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छह दशक में नहीं बन सका नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट

भारत सरकार से 60 के दशक में पालमपुर को मिला नेशनल बायोलॉजिकल संस्थान आज तक नहीं खुल सका है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 03:16 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 03:16 AM (IST)
छह दशक में नहीं बन सका नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट

संवाद सहयोगी, पालमपुर : भारत सरकार ने 60 के दशक में पालमपुर को पहला नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट दिया था। इस इंस्टीट्यूट का प्रमुख प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हरगो¨वद ¨सह खुराना को नियुक्त किया गया था। थोड़े समय के पश्चात ही डॉ. खुराना शोध के लिए विदेश चले गए। परिणामस्वरूप पालमपुर में आज तक यह संस्थान स्थापित नहीं हो सका। इस संस्थान के नाम पालमपुर में भूमि भी हस्तांतरित हो गई थी, जो आज दिन तक नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पास ही है। हालांकि पालमपुर के बाद जिस प्रदेश में यह इंस्टीट्यूट खुला है, वहां से हजारों युवा शोध के बाद देश-विदेश में नाम कमा रहे हैं। यह सारी जानकारी पालमपुर की इंसाफ संस्था के पदाधिकारियों को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के शिलान्यास स्थल को संवारने की कवायद के दौरान प्राप्त हुई। रविवार को इस संबंध में इंसाफ संस्था के पदाधिकारी पूर्व विधायक प्रवीण शर्मा के नेतृत्व में डाढ में स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार से मिले और उन्हें सारी जानकारी दी। इंसाफ संस्था के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक प्रवीण कुमार ने कहा कि केंद्र व प्रदेश में एक ही दल की सरकार है। ऐसे में इस जमीन पर नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के समकक्ष भारत सरकार का संस्थान स्थापित हो। साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री की ओर से लगाई गई शिलान्यास पट्टिका को संवारने के लिए संबंधित विभाग से इंसाफ संस्था को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करवाया जाए। स्वास्थ्य मंत्री ने प्रतिनिधि को इस मामले को उचित कार्रवाई के लिए सरकार के समक्ष उठाने का आश्वासन दिया है।

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संस्था इस मामले को तथ्यों एवं राजस्व अभिलेख के साथ हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान निदेशक के पास आगामी कार्रवाई के लिए प्रेषित कर चुकी है।

प्रतिनिधिमंडल ने स्वास्थ्य मंत्री को बताया कि वर्ष 1991-92 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वन लगाओ, रोजी कमाओ योजना का पालमपुर से शुभारंभ किया था। उनकी ओर से किए गए शिलान्यास स्थल को संवारने के लिए जब उन्होंने वन विभाग के पास आवेदन किया तो वन विभाग ने बताया कि भूमि कृषि विश्वविद्यालय की है। मगर जब कृषि विश्वविद्यालय प्रशासन से संपर्क किया तो वहां भी स्थिति स्पष्ट नहीं थी। संस्था ने तहसीलदार पालमपुर के माध्यम से राजस्व रिकार्ड खंगाला तो भूमि नेशनल बायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के नाम दर्ज पाई गई।


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