नवदीप साबू के हुनरमंद हाथ से बलटोही लेती है आकार
गंगथ कस्बे का नवदीप साबू बलटोही तैयार करने में माहिर है।
अश्वनी शर्मा, जसूर
कस्बा गंगथ को कभी बर्तनों वाले शहर के नाम से जाना जाता था। आज से दो दशक पूर्व यहां के करीब हर घर में पीतल के बर्तन बनाने वाला एक कुशल कारीगर होता था। अधिकतर कारीगर अपने हाथों से तैयार पीतल के बर्तन गांव-गांव जाकर बेचते थे। समय के साथ महंगाई और रेडीमेड माल की बाजार में दस्तक के बाद अब यह कारीगरी लुप्त होने की कगार पर है। अब कस्बे में केवल तीन से चार भट्ठियां ही रह गई हैं, जहां पीतल के बर्तन बनाने का काम होता है। ये चुनिंदा कारीगर आज भी बाजार में उपलब्ध रेडीमेड माल को चुनौती दे रहे। इनमें सबसे कम उम्र का कारीगर 23 वर्षीय नवदीप साबू है। 11वीं तक शिक्षित नवदीप साबू बलटोही बनाने में कुशल है। इस युवक ने तीन पीढि़यों से चली आ रही इस कारीगरी को आजीविका का साधन बनाया है। नवदीप साबू अपने हाथों से तैयार की हुई बलटोहियां ही अपनी दुकान पर रखता है, हाथों हाथ बिकती हैं। भले ही आज रेडीमेड का जमाना आ गया है, लेकिन अधिकतर लोग इन देसी भट्ठियों से तैयार बलटोहियों को ही अधिमान देते हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में साबू ने बताया कि बर्तन बनाने का सबसे पहले काम उनके परदादा ने शुरू किया। उनके दादा ने इसे आगे बढ़ाया। उस समय गांव-गांव जाकर बर्तन बेचने जाते थे। बर्तन बनाने की कला बचपन से ही देख रहा था और पढ़ाई के साथ इस कला में भी पिता का हाथ बंटाता था। कम उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ गया। ऐसे में पिता की मृत्यु के बाद उसे यह काम संभालना पड़ा।
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कैसे तैयार होती है बलटोही
नवदीप साबू ने बताया कि अलग-अलग साइज की बलटोही बनाने के लिए पहले मिट्टी के दो सांचे तैयार किए जाते हैं, जो दो भागों में होते हैं। फिर पीतल को भट्ठी में पिघलाकर उन अलग-अलग सांचों में डाला जाता है। जब पीतल ठंडी हो जाती है, तब मिट्टी को अलग कर और दोनों सांचों को जोड़कर रेगमार और हथौड़ी से बलटोही तैयार की जाती है। हाथ से तैयार की गई बलटोही 16 से 42 किलोग्राम तक होती है। इसका मूल्य सात से लेकर 22 हजार रुपये तक होता है। मेहनत ज्यादा होने के चलते एक कारीगर महीने में करीब 15 बलटोहियां तैयार कर सकता है।
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मिलावट नहीं होती
नवदीप साबू ने बताया कि आज रेडीमेड सामान का दौर है। रेडीमेड माल मिलावट के चलते सस्ता भी रहता है, लेकिन देसी तरीके से बनाए जाने वाले बर्तन में मिलावट नहीं हो सकती। यह रेडीमेड के मुकाबले ज्यादा कीमती होती है, लेकिन पीतल के जानकार हाथ से तैयार की गई बलटोही को ही अधिमान देते हैं।