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हिमाचल में यहां पांच सौ से भी ज्‍यादा वर्ष से जल रहा अखंड धूना, बाबा गंगा भारती ने की थी तपस्‍या

Baba Akhand Dhuna हिमाचल प्रदेश में यहां एक या दो साल से नहीं बल्कि 500 से ज्‍यादा वर्ष से अखंड धूना जल रहा है। जिला कांगड़ा के मुख्‍यालय धर्मशाला में खनियारा के अघंजर महादेव में 500 से अधिक साल से बाबा गंगा भारती का अखंड धूना जल रहा है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 10:50 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 10:56 AM (IST)
हिमाचल में यहां पांच सौ से भी ज्‍यादा वर्ष से जल रहा अखंड धूना, बाबा गंगा भारती ने की थी तपस्‍या
हिमाचल में यहां एक या दो साल से नहीं, बल्कि 500 से ज्‍यादा वर्ष से अखंड धूना जल रहा है।

धर्मशाला, नीरज व्यास। देव भूमि हिमाचल प्रदेश में यहां एक या दो साल से नहीं, बल्कि 500 से ज्‍यादा वर्ष से अखंड धूना जल रहा है। जिला कांगड़ा के मुख्‍यालय धर्मशाला में खनियारा के अघंजर महादेव में 500 से अधिक साल से बाबा गंगा भारती का अखंड धूना जल रहा है। बाबा यहां पर तपस्या में लीन रहते थे अौर यहां पर अधिक पेड़ होने के कारण इस जगह को झाड़ी का नाम भी दिया गया है। मान्यता है कि इस धूने की विभूती में पेट व अन्य असाध्य रोगों के निवारण की ताकत है। पांच सौ से अधिक सालों से यह धूना पूर्व की भांति जल रहा है। इस धूने को झोपड़ी से कमरे में तब्दील किया गया है अौर बाबा की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। अब पूजा अर्चना के लिए यहां तैनात साधु ही इस धूने के अासपास जाते हैं। श्रद्धालु धूने के दर्शन बाहर दरवाजे से करते हैं। अभी तक अखंड धूने की परंपरा चल रही है।

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विभूती से ठीक किया था राजा रणजीत सिंह का रोग

कहा जाता है राजा रणजीत सिंह ने जब दुश्मनों के दांत खट्टे किए तो उसके बाद वह खनियारा तक अपनी सीमाएं देखने के लिए पहुंचे। लेकिन इस दौरान राजा उदर रोग से ग्रस्त थे। बाबा गंगा भारती की कुटिया के पास पहुंचने पर वह बाबा से मिले। बाबा ने उनके असाध्य रोग को अपने धूने की विभूती से ठीक किया था। बाबा पर प्रसन्न होकर राजा रणजीत सिंह ने बाबा गंगाभारती को बहुत ही सुंदर व अाकर्षक दुशाला भेंट किया। जिसे बाबा ने राजा का घमंड व अहंकार दूर करने के लिए उनके सामने ही अग्निकुंड (धूने) में डाल दिया। राजा ने क्रोध में अाकर बाबा को कहा था कि इतना सुंदर व अाकर्षक दुशाला संभाल कर रखने के बजाय अाग में डाल दिया। राजा को ज्ञान देने व अहंकार नष्ट करने को ही बाबा ने एेसा किया था।

धूने से निकाले, सैकड़ों दुशाले कहा राजन पहचान लो तुम्हारा कौन

बाबा गंगा भारती ने अपने धूने में चिमटा गाड़कर क्रोध से अाग बबूला हुए राजा को कहा राजा पहचानों अपना दुशाला तुमने कौन सा दुशाला दिया था अौर उसे उठा लो। एक एक करके बाबा ने धूने से ही सौ से अधिक अाकर्षक दुशाले निकाल दिए। एेसे में क्रोध से लाल पीले हुए राजा रणजीत सिंह को अपनी भूल व क्रोध का अहसास हो गया। राजा ने बाबा से विनम्र भाव से माफी ही नहीं मांगी बल्कि अंहाकार नष्ट करने व अांखे खोलने के लिए बाबा का अाभार व्यक्त किया। इसके साथ ही जो जगह वर्तमान में अघंजर महादेव के नाम से जानी जाती है, उस जगह के अास पास के क्षेत्र को बाबा गंगा भारती के नाम करने का एेलान किया। तब से जितनी जमीन अघंजर महादेव मंदिर के पास है, वह अाज भी हरी भरी है अौर यहां अाज भी घना वन है, जबकि अासपास में वन क्षेत्र न के बराबर है।

बाबा गंगाभारती ने यहीं पर ली थी समाधि

बाबा गंगा भारती ने यहीं पर जीवंत समाधि ली थी अौर उस द्वार को बाद में बंद कर दिया था। समाधि के द्वार पर हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई है, जबकि समाधि के ऊपर शिव का मंदिर बनाकर शिवलिंग स्थापित किया गया है। यहां पर अाने वाले श्रद्धालु बाबा के धूने में व बाबा को भी माथा टेकते हैं।

जानिए किस तरह जलता है धूना

बाबा गंगा भारती को राजा रणजीत सिंह ने एक बहुत बड़ा भूखंड दान दिया था। जिसमें हजारों पेड़ लगे हैं। इन पेड़ों में से जो पेड़ गिर जाते हैं या सड़ने लगते हैं व सूखे पेड़ होते हैं उन्हें कटवाकर रख लिया जाता है। इनके मोटे मोटे व बड़े टुकड़े धूने में लगाए जाते हैं। एक टुकड़ा भी कई दिनों तक अखंड धूने में जलता रहता है। जब एक टुकड़ा जल जाता है तो एक अोर लगा दिया जाता है, इसलिए यहां पर अखंड धूना निरंतर चल रहा है। यह धूना कभी भी जलना बंद नहीं हुअा है।

अघंजर महादेव में है मनूनी खड्ड के बीच शिवलिंग

अघंजर महादेव में मनूनी खड्ड के बिल्‍कुल साथ गुप्तेश्वर महादेव मंदिर स्थापित है। इस स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना  ने अज्ञातवास के दौरान की थी अौर शस्त्र प्राप्ति के लिए यहां से कैलाश गए थे। इस मान्यता मुताबिक यहां मनूनी खड्ड के बिल्कुल साथ बने इस शिवलिंग की भी श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। कितनी भी बारिश हो, खड्ड कितने भी उफान पर हो, लेकिन अाज दिन तक इस शिवलिंग तक खड्ड का पानी नहीं पहुंच सका है, जबकि यह बिल्कुल खड्ड में है।


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