धौलाधार की तलहटी में चंद्र भान किले का मलबा बयां करता है इतिहास के वीरों की कहानी, पढ़ें पूरा मामला
Chandra Bhan Fort Dhauladhar Mountain धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में आज भी चंद्र भान किले के मलबे से इतिहास का प्रहरी झांकता है। श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के उत्तर में धौलाधार पर्वत श्रृंखला के नीचे आदि हिमानी चामुंडा का उद्गगम स्थान है।
योल, सुरेश कौशल। Chandra Bhan Fort Dhauladhar Mountain, धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में आज भी चंद्र भान किले के मलबे से इतिहास का प्रहरी झांकता है। श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के उत्तर में धौलाधार पर्वत श्रृंखला के नीचे आदि हिमानी चामुंडा का उद्गगम स्थान है। चंद्र धार का नाम महाराजा चंद्र भान के नाम से पड़ा है। यह वीर अपने दुर्ग में रहता था तथा भगवती का प्रबल उपासक था। इस दुर्ग के अवशेष आज भी आदि हिमानी चामुंडा मंदिर से कुछ दूरी पर दिखते हैं।
ईस्वी 1670 के दौरान मुग़ल सेना से लोहा लेने के लिए यहां शरण ली थी, यह स्थल धार्मिक ही नहीं ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। यहां पहुंचने के लिए 14 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है 10,500, फीट की ऊंचाई पर यहां गर्मियों में भी ठंड रहती है। वहीं पर्वता रोहियों के लिए इसके आगे तालग जोत है जो 17,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, इसके साथ नीचे दर्शनीय स्थल हैं जैसे खरगोशीनी माता का मंदिर है।
यहां से गद्दी समुदाय के लोग अपनी भेड़ बकरियाें के साथ तालग जोत लांघ कर उत्तग शिखर को पार कर गधेरन यानी चंबा जाते हैं। इस शिखर की यात्रा द्वापर युग में पांडवों ने की थी ऐसी जनश्रुति है। वहीं हिमानी चामुंडा के शिखर के दूसरी ओर हिमाच्छादित सरोवर है। यह झील पानी से सारा साल ढकी रहती है। यही स्थान बाण गंगा (बनेर) का उद्गम स्रोत है, जो श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के पास से प्रवाहित होकर प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरती है। इस झील को अर्जुनताल के नाम से भी जाना जाता है।