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नीदरलैंड की ब्रेकल कंपनी को ब्लू कार्नर नोटिस जारी

धोखाधड़ी मामले में नीदरलैंड की ब्रेकल कंपनी को ब्लू कार्नर नोटिस जारी किया गया है। हिमाचल प्रदेश विजिलेंस की मांग पर इंटरपोल के माध्यम से कई देशों में यह नोटिस भेजा गया है। इस नोटिस का उद्देश्य आरोपित के बारे जानकारी जुटाना होता है।

By Vijay BhushanEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 11:55 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 11:55 PM (IST)
नीदरलैंड की ब्रेकल कंपनी को ब्लू कार्नर नोटिस जारी
नीदरलैंड्स की कंपनी ब्रेकल के खिलाफ ब्लू कार्नर नोटिस जारी।

रमेश सिंगटा, शिमला। धोखाधड़ी मामले में नीदरलैंड की ब्रेकल कंपनी को ब्लू कार्नर नोटिस जारी किया गया है। हिमाचल प्रदेश विजिलेंस की मांग पर इंटरपोल के माध्यम से कई देशों में यह नोटिस भेजा गया है। इस नोटिस का उद्देश्य आरोपित के बारे जानकारी जुटाना होता है।

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अभी यह पता नहीं लग पाया कि कंपनी का मुख्यकर्ताधर्ता कौन से देश में रह रहा है। जहां भी उसके छिपे होने की आशंका है, सभी देशों को इंटरपोल के जरिये सूचित किया गया है। इससे ब्रेकल कंपनी प्रबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लेकिन, आरोपितों को वापस भारत लाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। खासकर जिन देशों से प्रत्यर्पण संधि नहीं है। आरोप है कि ब्रेकल ने फर्जी दस्तावेज देकर बड़ा पावर प्रोजेक्ट हासिल किया था। इस मामले में पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रारंभिक जांच हुई थी।

क्या है विवाद

ब्रेकल कंपनी और जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट का विवाद पुराना है। 2006 में सरकार ने 960 मेगावाट क्षमता का जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट ब्रेकल को आवंटित किया था। बिड में रिलायंस कंपनी दूसरे स्थान पर रही। ब्रेकल ने 260 करोड़ रुपये अपफ्रंट मनी जमा नहीं करवाई। आरोप लगे कि ब्रेकल ने प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज दिए। सत्ता परिवर्तन के बाद तत्कालीन धूमल सरकार ने इस मामले में विजिलेंस जांच के आदेश दिए। इस बीच रिलायंस ने हाईकोर्ट पहुंच कर यह प्रोजेक्ट अपने लिए मांगा। लेकिन, ब्रेकल ने कोर्ट से 260 करोड़ रुपये जमा करवाने के लिए समय मांगा। इसके बाद यह राशि जमा नहीं हुई। इस मामले में कैबिनेट ने विशेष कमेटी बनाई।

कमेटी ने किया था आवंटन रद करने से इन्कार

कमेटी ने आवंटन रद करने से इंकार किया। पूर्व वीरभद्र सरकार ने प्रोजेक्ट रिलायंस को देना चाहा था। लेकिन, ब्रेकल की तरह उसका टर्नओवर भी काफी कम था। बाद में अडाणी ने 260 करोड़ रुपये व 20 करोड़ रुपये जुर्माना भी जमा करवाया। जयराम सरकार ने अडानी को 280 करोड़ रुपये वापस देने से इंकार कर इस प्रोजेक्ट को सतलुज जलविद्युत निगम को सौंप दिया था। यह प्रोजेक्ट 960 मेगावाट की जगह 780 मेगावाट का होगा।

क्या पाया जांच में

ब्रेकल कारपोरेशन कंपनी ने छह हजार करोड़ रुपये की परियोजना हासिल करने के लिए दी गई निविदा में कहा था कि कंपनी 12 फरवरी, 2005 को बनी थी। जांच में सामने आया कि कंपनी 13 फरवरी, 2006 को बनी थी। ब्रेकल ने दावा किया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालिन की उनके साथ तीस फीसद की भागीदारी है। कंपनी ने जांच में इस इस तरह की भागीदारी से इंकार कर दिया था। ब्रेकल ने निविदा दस्तावेजों में कहा था कि मैसर्स स्टेंडर्ड बैंक की उनके साथ 45 फीसद की हिस्सेदारी हैं। प्रारंभिक जाच में स्टेंडर्ड बैंक ने इस तरह की भागीदारी से इंकार कर ब्रेकल के दावे को झूठा करार दिया था। ब्रेकल ने इस प्रोजेक्ट का आवंटन हो जाने के बाद 21 मई, 2008 को सरकार को दिए जवाब में माना था कि उसने 49 फीसद हिस्सेदारी मैसर्स अडाणी पावर को हस्तातंरित करने की सहमति दी है। ऐसा करना आवंटन की शर्तो और प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के अपनियमों के खिलाफ था। इस प्रोजेक्ट के लिए अपफ्रंट मनी व जुर्माने के तौर पर 280 करोड़ रुपये अडाणी पावर के खाते से जमा हुए थे। निविदा शर्तों के मुताबिक यह पैसा जब्त हो चुका है। जांच में ब्रेकल कंपनी का अस्तित्व नीदरलैंड में होने का दावा भी संदेहास्पद था। सूत्रों के अनुसार आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को सरकार को मिली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि यह कागजी कंपनी है।


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