Dalai Lama: धर्मगुरु ने कलेश, मिथ्या से दूर रहकर सत्य मार्ग पर चलने की दी सीख, ताइवानी भिक्षुओं को दिया प्रवचन
Dalai Lama Teaching तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने मुख्य बौद्ध मंदिर में ताईवान से आए बौद्ध भिक्षुओं व अन्य अनयायियों को प्रवचन किया। दलाई लामा ने कहा बिना परीक्षण के लगता है सब कुछ शुद्ध है सही है लेकिन जब परीक्षण करते हैं तो पता चलता है
धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Dalai Lama Teaching, तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने मुख्य बौद्ध मंदिर में ताईवान से आए बौद्ध भिक्षुओं व अन्य अनयायियों को प्रवचन किया। दलाई लामा ने कहा बिना परीक्षण के लगता है सब कुछ शुद्ध है सही है, लेकिन जब परीक्षण करते हैं तो पता चलता है कि वह स्वभाव से सिद्ध है या नहीं। स्वभाव से शून्य है, लेकिन स्वभाव को अच्छी तरह से समझने की कोशिश करें तो जो हम सोचते हैं, समझते हैं वह जानकारी कम पड़ सकती है। उसके अर्थ को समझने की जरूरत है। सभी वस्तुएं स्वभाव सिद्ध नहीं हैं। इसके लिए परीक्षण की जरूरत है।
भवचक्र में इस दुनिया में कलेश कर्मों से हमें दूर रहना है और मिथ्या से दूर रहना है और सत्य के मार्ग पर चलना है। लेकिन इसके लिए सोच समझ की जरूरत है। दलाई लामा ताइवानी बौद्ध संघ के अनुरोध पर आचार्य धर्मकीर्ति विरचित प्रमाणवर्तिका कारिका के अध्याय दो पर तीन दिवसीय प्रवचन के दूसरे दिन बोल रहे थे। दलाई लामा ने इससे पहले प्रज्ञा पाठ, हृदय सूत्र पाठ तिब्बती में किया गया। इस मौके पर अन्य देशों के अनुयायी भी मौजूद रहे और शिक्षा ग्रहण की। पिछले कल के प्रवचन से आगे आज के प्रवचन दलाईलामा ने दिए।
सत्यता को समझने से मिथ्या होगी कम
हर रोज हर क्षण हमारे भीतर आशक्ति, अलगाव है मोह है वह पैदा होता है। जिस चीज को हम देखते हैं उसके प्रति आशक्ति पैदा होती है और अच्छा नहीं लगता उसके प्रति अमोह होता है। जो अच्छा लगता है उससे मोह होता है। प्रज्ञा के आधार पर प्रमाणित होना चाहिए। जब सत्यता को समझे तो मिथ्या कम होगी।
मैं और मेरा कहते हैं पर आत्मा क्या है यह समझने की जरूरत
स्कंद से हटकर भी आत्मा नहीं होती है। जो आत्मा के कार्य कर रहे हैं वह क्या है। न काय है न चित है लेकिन एक तरह से वश में करना वाला भी मन व चित नहीं है तो आत्मा क्या है। मैं व आत्मा के आधार पर विचार नहीं कर सकते, इसलिए चित पर विचार कर सकते हैं। आत्मा क्या है पर आत्मा सिद्ध नहीं होती है। सब मै और मेरा कहते हैं पर आत्मा क्या है यह समझने की जरूरत है। बुद्ध के प्रति भी आप देखें तो बुध न कहा है कि स्कंद है स्कंद से हटकर कुछ नहीं है। तो स्वतंत्र रूप से क्या है यह भी नहीं बताया है। स्वभाव से सिद्ध है यही लगता है। इस लिए स्वभाव से सिद्ध ही ग्रहण हो जाता है। पूजा पाठ व धर्म की बात नहीं है यह सिर्फ सत्यता है। बौद्ध परंपरा के मुताबिक समझना चाहिए तो मन के अंदर की आशक्तियों से ही हमारा मन खराब हो जाता है। दुनिया में देखे तो कई हजार सालों में लाखों करोड़ों लोगों की हत्या की गई व अन्य जीवधारियों की भी हत्या की गई है। वह इस लिए क्योंकि हमने कलेशवश व अपने स्वार्थ के लिए किया। अविद्या व कलेशों के कारण ही सारे युद्ध हुए हैं। अपने स्वार्थ की बजह से हुए हैं। युद्ध में यह बात करो तो बहुत ज्यादा मोह उत्पन्न करने की जरूरत है। दुनिया में बहुत से धर्म है सभी धर्म कहते हैं कि किसी को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। लेकिन आशक्ति रूपी चित कैसे आता है इसमें भारतीय दर्शन की भी व्याख्या की है। एक परंपरा स्कंद को मानते हैं तो एक आत्मा को मानते हैं। जब अध्ययन करेंगे तो मैं और मेरा की भावना कम हो जाएगी।
मैं की भावना ही दुखों का कारण
काय व मन के द्वारा किए जाने वाले गलत काम ही दुखों को जन्म देते हैं। लेकिन मैं प्रज्ञा के आधार पर कोई स्वतंत्र आत्मा है तो इसे सिद्ध नहीं कर सकते। दूसरे जीवधारियों में भी जब चिंतन करते हैं तो उनमें भी मैं की भावना है। जब चिंतन करते हैं तो जब शून्यता के माध्यम से कलेशों को समझने की कोशिश करें तो जब हम चीजों को नहीं देख पाते हैं तो वह भ्रम से उत्पन्न होती है। इन्हें प्रतिकारों से खत्म किया जा सकता है। परीक्षण से कलेश को खत्म कर सकते हैं। अच्छे व बुरे कर्मों को लेकर परीक्षण व अध्ययन करना चाहिए। मोह को अच्छे तरह से समझना चाहिए। पूर्व के हमारे ग्रंथों को साथ-साथ रखकर उनका अध्ययन करके मोह को समझना चाहिए। दुख की उत्पत्ति होती है, अचानक होती है। दुख इच्छा का कारण और इच्छा व मोह ही दुख का कारण है। इस गंभीरता तो समझने की जरूरत है।