दादरा व ठुमरी ने दिलाई अवध के अंतिम नवाब की याद
श्रंगार रस से युक्त दादरा व ठुमरी गायन.. अवध के पौराणिक गानों की लयकारियों और उस पर तबले की थाप और सारंगी की धुन अवध के मारिसायों की याद दिलाती हैं।
मुनीष गारिया, धर्मशाला
श्रृंगार रस से युक्त दादरा व ठुमरी गायन..अवध के पौराणिक गानों की लयकारियां और उस पर तबले की थाप और सारंगी की धुन अवध के मिरासियों की याद दिलाती है। अवसर शादी-ब्याह का हो या कोई..हर अवसर के लिए अवधी लोगों के पास गाने होते हैं। दुख की बात है कि आज अवध में मिरासियों को वो दौर गुम हो गया है। इस बात की टीस हमेशा दिल में रहेगी। यह भावनात्मक जुड़ाव है कि शास्त्रीय संगीतकार मालिनी अवस्थी की दिल में। धर्मशाला कॉलेज के सभागार में आयोजित त्रिगर्त उत्सव की पहली संध्या पर मालिनी अवस्थी ने अवध रागों से शास्त्रीय संगीत का माहौल पैदा किया, वहीं अपने मन के भाव प्रकट करते हुए कहा कि बहुत खुशी होती है यह जानकार कि हिमाचल में आज भी मिरासियों की प्रथा कायम है जो हमारे यहां अवध में नहीं रही।
उन्होंने अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के लिखे कलाम 'बाली ननदिया कुंआ पानी न जाओ', का राग तिलक कमोद में पेश कर उन्हें याद किया। इसके अलावा मालकौंस राग में बनरा मौर मुरलिया बजाये, ठुमरी गायन में मैं लाई हो महारानी से जुड़ाऊ कंगना और राग भैरवी में जान मैं तोसे नहीं बोलूंगी को श्रृंगार रस में साथ पेश किया।
बकौल, मालिनी अवध के हर घर की महिला शादी-ब्याह के अवसर पर गानों की झड़ी लगा देती है, लेकिन कमी सिर्फ इसी चीज की है कि उन्हें ज्ञान नहीं होता कि वह कौन का गाना किस राग में गा रही हैं। वहां की महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले खमाज राग के गाने नजरिया लग जाई हो मौरे बने को कोई न देखो पेश किया। उन्होंने हिमाचल में शास्त्रीय गायन को लेकर ज्ञान पर कहा कि यह जानकर बहुत खुशी हुई कि यहां के लोगों में संगीत का बड़ा ज्ञान है और उन्हें निदेशालय ने भी प्रस्तुति को लेकर प्रारूप पेश किया। इसी से पता चलता है कि हिमाचल में शास्त्रीय संगीत की कितनी पकड़ है।
-------------
ये रहे मौजूद
खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री किशन कपूर, उनकी पत्नी रेखा कपूर, भाषा कला विभाग की सचिव पूर्णिमा चौहान, उपायुक्त संदीप कुमार, अशोक कुमार एंडी, सचिन शर्मा, आरएस राणा व अन्य।