आंखों की रोशनी गई पर हिम्मत नहीं हारी, पति की मौत के बाद भी नहीं हुई लाचार; इस तरह कमाई रोजी-रोटी
दृष्टिहीन होने के बाबजूद हिम्मत नहीं हारी। स्वेटर इत्यादि बुनकर जैसे-तैसे बच्चों के पालन-पोषण का इंतजाम किया।
मनाली, जसवंत ठाकुर। आंखों की रोशनी जाने से जीवन में अंधेरा नहीं हुआ था, सोचा पति और बच्चों के सहारे जिंदगी निकल जाएगी। लेकिन चार साल पहले पति के निधन के बाद लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया। चार बच्चों का पालन-पोषण दृष्टिहीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। दृष्टिहीन होने के बाबजूद हिम्मत नहीं हारी। स्वेटर इत्यादि बुनकर जैसे-तैसे बच्चों के पालन-पोषण का इंतजाम बमुश्किल हो रहा था। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और चुनौतियों का डटकर मुकाबला करती रही।
यह कहानी है शिमला जिले के चौपाल की दृष्टिहीन सुमित्र की। चार बच्चों की मां दृष्टिहीन सुमित्र को मलाल यह है कि ऐसे समय में उसका न कोई रिश्तेदार और न ही सरकार की कोई योजना सहारा बनी। स्वेटर बुनकर बच्चों की रोजीरोटी का जुगाड़ कर जिंदगी की गाड़ी खींच रही दृष्टिहीन सुमित्र का सहारा बने हैं जिला कांगड़ा के रहने वाले समाजसेवी संजय शर्मा। तीन माह पहले समाजसेवी संजय शर्मा सुमित्र के दुखों से रूबरू हुए तो उन्होंने उसे मनाली की स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) राधा में आश्रय दिलाया।
सुमित्र की हिम्मत को राधा संस्था ने पंख लगा दिए। राधा संस्था के सहयोग से सुमित्र के चारों बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दृष्टिहीन होने के बाबजूद सुमित्र हस्तशिल्प व हथकरघा के माध्यम से स्वावलंबन की तरफ कदम बढ़ाकर आत्मविश्वास के साथ जिंदगी जीने लगी है। गरीबी का दंश ङोल रही सुमित्र की जिंदगी में उम्मीद के चिराग अब जल उठे हैं।
सुमित्र समाज के लिए आदर्श बनी हैं। दृष्टिहीन होने के बावजूद सुमित्र हर काम में निपुण है। अब वह अपने बुलंद हौसले के साथ जिंदगी जीने लगी है। सुमित्र जैसे जरूरतमंद लोगों की मदद करना ही संस्था का उद्देश्य है और संस्था अपना काम कर रही है। -सुदर्शना ठाकुर, संचालिका राधा एनजीओ।
पति की मौत के बाद जिंदगी की जंग आसान नहीं थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। बच्चों के पालन-पोषण के लिए जीवन का संघर्ष जारी रखा। संजय शर्मा के सहयोग से राधा संस्था ने मेरे सारे दुखों का निपटारा कर दिया है। अब बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है। एनजीओ में कोई कमी नहीं है। यहां रहकर भी मैं स्वेटर बुनने समेत हस्तशिल्प व हथकरघा के माध्यम से स्वावलंबन व आत्मविश्वास के साथ जीना सीखी हूं। -दृष्टिविहीन सुमित्र।