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'भारत का नाम सुन सूडानी सैनिकों ने नहीं रोका', आपरेशन कावरी से लौटे हिमाचल के दो युवाओं ने सुनाई आपबीती

हिमाचल के दीपक और रोहित किसी तरह सूडान से वापस लौट आए हैं। उन्होंने भारत आकर चैन की सांस ली। उन्होंने बताया कि भारतीय पासपोर्ट देखने के बाद उनको सूडानी सैनिकों ने नहीं रोका और मुस्कुराते हुए कहा कि आपका स्वागत है।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaPublished: Sun, 30 Apr 2023 09:28 PM (IST)Updated: Sun, 30 Apr 2023 09:28 PM (IST)
'भारत का नाम सुन सूडानी सैनिकों ने नहीं रोका', आपरेशन कावरी से लौटे हिमाचल के दो युवाओं ने सुनाई आपबीती
आपरेशन कावरी से लौटे हिमाचल के दो युवाओं ने सुनाई आपबीती

धर्मशाला, मनोज शर्मा। पता चला था कि सूडान छोड़कर लौट रहे अमेरिकी लोगों को सुरक्षा बल लूट रहे हैं। हमें चिंता हुई कि हमारा क्या होगा। लेकिन जब हम निकले तो भारत के पासपोर्ट को देखते ही सुरक्षा बल मैत्रीपूर्ण ढंग से बात करने लगे। यह देखकर जहां घर लौटने की खुशी दोगुनी हो गई, वहीं भारत की ताकत का भी एहसास हुआ। यह कहना है आपरेशन कावेरी के तहत सूडान से लौटे हमीरपुर जिले के पनसाई निवासी दीपक अग्निहोत्री और ऊना जिले के अंब के साथ सटे लोअर अंदौरा निवासी रोहित शर्मा का।

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एमबीए के बाद पांच साल से सूडान में खारतूम के साथ सटे शहर में एक भारतीय कंपनी में अकाउंटेंट का काम करने वाले दीपक व वेयरहाउस के मैनेजर रोहित घर पहुंचने के बाद अब भी घटना की याद में सिहर उठते हैं, लेकिन कहते हैं कि तिरंगे की ऊंची शान हमारा बाल भी बांका नहीं कर पाई। इसी तरह घर लौटे ऊना जिले के हरोली हलके के बालीबाल निवासी दयाल सिंह ने भी आपबीती सुनाई।

'घर जाने की चिंता में नहीं लगी भूख'

28 वर्षीय दीपक कहते हैं कि सूडान में 15 अप्रैल को शुरू हुए सत्ता संघर्ष के दौरान 23 अप्रैल तक हम एक भवन के मध्य में बने बड़े हाल में सात लोग ठहरे थे। हाल के चारों तरफ कमरे थे, जिससे गोलियां उन तक नहीं पहुंच सकती थीं। यह सुरक्षित ठिकाना था। खाना करीब 15 दिन का जरूरत के हिसाब से पहले रखा था, लेकिन घर जाने की चिंता में भूख किसे लगती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उच्चस्तरीय बैठक के बाद पोर्ट सूडान में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने हमारे एक वाट्सएप ग्रुप पर मैसेज किया कि अपनी डिटेल भेजो। अगले दिन हमें पोर्ट सूडान पहुंचने को कहा गया। लेकिन गोलीबारी और धमाकों के बीच पहुंचना कठिन था।

दीपक ने बताया कि ग्रुप में जुड़े लगभग 50 भारतीयों ने हिम्मत जुटाकर एक बस किराये पर ली। 23 अप्रैल को ही पोर्ट सूडान के लिए निकल पड़े। लगभग 14 घंटे के सफर में चार जगह सेना ने हमारी बस को रोका, लेकिन भारतीय पासपोर्ट देखने पर मुस्कुराते हुए वेलकम (स्थानीय भाषा में) कहा। यह देख हमारे चेहरे खुशी से खिल उठे। यह जवान उसी सेना का हिस्सा थे, जिन्होंने एक दिन पहले अमेरिका के लोगों के मोबाइल फोन से लेकर खाने का सामान लूट लिया था।

दीपक ने बताया कि रात लगभग 10 बजे भारतीय दूतावास पोर्ट सूडान पहुंचे। हमारे ग्रुप में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी थे। हर किसी के लिए यहां खाना बना हुआ था। फिर अगले दिन बंदरगाह से सऊदी अरब के जेद्दाह पहुंचे। जेद्दाह से दिल्ली के लिए भारत सरकार की ओर से पहले से तैयार रखे जहाज में स्वदेश लौटे। हिमाचल से इन दो युवाओं के अतिरिक्त अन्य राज्यों के भी कई लोग उनके साथ लौटे। दो दिन पहले घर पहुंचे दीपक और रोहित कहते हैं कि हालात सामान्य होने पर फिर सूडान जाएंगे।

दूतावास में डाटा तैयार करने में की मदद

सूडान के भारतीय दूतावास में पहुंचने पर अधिकारियों ने बताया कि सभी के पासपोर्ट और अन्य विवरण तैयार करने हैं, लेकिन उनके पास न लैपटाप है और न ही अधिक कर्मचारी। दीपक और अन्य तीन साथियों ने अपना लैपटाप निकाला और लोगों की सूची तैयार करने में अधिकारियों की मदद की। इस तरह लोगों को सूडान से जल्दी निकलने में मदद मिली।

इसलिए जेद्दाह के रास्ते पहुंचे भारत

दीपक और रोहित ने बताया कि वे खारतूम में एयरपोर्ट से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर रहते थे लेकिन एयरपोर्ट के ध्वस्त होने के कारण उन्हें समुद्री रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ा। सत्ता संघर्ष के कारण हवाई अड्डे का काफी हिस्सा तबाह कर दिया है। यहां उड़ान संभव नहीं है, इसलिए 800 किलोमीटर दूर सूडान पोर्ट से उन्हें समुद्री जहाज के जरिये जेद्दाह पहुंचाया गया। यहां से फ्लाइट के जरिये भारत पहुंचे। दोनों पहली बार इस रास्ते से भारत लौटे।


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