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कोरोना वायरस पर हिमाचल में अलर्ट, अस्पतालों में कफ कॉर्नर्स स्थापित; बचाव के लिए अपनाएं ये तरीके

चीन में कोरोना वायरस की चपेट में आने वाले मरीजों की मौत तथा संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों के बढ़ते आंकड़े के बाद दुनियाभर में अलर्ट जारी किया गया है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 08:42 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 02:26 PM (IST)
कोरोना वायरस पर हिमाचल में अलर्ट, अस्पतालों में कफ कॉर्नर्स स्थापित; बचाव के लिए अपनाएं ये तरीके

धर्मशाला, जागरण संवाददाता। चीन में कोरोना वायरस की चपेट में आने वाले मरीजों की मौत तथा संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों के बढ़ते आंकड़े के बाद दुनियाभर में अलर्ट जारी किया गया है। हिमाचल में भी स्वास्थ्य विभाग ने एहतियात के तौर पर वायरस को लेकर एडवायजरी जारी की है। इसी के मद्देनजर जिला कांगड़ा में भी तीन अस्पतालों में कफ कॉर्नर्स स्थापित कर दिए हैं। जोनल अस्पताल धर्मशाला, डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा और सिविल अस्पताल पालमपुर में कॉर्नर्स स्थापित किए हैं। इन कॉर्नर्स में सर्दी-जुकाम से पीडि़त मरीजों की तुरंत जांच की जा रही है।

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इतना ही नहीं विभाग की ओर से स्टाफ को कोरोना वायरस के संबंध में अपडेट किया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अभी तक देश में कोरोना वायरस का कोई भी मामला कन्फर्म नहीं हुआ है, लेकिन एहतियात के तौर पर प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग भी पूरी तरह मुस्तैद है। विभाग की मानें तो इस वारयस की चपेट में आने वाले का तुरंत उपचार शुरू किया जा सके, इसके लिए कफ कॉर्नर्स स्थापित किए हैं।

जिले में अलर्ट जारी किया गया : सीएमओ

सीएमओ कांगड़ा डॉ. गुरदर्शन गुप्ता ने बताया कि कोरोना वायरस पिछले वर्ष दिसंबर में दुनिया में सामने आया था। इसके ज्यादा मामले चीन में पाए गए हैं। अभी तक भारत में वायरस का कोई भी कन्फर्म केस नहीं आया है। यह एक वायरल इंफेक्शन है। सारे स्टाफ को अपडेट किया जा रहा है। धर्मशाला, टांडा और पालमपुर अस्पतालों में कफ कॉर्नर्स स्थापित किए हैं। उन्होंने बताया कि जिले में अलर्ट कर दिया गया है।

क्या है कोरोना वायरस

कोरोना असल में वायरस का एक बड़ा समूह है जो जानवरों में आम है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीएस) के अनुसार, कोरोना वायरस जानवरों से मनुष्यों तक पहुंच जाता है। इसके संक्रमण से बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं हो जाती हैं। यह न्यूमोनिया का कारण भी बन सकता है। इसकी स्थिति मिडल ईस्ट रेस्पाइरेट्री सिंड्रोम (एमईआरएस) और सेवल एक्युट रेस्पाइरेट्री सिंड्रोम (सार्स) से मिलती जुलती है।

बचाव के तरीके

  • हाथ साबुन और पानी या अल्कोहल युक्त हैंड रब से साफ करें।
  • खांसते या छींकते वक्त नाक और मुंह को टिश्यू या मुड़ी हुई कोहनी से ढकें।
  • जिन्हें सर्दी या फ्लू जैसे लक्षण हों, उनके साथ करीबी संपर्क बनाने से बचें।
  • मीट और अंडों को अच्छे से पकाएं।
  • जंगल और खेतों में रहने वाले जानवरों के साथ असुरक्षित संपर्क न बनाएं।

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