नैतिक मूल्यों से ही मानवता और संस्कृति की पहचान
घमंडी व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता है। जिस व्यक्ति में एक बार घमंड पैदा हो गया तो वह अ
घमंडी व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता है। जिस व्यक्ति में एक बार घमंड पैदा हो गया तो वह अपने आगे किसी को भी नहीं मानता है। जब व्यक्ति का घमंड टूटता है तो वह अर्श से फर्श पर होता है लेकिन हम अच्छे संस्कारों से बुराई पर जीत हासिल कर सकते हैं। हमारे नैतिक मूल्य अच्छे घर, परिवार, समाज व देश की पहचान होते हैं। नैतिक मूल्यों का आधार हमारी प्राचीन संस्कृति है। मनुष्य की अमूल्य निधि उसकी संस्कृति और संस्कार होते हैं। यह एक ऐसी निधि है जिससे व्यक्ति सुसंस्कारित तथा सभ्य सामाजिक प्राणी बनता है। साथ ही यह हर प्रतिकूल परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता पैदा करती है। संस्कारों से ही व्यक्ति सभ्य तथा शिक्षित होता है। यह सब माता-पिता और युवाओं को पता होने के बावजूद नैतिक मूल्यों का पतन दिन-ब-दिन क्यों हो रहा है। इस पर मंथन की जरूरत है। जिस महान धरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व अर्जुन जैसी महान विभूतियों का जन्म हुआ है, आज उसी धरा से शिष्टाचार, नैतिकता व संस्कार खोते जा रहे हैं। इसके लिए हम युवा पीढ़ी को ही दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। इसके लिए कहीं न कहीं परिवार व सामाजिक वातावरण भी दोषी हो सकते हैं। कुछ दशक पहले बच्चे दादा-दादी के संपर्क में रहकर कई प्रकार की धार्मिक व अन्य कहानिया सुना करते थे लेकिन आज वे सब संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। आज हम बच्चों के हाथ में कई प्रकार के महंगे खिलौने व मोबाइल फोन देकर करीबी रिश्तों से दूर कर रहे हैं। अभिमन्यु जैसे वीर योद्धा ने मां के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की शिक्षा ग्रहण कर ली थी इसीलिए मां को प्रथम गुरु की उपाधि प्राप्त है। प्राचीन काल में शिष्य गुरु को भगवान तुल्य मानता था परंतु आजकल के युवा शिष्टाचार के नियमों को भूल चुके हैं। यहां तक कि युवा अध्यापकों का निरादर करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते हैं। बड़ों के प्रति निरादर व मनमानी यह दर्शाती है कि आजकल के युवाओं में नैतिक मूल्यों का स्तर किस हद तक गिर चुका है। आज से कुछ दशक पहले बड़ों का आदर करना, उन्हें सम्मान व प्यार देना कर्तव्य माना जाता था परंतु दुख की बात है कि जो माता -पिता बच्चों का पालन-पोषण कर उन्हें सफल इंसान बनाते हैं आज वे ही बच्चों को बोझ लगने लगते हैं। आज केयुवा पश्चिमी सभ्यता की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं। वर्तमान में माता-पिता को बच्चों की हरकतों पर नजर रखना आवश्यक हो गया है। बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए आवश्यक है कि माता-पिता व्यस्त समय से जितना संभव हो सके बच्चों को अधिक से अधिक समय दें। बच्चों को शिष्टता, नैतिकता और अनैतिकता में अंतर बताएं। आज बच्चों को संस्कृति से रूबरू करवाना आवश्यक हो गया है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं परंतु नैतिक मूल्यों की कमी उनके जीवन को तबाह कर सकती है। बच्चों को नैतिक मूल्यों की जानकारी देना आवश्यक है। नैतिकता ही वह खूबी है जो हमारे सामाजिक, सभ्य और सुसंस्कारित होने की पहचान करवाती है और जीवन को बेहतर ढंग से जीना सिखाती है। बच्चों के नैतिक मूल्यों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि हम घर का वातावरण अच्छा बनाए रखें, बच्चों को शेयरिग और केयरिग की सीख दें। बच्चों को मानवता की इज्जत करना सिखाएं तथा ईमानदारी का पाठ पढ़ाएं।
-राकेश राणा, प्रधानाचार्य तृप्ता पब्लिक स्कूल, जवाली ।