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ज्‍वालामुखी में गिरी थी सती की जीभ, यहां आज भी जलती है ज्‍वाला, जानिए कैसे पहुंचे मंदिर

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर आज विश्व के मानचित्र पर विद्यमान है। विश्‍व के 52 शक्ति पीठ में सबसे प्रथम स्थान श्री ज्वालामुखी मंदिर को प्राप्त है। देश- विदेश से भक्तजन मां ज्‍वाला के दर्शन करने आते हैं।

By Richa RanaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 06:30 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 10:21 AM (IST)
ज्‍वालामुखी में गिरी थी सती की जीभ, यहां आज भी जलती है ज्‍वाला, जानिए कैसे पहुंचे मंदिर
विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर आज विश्व के मानचित्र पर विद्यमान है।

ज्‍वालामुखी, करुणेश शर्मा। विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर आज विश्व के मानचित्र पर विद्यमान है। विश्‍व के 52 शक्ति पीठ में सबसे प्रथम स्थान श्री ज्वालामुखी मंदिर को प्राप्त है देश- विदेश से लाखों की संख्या में भक्तजन मां ज्वालामुखी के दरबार में परिवार सहित दर्शन करने के लिए आते हैं और इच्‍छापूर्ण कर के जाते हैं।

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ज्वालामुखी मंदिर में आने के लिए भक्तों को यदि हवाई मार्ग से आना हो तो गग्गल एयरपोर्ट से टैक्सी या बस सेवा से ज्वालामुखी पहुंचा जा सकता है। यदि ट्रेन सुविधा से आना हो तो पठानकोट से रानीताल तक फिर टैक्‍सी या बस से ज्वालामुखी तक और दिल्ली आदि क्षेत्रों से मुबारकपुर तक ट्रेन से और उसके आगे  टैक्सी या बस से  पहुंचा जा सकता है। देश के कोने कोने से यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। 

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी  मंदिर का संचालन हिमाचल प्रदेश सरकार के हाथों में चल रहा है  यहां पर श्रद्धालुओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और हजारों लोगों का रोजी-रोटी  मंदिर के ऊपर निर्भर है।  विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर की एक कथा प्रचलित है की सती के पिता राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने सभी देवी देवताओं को बुलाया परंतु अपनी बेटी सती और उसके पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया जब सभी देवी-देवता उस महायज्ञ में जा रहे थे तो माता सती ने भगवान शंकर से वहां चलने का आग्रह किया परंतु भगवान शंकर ने सती को यह कहकर मना कर दिया कि बिना आमंत्रण के वे नहीं जाएंगे। इस पर सती ने कहा कि वे महाराजा दक्ष की सुपुत्री हैं उन्हें स्वीकृति प्रदान करें वो वहां जाएंगी और अपने पिता से पूछेंगे कि उन्‍होंने अपने दामाद व पुत्री को क्यों नहीं बुलाया है  भगवान शंकर के बार-बार मना करने पर भी सती नहीं मानी और भगवान ने आखिरकार उन्हें जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी तब सती ने वहां पर अपना और अपने पति भगवान शंकर का अपमान सहन नहीं किया और वहां पर महायज्ञ की  अग्नि कुंड में  छलांग लगाकर  अपने शरीर का त्याग कर दिया  तब चारों ओर हड़कंप मच गया भगवान शंकर तक जब यह बात पहुंची तो आग बबूला हो गए उन्होंने अपनी जटाओं से  दो असुरों को प्रकट किया  और उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और दक्ष प्रजापति का सर काट देने का आदेश दिया और  दैत्यों ने  यज्ञ विध्वंस कर दिया और दक्ष प्रजापति का सिर काट दिया तब सभी देवी देवताओं ने भगवान शंकर से प्रार्थना की  भगवान शंकर ने उसे बकरे का सर लगा दिया और जीवनदान दिया  उसके बाद सती के वियोग में व्याकुल होकर शंकर भगवान सती के शव को हाथों में लिए ब्रह्मांड में विचरने लगे जिस पर  भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से  सती के अंगो का विच्छेद करना शुरू कर दिया जहां जहां सती के अंग गिरे वहां वहां पर देवी के शक्तिपीठ बन गए और वहीं पर नजदीक में ही भगवान शंकर ने भी अपना डेरा जमाया और वे  अंबिकेश्वर  के रूप में जाने जाने लगे  जहां जहां सती के अंग गिरे वहां पर देवी स्थान बने और वहीं पर भगवान शंकर का मंदिर भी  बनाया गया  ज्वालामुखी में सती की जीभ गिरी थी जिससे ज्वाला निकल रही थी इसलिए इस पावन स्थल का नाम ज्वालामुखी पड़ा है  मां की ज्योति  अखंड ज्योति है और लाखों लोगों की मन की मुराद यहां पर पूरी होती है  यहां पर बड़े-बड़े राजाओं महाराजाओं ने आकर परीक्षा ली थी शहंशाह अकबर ने यहां पर ज्योतियों को लोहे के तवे से ढकने का प्रयास किया था उन्होंने मंदिर को पानी से भर दिया ताकि ज्योति बुझ जाए परंतु ज्योतियों ने  लोहे के तवे भी फाड़ दिए और पानी के ऊपर भी तैर कर अपनी शक्ति का एहसास शहंशाह को करवा दिया तब शहंशाह अकबर ने सवा मणी सोने का छत्र माफीनामा के साथ मां के चरणों में अर्पित किया परंतु अभिमान वश वह एक और भूल कर बैठा कि वह एक मुसलमान राजा ही यहां पर इतना बड़ा दान कर सकता है  हिंदू नहीं कर पाएगा  जिससे मां क्रोधित हो गई और उस छत्र को जलाकर भस्म कर दिया आज भी वह छत्र जले हुए छत्र के रूप में यहां पर दिखाई देता है  मां ज्वालामुखी का एक और चमत्कार पूरे विश्व में जाना जाता है जब मां ज्वालामुखी की ज्योतियां नैना देवी मंदिर में साल में एक या दो बार चली जाती हैं और वहां पर पीपल पेड़ के पत्ते पत्ते के ऊपर ज्योति नजर आती है हजारों की संख्या में ज्योतिया नैना देवी मंदिर में जगह-जगह विद्यमान नजर आती है ऐसा कहा जाता है कि ज्वाला माता अपनी बहन से मिलने के लिए साल में एक या दो बार नैना देवी जाती है मां ज्वालामुखी अपनी सभी बहनों में सबसे बड़ी बहन है और माता की अखंड कोमल शीतल ज्योतियां भक्तों के लिए वरदान से कम नहीं है यहां पर बड़े बड़े राजनीतिज्ञ फिल्म कलाकार और बड़ी हस्तियां मां के दरबार में आती हैं और मनचाहे मनोरथ हासिल करके जाते हैं यहां पर साल में तीन बार श्रावण, आश्विन और चैत्र में माता के नवरात्रे लगते हैं इसके अलावा साल में दो बार गुप्त नवरात्रों का आयोजन विश्व शांति व जनकल्याण के लिए किया जाता है यहां पर देवी भागवत कथा भी साल में दो बार करवाई जाती है ताकि विश्व में शांति हो जनकल्याण हो भाईचारे की भावना पैदा हो ।ज्वालामुखी मंदिर की वजह से ज्वालामुखी शहर व आसपास के गांव बसे हुए हैं यहां पर यात्रियों के आने से ही लोगों की रोजी-रोटी चलती है लॉक डाउन की वजह से 7 माह के लिए जब मंदिर बंद हो गए थे तब यहां पर लोगों के हालात खराब हो गए थे लोग आर्थिक दृष्टि से बुरी तरह से पिछड़ गए थे परंतु अब मंदिर खुले हैं जिससे लोगों की आर्थिक दशा धीरे-धीरे पटरी पर आने शुरू हो गई है और लोगों ने मां ज्वाला जी से प्रार्थना की है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से सारे जगत को निजात मिले ऐसी कृपा इस जगत पर इस मानव जाति पर करें ताकि जगत का कल्याण हो और राक्षसों का नाश हो।


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