आंदोलन करेंगे।

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क्या है वजह

सरकार ने 2016 में 2013 के कांस्टेबल भर्ती के बैच को दो साल के सेवाकाल के बाद ही नियमित वेतनमान जारी कर दिया, लेकिन 2015 और 2016 के भर्ती हुए कांस्टेबल पर आठ साल की शर्त लगा दी। जैसे 2013 के पुलिस कर्मियों को छूट दी, वैसे ही अन्य भर्ती किसी भी दूसरे बैच को नहीं दी। यह छूट कांग्रेस सरकार की मंत्रिमंडल ने दी थी। एक बैच को छोड़कर 2013 के बाद जितने भी पुलिस कांस्टेबल भर्ती हुए हैं, उन्हें नियमित वेतनमान नहीं मिलता है। केवल अनुबंध के बराबर ही वित्तीय लाभ दिए जाते हैं। जबकि पद नियमित आधार पर भरे गए हैं।

सरकार ने नहीं हुई बात

अभी तक कांस्टेबल की सरकार के साथ कोई बात नहीं हुई है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से सीधी बात होने के बाद मुद्दा आगे नहीं बढ़ पाया है। इसका कारण यह है कि डीजीपी स्तर पर या सरकार के वित्त विभाग के अधिकारियों के साथ पुलिस कर्मियों को नुमाइंदा कौन आगे आएगा। अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से ये खुलकर आगे नहीं आ सकते हैं।

महासंघ भी परिदृश्य से गायब

अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ भी अब परिदृश्य से गायब हो गया है। महासंघ ने संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक के एजेंडे में पुलिस कर्मियों के आठ साल के वेतनमान संबंधी मसले को अनुबंध समझा था। इसी से असमंजस पैदा हुआ। हालांकि महासंघ अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर ने पुलिस कर्मियों के हितों की मुख्यमंत्री के सामने ओकओवर में पैरवी की थी, पर बात वहां से आगे नहीं बढ़ पाई है।

दिल्ली, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में तो पुलिस कर्मियों के हितों की लड़ाई उनके स्वजन ने लड़ी है। हिमाचल में ऐसा पहली बार हो रहा है जब प्रभावित पुलिस कर्मी मैस का खाना नहीं खा रहे हैं। इनके स्वजन आंदोलन कर सकते हैं। हमारी यूनियन के साथ न तो सरकार और न ही पुलिस प्रशासन ने कोई बात की है। अंदरखाते बहुत कुछ पक रहा है। सरकार को बात कर मसला सुलझाना चाहिए।

-रमेश चौहान, राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय पुलिस कल्याण महासंघ।


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