कांगड़े रे देसा बरसे लोकगीतों के बादल
पहाड़ की संस्कृति का चेहरा लोक गायन भले ही आज विलुप्त हो रहा हो, लेकिन युवा महोत्सव में इस संस्कृति का बेजोड़ संगम युवाओं की गायकी में नजर आया। ढ़ोलक की थपा में हारमोनियम के सुरों ने खूब रंग भी जमाया। नए कंठ पर पौराणिक गातों की सुर और उस पर अपनी अपनी संस्कृति का पहनावा... दूर से ही देख माहौल स्थान विशेष का लग रहा था। सभागार कभी गद्दी समुदाय के रंग और कभी मंडियाली रंग में रंगा जा रहा था।
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : गुड़क चमक भाउआ मेघा हो.. यानी गरज, चमक और चंबयाली देश में बरस भाई बादल..लेकिन ये बादल दरअसल कांगड़ा में बरसे। बेशक ऑडियो या वीडियो सीडीज में लोक गायन अपनी मौलिकता को खो रहा हो..भले ही प्रयोग के नाम पर नए गुल खिल रहे हों..युवा महोत्सव में उम्मीद बंधी कि लोक गीत अपने मौलिक स्वरूप में कायम हैं।
पहाड़ की संस्कृति का चेहरा लोक गायन भले ही विलुप्त हो रहा हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के युवा महोत्सव ग्रुप-दो में शुक्रवार को लोक गायन में इस संस्कृति का बेजोड़ संगम युवाओं की गायकी में नजर आया। ढोलक की थाप व हारमोनियम पर नए कंठ से पौराणिक गीतों के सुर और उस पर पहाड़ी पहनावा हिमाचल के कई क्षेत्रों का चित्रण कर रहा था। सभागार कभी गद्दी समुदाय के रंग और कभी मंडियाली रंग में रंगता जा रहा था।
लुआंचड़ी, डोरा, चंद्रहार, नत्थ, चिड़ी पहने पालमपुर की शिवानी ने प्यारी भोटलिए गीत ढोलक और हारमोनियम के साथ ऐसे प्रस्तुत किया कि पूरा माहौल गद्दी समुदाय के रंग में रंग गया। शब्द पुराने थे पर नए रंग में पेश किया गया यह गाना नया ही लग रहा था। इस तरह की प्रस्तुतियां बता रही हैं कि चाहे कोई कुछ भी कह ले युवाओं में आज भी लोकगीतों छाप जिंदा है। सभागार में हर 10 मिनट के भीतर माहौल बदल रहा था क्योंकि इतने समय के नए युवा लोक गायक मंच पर पहुंचकर लोक गीतों से दर्शकों को अवगत करवा रहे थे।
नगरोटा बगवां की दीक्षा ने 'गुड़क चमक भाउआ मेघा हो', अर्की की भारती ने 'कियां सैहणे नणदां रे बोल', संस्कृत महाविद्यालय सुंदरनगर के नीरज ने श्रीकृष्ण लीला पर आधारित 'भियागड़ा', जोगेंद्रनगर की अनुराधा ने 'कालुआ मजूरा', शाहपुर की तान्या ने 'सोणी सोणी शिमले री सड़कां जिंदे', ढलियारा की ज्योति ने 'पारले झरोखे सोकण' और फाइन आर्ट्स कॉलेज शिमला के शुभम चौहान ने गुरदास मान का गीत 'जुगनी' पेश किया। कार्यक्रम में डॉ. ऊषा बगाती, डॉ. जगमोहन शर्मा, डॉ. अशोक कुमार शर्मा, डॉ. जिया लाल ठाकुर ने बतौर निर्णायक भूमिका निभाई।