राजा हमीरचंद्र ने बसाया था हमीरपुर
पहली सितंबर 1972 को आस्तित्व में आया था जिला हमीरपुर, अपने-आप में समद्ध इतिहास को समेटे है जिला
हमीरपुर, रणवीर ठाकुर। कहने को हमीरपुर भले ही प्रदेश का सबसे छोटा जिला हो, लेकिन यह अपने-आप में समद्ध इतिहास को समेटे हुए है, जिसका वर्तमान व भविष्य भी उतना ही उज्जवल है। कालांतर में यह क्षेत्र कांगड़ा रियासत में आता था, जिसकी स्थापना 19वीं शताब्दी के दौरान राजा हमीरचंद्र ने की। देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिला का भू-भाग रहा और पंजाब पुनर्गठन के बाद एक सितंबर 1972 को यह जिला अपने आस्तिव में आया।
कस्बे से जिला बनने का सफर
18वीं शताब्दी के प्रथम चरण में कांगड़ा क्षेत्र में कटोच वंश उदय होने के समय हमीरपुर ने अपने ऐतिहासिक क्षेत्र में प्रवेश किया। 19वीं शताब्दी में हीरानगर के समीप सामरिक दृष्टि से एक दुर्ग का निर्माण करवाया गया और यहीं से हमीरपुर की नीव पड़ी। राजा हमीरपुर चंद्र 1740 - 1780 तक कांगड़ा रियासत के शासक
रहे थे। हमीरपुर में एक बड़ा तहसील भवन जो सन 1888 में बनाया था, नगर के गौरवपूर्ण अतीत का गवाह है।
ऐतिहासिक महत्व
हमीरपुर जिले के सुजानपुर, नादौन तथा महल मोरियां के साथ इतिहास के तथ्य जुड़े हैं। नौंवी व दसवीं शताब्दी में कांगड़ा राज्य में नादौन का राजकीय महत्व स्थापित हो गया था। 1690 में गुरू गोविंद सिंह की सेना ने नादौन की युद्ध भूमि पर मुगल सेना को बुरी तरह खदेड़ दिया था, जहां अब भव्य गुरूद्वारा है। इसी तरह सुजानपुर टीहरा का ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष स्थान है, जिसकी स्थापना कांगड़ा नरेश घमंडचंद ने 1761-1773 में रखी थी। इनके पौत्र महाराजा संसार चंद 1775 -1823 ईस्वी द्वारा इस नगर को गरिमा प्रदान की गई, इन्हीं के शासनकाल में सुजानपुर टीहरा होली उत्सव, बृज होली की शुरुआत हुई।
धार्मिक महत्व के स्थल
उत्तर भारत का प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ दियोटसिद्व मंदिर इसी जिला में है, जिनसे हमीरपुर का महत्व और बढ़ गया है। इसके अलावा जिला में बिल्कलेश्वर मंदिर, टौणीदेवी मंदिर, अवाहदेवी मंदिर, झनियारी देवी मंदिर भी आस्था के बड़े केंद्र हैं।