बच्चों को मंच पर देखना जेब पर भारी
बच्चों को मंच प्रदान करने का चक्कर अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ने लगा है। एक तरफ जहां यह अभिभावकों की जेब पर भारी है तो दूसरी तरफ यह स्कूल प्रशासन के लिए मुनाफा का सौदा सिद्व हो रहा है। ऐसे हालत में अभिभावक चुपचाप अपने बच्चों को मंच पर देखने के चक्कर में निजी स्कूलों को मनमाफिक तौर पर धनराशि दिए जा रहें है।
शारदाआनंद गौतम, पालमपुर
इन दिनों निजी स्कूलों में वार्षिक समारोह का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे में बच्चों को मंच पर देखना अभिभावकों को जेब पर भारी पड़ रहा है, क्योंकि स्कूल प्रबंधन किराये की ड्रेस लेने के लिए उनसे मनमाफिक पैसे वसूल रहे हैं। अधिकारियों के बच्चे भी इन स्कूलों में पढ़ते हैं। वे भी बिना कुछ कहे स्कूलों को पैसे दे देते हैं। पिसना तो उन अभिभावकों को पड़ रहा है जिनके दो या तीन बच्चे हैं और इन्हें कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए किराये की ड्रेस के नाम पर मोटी रकम स्कूलों को देनी पड़ रही है।
अभिभावकों का कहना है कि जितनी राशि से किराये पर ड्रेस ली जाती है उसमें कुछ और पैसे डालकर नई आ जाती है। स्कूल प्रबंधन 30-40 बच्चों को एक साथ मंच पर जबरदस्ती खड़ा कर देते हैं। इससे कई बच्चे प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। जिन अभिभावकों के बच्चे मंच पर खड़े रहते हैं उन्हें निराश होना पड़ता है। ऐसे में स्कूल प्रबंधन अभिभावकों के सामने कौन सी प्रतिभा पेश करना चाहते हैं। स्कूलों ने वार्षिक समारोह के नाम पर मोटी कमाई करने का जरिया बना लिया है।
हिमाचली, पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी, सैनिक आदि ड्रेस किराए पर लेने के लिए हर अभिभावक से 300 से 500 रुपये वसूले जा रहे हैं। हर स्कूल में ड्रेस के अलग-अलग दाम तय हैं। अभिभावकों को संदेश दिया जाता है कि बच्चों के हाथ में इतने पैसे भेज दें। इसकी रसीद भी नहीं दी जाती है।
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मामला गंभीर है। अभिभावक इस तरह से स्कूलों को धनराशि न दें। सांस्कृतिक कार्यक्रम बिना परिधानों के भी होते हैं। सभी स्कूलों को इस मामले में सरकुलर जारी किया जाएगा कि वार्षिक कार्यक्रमों में बच्चों से ड्रेस के पैसे न मंगवाए जाएं।
-गुरुदेव सिंह, उपनिदेशक, शिक्षा विभाग।