राजनीति से किनारा, बागवानी को दुलारा; पूर्व विधायक ने मेहनत से सींचा सेब का बगीचा Kangra News
सेना से बतौर कैप्टन रिटायर हुए ज्ञान चंद मिन्हास राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि किसान-बागवान के नाते भी व्यापक पहचान बनाए हुए हैं।
पालमपुर, शारदा आनंद गौतम। आप इनकी उम्र पर न जाएं बल्कि जज्बे को देखें। 86 साल की उम्र में जो व्यक्ति सीखने की ललक लिए काम किए जा रहा हो तो वह मिसाल ही तो बनेगा। सेना से बतौर कैप्टन रिटायर हुए ज्ञान चंद मिन्हास राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि किसान-बागवान के नाते भी व्यापक पहचान बनाए हुए हैं। जहां भी काम किया मेहनत से किया। हर क्षेत्र में नाम के अनुरूप ज्ञान प्राप्त कर दूसरों के लिए मिसाल और प्रेरणा बने। कांगड़ा जिले के पालमपुर उपमंडल को चाय के लिए जाना जाता है। इसी उपमंडल में गद्दी बाहुल्य क्षेत्र कंडबाड़ी है। यहां बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों से आए लोगों ने खेती और बागवानी कर क्षेत्र की आबोहवा का लाभ उठाया है।
कंडबाड़ी के निकट ही गदियाड़ा गांव में कैप्टन ज्ञान चंद परिवार के साथ रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद ज्ञान चंद ने आपातकाल के बाद राजनीति में कदम रखा और तत्कालीन थुरल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। बाद में राजनीति रास नहीं आई और उन्होंने इससे किनारा करते हुए गदियाड़ा में खेतीबाड़ी और बागवानी में मन लगाया। बकौल ज्ञान चंद, करीब छह साल से वह सेब की पैदावार में जुटे हैं। वर्ष 2017 में करीब चालीस पेटी सेब की पैदावार हुई और इसे मित्रों और रिश्तेदारों में बांट दिया। 2018 में सौ पेटी सेब का उत्पादन हुआ। अब वह सेब की पैदावार को बाजार में भेजने की तैयारी में हैं।
100 पौधे लगा की थी शुरुआत
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और बागवानी विभाग से तकनीकी सलाह के बाद करीब 100 पौधे नेवा प्लांटेशन गोपालपुर से लिए और इन्हें कंडबाड़ी में लगाया था। इसके बाद उन्होंने कुलहाणी में बनाए बगीचे में 1200 पौधे लगाए हैं। ज्ञान चंद ने लो चिलिंग वैरायटी के अन्ना, डारसेट गोल्डन, माइकल व ¨पक लेडी पौधे लगाए हैं। इसके अलावा गेलगाला, सुपरचीफ, रेडचीफ, स्कारलेट स्पर टू, आरगन स्पर टू और डलेसियिस आदि वैरायटी के पौधे भी बगीचे में लगाए हैं।
कौन हैं ज्ञान चंद
पंजाब रेजीमेंट से बतौर कैप्टन रिटायर हुए ज्ञान चंद मिन्हास ने 1977 में जनता पार्टी के बैनर तले थुरल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। 1977 से 1982 तक थुरल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद राजनीति से किनारा कर खेतीबाड़ी की ओर मुड़े और उसमें रच बस गए। कुछ नया करने के जुनून के कारण उन्होंने 2013-2014 में अपनी भूमि पर सेब को तैयार करने की सोची और अब कंडबाड़ी में सेब की फसल तैयार की है।
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