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बैजनाथ शिव मंदिर में बैकुंठ चौदह पर आज होगी अखरोटों की बारिश

ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ में बैकुंठ चौदह को अखरोट बरसाए जाते हैं। बुधवार को पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के ऊपर से पुजारियों द्वारा हजारों अखरोटों की बारिश की जाएगी। अखरोटों की बारिश के लिए करीब 10 हजार अखरोट का प्रबंध किया गया।

By Richa RanaEdited By: Published: Wed, 17 Nov 2021 03:00 PM (IST)Updated: Wed, 17 Nov 2021 03:00 PM (IST)
बैजनाथ शिव मंदिर में बैकुंठ चौदह पर आज होगी अखरोटों की बारिश
ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ में बैकुंठ चौदह को अखरोट बरसाए जाते हैं।

बैजनाथ, मुनीष दीक्षित। ऐतिहासिक शिव मंदिर बैजनाथ में बैकुंठ चौदह को अखरोट बरसाए जाते हैं। बुधवार को पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के ऊपर से पुजारियों द्वारा हजारों अखरोटों की बारिश की जाएगी। अखरोटों की बारिश के लिए करीब 10 हजार अखरोट का प्रबंध किया गया। शिव मंदिर बैजनाथ में बैकुंठ चौदस के अवसर पर प्रतिवर्ष यह आयोजन किया जाता है। इसका पौराणिक महत्व है और धार्मिक आयोजन को लेकर आज भी स्थानीय जनता बड़ी संख्या में मंदिर में जुटती है।

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मंदिर के पुजारी सुरेंद्र अचार्य बताते हैं कि भारतवर्ष में यह त्योहार सिर्फ बैजनाथ के शिव मंदिर में ही मनाया जाता है। इस त्योहार की गरिमा दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उन्होंने बताया पुरानी मान्यता के अनुसार शंखासुर नामक राक्षस ने देवताओं का राजपाठ छीन लिया था। शंखासुर इंद्र के शासन पर विराजमान होकर राज करने लगा था, जिससे भयभीत होकर समस्त देवता गुफा मेें रहने के लिए मजबूर हो गए। राज करते समय शंखासुर को लगा कि उसने देवताओं का सब कुछ छीन लिया, लेकिन देवता अब भी उससे ज्यादा शक्तिशाली हैं।

बैजनाथ शिव मंदिर में अखरोटों की बारिश के दौरान प्रसाद लेने के लिए पहुंचे लोग

पुजारी व अन्‍य लोगों की ओर से अखरोट बरसाए जाते हैं, जिन्‍हें लोग पकड़ते हैं। लोग अखरोट को प्रसाद के रूप में पाकर शुभ संकेत मानते हैं। शंखासुर ने सोचा कि शक्तिमान बनने के लिए मुझे वेदों के बीजमंत्र चाहिए जो देवताओं के पास हैं। उनकी शक्ति का यही राज है। उसने वेदमंत्र ग्रहण करने का निर्णय लिया। यह सब देख देवता दुखी हो गए और अपनी समस्या को सुलझाने के लिए ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मदेव ने देवताओं के साथ जाकर छह महीने से सो रहे भगवान विष्णु को उठाया और देवताओं को पेश आ रही समस्याओं का समाधान करने के लिए कहा। इसके बाद भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर समंदर में वेदमंत्र की रक्षा की और शंखासुर का वध कर देवताओं को उनका राज वापस दिलवाया। इस खुशी में मंदिर में अखरोटों की वर्षा की जाती है। बारिश का यह सिलसिला करीब 180 साल पुराना है।

पुजारी सुरेंद्र आचार्य बताते हैं कि शुरू में शिव मंदिर में एक-दो किलो अखरोटों की बारिश होती थी, जिन्हें बाद में श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता था, अब यह संख्या हजारों में पहुंच गई है। इस परंपरा को लोग बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं और मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचते हैं। मंदिर कमेटी इस आयोजन के लिए विशेष प्रबंध करती है।


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