सरस्वती की कलम से निकले थे मानस के मोती
सुरेश कौशल योल चिन्मय ट्रस्ट के प्रमुख आचार्य सुबोधानंद सरस्वती प्रसिद्ध कलमकार भी थे। उन्होंन
सुरेश कौशल, योल
चिन्मय ट्रस्ट के प्रमुख आचार्य सुबोधानंद सरस्वती प्रसिद्ध कलमकार भी थे। उन्होंने रामचरित मानस पर आधारित मानस के मोती पुस्तक के चार भाग लिखे थे। पुस्तक में उनकी भगवान श्रीराम के प्रति आस्था दिखती है। चारों भागों में उन्होंने श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया है।
मानस के मोती भाग एक के चार खंड हैं। पहले भाग में ज्ञानयज्ञ की महिमा, दूसरे में भरत चरित्र, रामगीता और नवधाभक्ति का उपदेश व सुग्रीव की शरणागति का उल्लेख किया है। दूसरे भाग के विभिन्न खंडों में पहला हनुमान चरित्र, विश्वमित्र यज्ञरक्षा प्रसंग, श्रीराम वाल्मीकि संवाद व कागाभुशुंडि अंकित है। तीसरे भाग में लक्ष्मण चरित्र, लक्ष्मण गीता, विभीषण गीत, पार्वती प्रसंग व उत्तर खंड शामिल है। चौथे भाग में श्रीरामचरित्र प्रस्तावना, बाल राम, युवा राम, वनवासी राम, शरणागतवत्सल, रणवीर राम व राजा राम का उल्लेख किया है।
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श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम में किया अंतिम संस्कार
आचार्य सुबोधानंद सरस्वती का सोमवार दोपहर करीब 12.30 बजे श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम स्थित श्मशानघाट में अंतिम संस्कार किया गया। शिष्य आचार्य विशार्द चैतन्य ने मुखाग्नि दी। उनकी अंतिम यात्रा में पंजाब व उत्तर प्रदेश के अनुयायियों और उनके बड़े भाई शेषनाथ दुबे ने भी भाग लिया। रविवार को अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद सुबोधानंद का निधन हो गया था। सुबोधानंद सरस्वती गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे। बचपन से ही उनमें आध्यात्मिक के प्रति रुचि थी और यही उन्हें चिन्मय मिशन की ओर ले आई। वर्ष 1981 में वह सिद्धबाड़ी स्थित चिन्मय ट्रस्ट से जुड़े। 1990 में उन्होंने स्वामी चिन्मयानंद से आचार्य वेदांत और ब्रह्माचार्य की दीक्षा ली थी। प्रयाग सादीपनि आचार्य संन्यास की दीक्षा के बाद वह चिन्मय मिशन उत्तरी भारत के प्रमुख बने थे। ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी ने बताया कि अब इस पद पर कौन विराजमान होगा, इसका फैसला चिन्मय ट्रस्ट बोर्ड लेगा।
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स्वामी सुबोधानंद आध्यात्मिक गुरु थे। अब हमने उन्हें खो दिया है और इसका बहुत दुख है। उनकी पूर्ति असंभव है।
-सातन, कानपुर। आध्यात्मिक जगत के आचार्य हमसे अलग हो गए हैं और उनकी क्षति अपूर्णीय है। मैं पिछले 20 साल से मिशन से जुड़ा हूं।
डॉ. राजन पटियाल। आचार्य सुबोधानंद ने पूरा जीवन आध्यात्मिक साधना में लगा दिया। उनसे कई अनुयायी जुड़े और जीवन को सार्थक बनाया।
डॉ. रेणू, पटियाल