ऐसा कार्यालय, तीन साल में किया कुछ नहीं; सरकारी खजाने पर डाल दिया सात करोड़ का बोझ
Lokayukat Office staff हिमाचल हाईकोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर पाई है।
शिमला, रमेश सिंगटा। हिमाचल हाईकोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इसके बगैर लोकायुक्त कार्यालय सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है। आलम यह है कि कार्यालय भी सुचारू तौर पर नहीं चल पा रहा है। लोगों को इसका कोई भी लाभ नहीं मिल रहा है। पिछले तीन साल में इस कार्यालय के स्टाफ और अफसरों के वेतन, सुविधाओं पर करीत सात करोड़ खर्च कर दिए गए हैं। पचास हजार करोड़ से अधिक के कर्जे में डूबी सरकार के खजाने पर तो बोझ बढ़ा ही है, फिजूलखर्ची को भी बढ़ावा मिला है।
इस दौरान दूसरे विभागों से सेकंडमेंट पर आए अधिकतर स्टाफ को इसी जगह पर स्थायी तौर पर खपा लिया गया है। सूत्रों के अनुसार स्टाफ को कार्यालय आने और जाने का कोई भी वक्त तय नहीं है। इस संबंध में मुख्य सचिव के निर्देशों को भी ठेंगा दिखाया जा रहा है। इन निर्देशों में सभी विभागों को कार्यालयों में बॉयोमीट्रिक मशीन से हाजिरी लगे। राज्य सचिवालय में खुद मुख्य सचिव भी इसी मशीन से उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। लेकिन कुछ ही दूरी पर स्थित लोकायुक्त कार्यालय ने इस दिशा में पहल नहीं की है। ऐसा इसलिए नहीं किया ताकि रामराज कायम रह सकें।
अफसरों पर कितना खर्च
लोकायुक्त कार्यालय में तीन अफसर हैं। इनमें सचिव, रजिस्ट्रार और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) शामिल हैं। इनके वेतन, सुविधाओं पर प्रतिमाह पांच लाख से अधिक का खर्चा आता है। जबकि 34 कर्मचारियों पर पंद्रह लाख का खर्चा आ रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने हसल ही में कहा था कि वह सेकंडमेंट पर भेजे गए कर्मचारियों को वापस मूल विभाग में लाया जाएगा। लेकिन लोकायुक्त दफ्तर में मंत्री की भी परवाह नहीं की। दो कर्मियों को स्थायी तौर पर एब्जोर्ब किए गए। सवाल उठ रहे हैं कि जब काम ही नहीं है तो यहां स्टाफ को स्थायी खपाने से क्या लाभ?
मानवाधिकार आयोग का भी काम
प्रदेश में लंबे अरसे से मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष ही नहीं है। आयोग कार्यालय का कामकाज भी लोकायुक्त कार्यालय के ही जिम्मे है। अभी नए अध्यक्ष की, सदस्यों की नियुक्त नहीं हुई है। इनके बिना वहां का कार्य भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा है।
जज और एएसपी को नहीं दिखाते हाजिरी रजिस्टर
यहां रजिस्ट्रार (जज) और पुलिस विभाग से आए एएसपी को भी स्टाफ की हाजिरी नहीं दिखाई जाती है। उन्हें यह भी नहीं बताया जाता है कि जनता की ओर से कितनी शिकायतें आई हैं। सारा नियंत्रण सचिव ने अपने पास रखा है।