शहादत का भी नहीं रखा मान, सड़क से दूर पांच गांव
हर जगह विकास का नारा, लेकिन उपमंडल की राख पंचायत के पांच गांवों से मानों विकास रूठ गया है। सरकारी अनदेखी भी ऐसी की 11 साल पहले शहीद हुए रमेश कुमार की शहादत पर भी सड़क बनाने के नाम पर कागजी कार्रवाई का पर्दा डाल दिया गया है। पंचायत के वार्ड नंबर पांच के डबकेहड़, सरगतिया, चौगान, गढ़, भोंटा गांव काले पानी जैसे हैं।
मुकेश मेहरा, पालमपुर
विकास का नारा, लेकिन पालमपुर उपमंडल की राख पंचायत के पांच गांवों से मानों विकास रुठ गया है। 11 साल पहले शहीद हुए वीर चक्र सम्मान प्राप्त रमेश कुमार की शहादत पर भी सड़क बनाने के वादे पर कागजी कार्रवाई का पर्दा डाल दिया गया। पंचायत के वार्ड नंबर पांच के डबकेहड़, सरगतिया, चौगान, गढ़, भोंटा गांवों में हालात काले पानी जैसे हैं। लगभग 200 की आबादी वाले इन इन गांवों को जाने वाली सड़क के शुरू में ही ¨लगटी खड्ड आती है। खड्ड के शुरू होते ही पुल का शिलान्यास हुआ लेकिन पट्टिका गायब। आगे चलें तो इन गांवों का रास्ता शुरू होता है। सबसे पहले भोंटा गांव आता है। यहां पर भी ¨लगटी खड्ड से ही रास्ता बनाया गया है, वह भी बह चुका है। यहां से शहीद वीर चक्र विजेता रमेश कुमार के गांव गढ़ के लिए सड़क आरंभ होती है। भोंटा से आगे खड्ड पार के डबकेहड़ गांव में प्रवेश करते हैं तो 8-10 घर एक साथ आते हैं। यहां से रमेश कुमार की शहादत के बाद सड़क बनाने के वादे के अनुसार कच्ची सड़क भी निकाली गई, लेकिन अब वह भी पगडंडी बन चुकी है। शहीद का घर सबसे अंतिम गांव गढ़ में है। यहां तक पैदल जाना पड़ता है। कब डांक से नीचे गिर जाएं कोई पता नहीं। सड़क को सही तरीके से बनाने के लिए वन विभाग और पीडब्लयूडी की रिपोर्ट आनी है। कागजी कार्रवाई तो हुई है लेकिन 11 साल में यहां लोगों को कुछ हासिल नहीं हो पाया। कोई बीमार हो जाए तो पालकी या कंधे पर बिठाकर ही कच्ची सड़क तक पहुंचाया जाता है। बच्चों को स्कूल जाने के लिए खड्ड पार करनी पड़ती है। बरसात में तो हालात भयावह होते हैं। बच्चों को परिजन कंधों पर उठाकर खड्ड पार करवाते हैं। कब हादसा हो जाए कोई नहीं जानता।
लोगों की मानें तो 2007 के चुनावों में भी नेताओं ने वादा किया था कि गांव तक गाड़ी आएगी, लेकिन यहां तक पैदल पहुंचना भी खतरे से खाली नहीं है। लोगों में सरकार व प्रशासन के खिलाफ नाराजगी है।
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बेटा खो दिया, लेकिन शहादत को सम्मान आज तक नहीं
शहीद रमेश कुमार की मां विमला देवी कहती हैं आज भी हम सड़क निर्माण के लिए कई दफ्तरों के चक्कर काटते हैं। शहादत के बाद सेना जितना मान देती है काश हमारे नेता या प्रशासनिक अधिकारी भी उस तरह सोचते। वादों से आगे कुछ नहीं हुआ। बरसात में ल्हासे गिरने के कारण कई जगह सड़क टूट गई। जेसीबी ने ठीक तो किया, लेकिन हालात बदतर हैं। सरकार केवल दावे करती हैं लेकिन अगर रोज हमारी तरह पहाड़ चढ़ने पड़ें तो हकीकत सामने आए। वहीं सड़क निर्माण को लेकर क्षेत्र में काम करने वाली एनजीओ नि:स्वार्थ ने भी आवाज बुलंद की है। उनके अध्यक्ष कार्तिक का कहना है कि सड़क निर्माण करवाने के लिए अगर कड़े कदम भी उठाने पड़े तो उससे परहेज नहीं होगा।
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सड़क बन जाए तो लोगों को आने जाने में आसानी होगी। बरसात में खड्ड पर बहाव तेज होता है। बच्चों को स्कूल से लाने ले जाने में परेशानी होती है। अधिकारियों और नेताओं को हमारा दर्द समझना चाहिए।
-उधमी राम, एक्स सर्विस मैन डवकेहड़।
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सड़क बनाने के लिए लंबे समय से कार्रवाई की जा रही है। वन विभाग के पास जाकर मामला लटक जाता है। कुछ दिन पहले टीम आई थी उम्मीद है कि सड़क का काम शीघ्र हो
-संतोष, वार्ड पंच राख पंचायत।
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पीडब्ल्यूडी के साथ ज्वाइंट इस्पेक्शन की गई है। अब फाइल साइन करने के लिए पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को दी गई है।
-अश्वनी, रेंज आफिसर पालमपुर।
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मेरे ध्यान में मामला है। लोगों से कागज मांगे हैं तथा इस मामले को सीएम के समक्ष रखूंगी। मुझे पूरी उम्मीद है मुख्यमंत्री गांव के लोगों का दर्द समझकर इस सड़क निर्माण को तुरंत कार्रवाई के आदेश देंगे।
-इंदु गोस्वामी, पूर्व प्रत्याशी पालमपुर विस।
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इस सड़क का काम पूर्व विधायक व विस अध्यक्ष बीबीएल बुटेल के समय से ही आरंभ करने की कवायद छेड़ी गई थी। इस सड़क निर्माण को लेकर फॉरेस्ट क्लीयरेंस करवाई जा रही है। इसके लिए कार्य हो रहा है तथा फाइल डीएफओ कार्यालय भेज दी गई है। मैंने स्वयं सत्र के दौरान भी इस बाबत सवाल रखा है।
-आशीष बुटेल, विधायक पामलपुर विस क्षेत्र।