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टांडा Eyes Bank में तीन साल में दो लोगों ने ही क‍िया नेत्रदान

ह‍िमाचल प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज, डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा में नेत्र बैंक की स्थापना हुई। लेक‍िन यहां अभी तक दो ही लोग नेत्रदान कर पाए हैं।

By Munish DixitEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 12:26 PM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 12:26 PM (IST)
टांडा Eyes Bank में तीन साल में दो लोगों ने ही क‍िया नेत्रदान

नीरज व्यास, कांगड़ा। नेत्रदान महादान होता है अौर एक अंधा व्यक्ति ही बता सकता है कि अांखों की रोशनी अाने से उसे क्या खुशी मिलती है। नेत्रदान के माध्यम से अंधे नेत्र को रोशनी देने का प्रयास अाधुनिक तकनीक के माध्यम से किया जा रहा है। अाइट्रांसप्लांट के माध्यम से अंधे व्यक्ति को रंग बिरंगे इस संसार को देखने का मौका मिल रहा है। लोग ज्यादा से ज्यादा नेत्रदान के लिए प्रेरित हो, इसके लिए कई तरह के अभियान भी चले हैं। लेकिन बावजूद इसके कांगड़ा जिला में स्थिति इसके विपरीत है।

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ह‍िमाचल प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज, डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा में नेत्र बैंक की स्थापना हुई। लेकिन यह लोगों के लिए उस तरह से लाभांवित नहीं हो सका, जिस तरह से इसे होना चाहिए।  डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 31 दिसंबर 2015 को अाइबैंक खुला था। इसके लिए बकायता स्टाफ भी तैनात है। लेकिन बावजूद इसके अभी तक इस अाइ बैंक में नेत्रदान करने वाले लोगों की संख्या नहीं बड़ सकी है। तीन साल में महज दो ही अाइडोनर यहां पहुंचे।

दो ही नेत्र दान करने वालों के नेत्रदान से अन्य को रोशनी मिल सकी है। लेकिन ज्यादातर लोगों ने इससे दूरी ही रखी है। टांडा अस्पताल के नेत्र बैंक में पालमपुर की कृष्णा ने नेत्रदान किए। जिन्हें किसी अन्य व्यक्ति पर ट्रांसप्लांट किया गया। इसी तरह से दूसरा नेत्रदान करने वाला व्यक्ति चंडीगढ़ से था अौर डोनेटिड अांखों को अन्य मरीज पर ट्रांसप्लांट किया गया। जबकि नेत्रदान के लिए शपथ पत्र देने वालों में तीन साल में करीब 197 लोगों ने अपना शपथपत्र नेत्रदान के लिए दिया है।

लेकिन होता यह है कि शपथपत्र देने वाले कि जब मृत्यु हो जाती है तो उसके परिजन इसके लिए बाधा बनते हैं, या तो वह इस बारे में स्वास्थ्य विभाग की टीम को सूचना ही नहीं देते या फिर अंधविश्वास को भी एक कारण माना जाता है। जिसमें ज्यादातर लोग यह मानते है कि इस जन्म में अांखे दे दी तो अगले जन्म मे अंधे पैदा होंगे। यह भी कह सकते हैं कि यहां पर लोगों को जागरूकता का भी अभाव है। नेत्रदान के लिए शपथ पत्र भर कर लोगों में वाहवाही तो लूट लेते हैं, लेकिन जो शपथ ली होती है उसे पूरा नहीं करते।

नेत्र बैंक की टीम 24 घंटे तैयार रहती है अौर वह सूचना पर तुरंत मृतक के घर पहुंच कर उसकी अांखों को सुरक्षित निकालकर उस जगह पर पत्थर की अांखे भर देते हैं या फिर उस स्थान को सील देते हैं। मृतक के पार्थिक देह को जलाने के साथ ही उसकी अांखे भी जल जाती है, लेकिन यही अांखे अगर समय पर सुरक्षित निकाल ली जाएं तो चिकित्सक इन अांखों को जरूरतमंद अंधे व्यक्ति में ट्रांसप्लांट कर उसे नया जीवन दे सकते हैं।

स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत समय समय पर जागरूकता अभियान चलते हैं। नेत्र जागरूकता पखवा़ड़े भी मनाए जाते हैं। स्कूल, कॉलेज व पंचायत जनप्रतिनिधियों को जागरूक करने के लिए प्रयास किए जाते हैं। कुछ लोग शपथ पत्र देकर नेत्रदान का फार्म भी भरते हैं। लेकिन जब किसी की मौत हो जाती है तो जागरूकता के अभाव में

या फिर नाते रिश्तेदार खुद ही स्वास्थ्य विभाग की टीम को सूचित नहीं करते। जिस कारण नेत्रदान करने वालों की संख्या कम है। होना तो यह चाहिए नेत्रदान की शपथ लेने वाले व्यक्ति के नेत्र सही तरीके से स्वास्य टीम समय पर निकाल ले, इसके लिए परिजन खुद फोन कर सूचित करें ताकि कोई दूसरा उन अांखों से दुनिया देख सके।-डॉ. गुरदर्शन गुप्ता, वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक।


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